वैसे तो लोग पसीने से नाक-भौं सिकोड़ते हैं और इससे निजात पाने के लिए तरह-तरह के डिओ और अन्य उपाय अपनाते हैं। लेकिन आजकल पसीना चलन और स्टाइल में है, खासकर जिम में। इसके अलावा पसीना बहाने के लिए तरह-तरह के विकल्प चलन में हैं, जैसे हॉट योगा, इन्फ्रारेड सौना वगैरह। लोग ये सब इस चाह में अपना रहे हैं कि इस तरह पसीना बहाकर वे अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल देंगे, अन्य शब्दों में कहें तो शरीर को डिटॉक्स कर देंगे।
लेकिन वास्तविकता थोड़ी अलग है। पसीना बहाऊ गतिविधियां करके आप शरीर से अधिकतर पानी ही बाहर निकालते हैं और अन्य पदार्थ न के बराबर। पसीना मुख्यत: हमारे शरीर को ठंडा रखने के लिए निकलता है, शरीर से अपशिष्ट या विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने के लिए नहीं। इस काम के लिए हमारे शरीर में किडनी और लीवर हैं।
मैकगिल युनिवर्सिटी में विज्ञान और समाज विभाग के निदेशक व रसायन शास्त्री जो श्वार्क्ज़ बताते हैं कि पसीने से शरीर को डिटॉक्स करने की बात एक मिथक है। पसीने में ज़्यादातर पानी होता है, साथ ही इसमें अत्यल्प मात्रा में अन्य सैकड़ों पदार्थ हो सकते हैं जिनमें से कुछ विषैले पदार्थ भी हो सकते हैं। इसलिए जब भी इस तरह डिटॉक्स करने की बात हो तो ये सवाल ज़रूरी है कि पसीना बहाकर कितना डिटॉक्स होगा? और क्या? क्या पसीने के साथ कीटनाशक शरीर से बाहर निकल जाएंगे? धातुएं या कुछ और बाहर निकल जाएगा?
जब आप इस बात पर गौर करेंगे कि वास्तव में हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थ कैसे जमा होते हैं, उनके गुण क्या हैं, और शरीर उनसे छुटकारा पाने के क्या तरीके अपनाता है तो आप पाएंगे कि अधिकांश डिटॉक्स योजनाएं बकवास हैं।
जब हमारा शरीर गर्म होता है या हम व्यायाम करते हैं तो हमारे पूरे शरीर में फैली एक्राइन ग्रंथियां पसीना स्रावित करती हैं। हमारे शरीर में इनकी संख्या करीब तीस लाख है। चूंकि हमारा शरीर अपने को ठंडा रखने के लिए पसीना बहाता हैं इसलिए इसमें 99 प्रतिशत से अधिक पानी होता है। इस पानी में बहुत थोड़ी मात्रा में सोडियम और कैल्शियम जैसे खनिज, विभिन्न प्रोटीन, लैक्टिक एसिड और थोड़ा यूरिया होता है।
यूरिया भोजन में प्रोटीन के टूटने से लीवर में बनता है। यह हमारे शरीर में बनने वाला एक अपशिष्ट उत्पाद है। यह कहना तो ठीक है कि पसीने के साथ शरीर से थोड़ा यूरिया भी निकल जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि इसका अधिकांश हिस्सा पेशाब के ज़रिए शरीर से बाहर निकलता है और यह काम किडनी करती है।
अब बात करते हैं मानव निर्मित प्रदूषकों की। कार्बनिक प्रदूषक जैसे कीटनाशक, अग्निरोधी और पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल (पीसीबी) शरीर में प्रवेश करके शरीर की वसा में जाकर जमा हो जाते हैं क्योंकि ये पदार्थ वसा-प्रेमी (या वसा में घुलनशील) होते हैं। पसीने में मुख्यत: पानी होता है, वसा नहीं। नतीजतन, ये वसा-प्रेमी पदार्थ पानी में नहीं घुलते और पसीने के साथ इतनी कम मात्रा में निकलते हैं कि इसे डिटॉक्स कहना व्यर्थ है। ओटावा विश्वविद्यालय के एक्सरसाइज़ फिज़ियोलॉजिस्ट पास्कल इम्बॉल्ट ने 2018 में अपने अध्ययन में पसीने में इन्हीं विषाक्त पदार्थों की मात्रा की गणना की थी। और पाया था कि 45 मिनट का कठोर व्यायाम करके कोई सामान्य व्यक्ति पूरे दिन में कुल दो लीटर पसीना बहा सकता है, और इस पसीने में इन प्रदूषकों की मात्रा एक नैनोग्राम के दसवें हिस्से से भी कम होती है।
इसे इस तरह समझते हैं कि आप दिन भर में जितनी भी मात्रा में विषाक्त पदार्थ का सेवन करते हैं पसीने के साथ उसका महज 0.02 प्रतिशत हिस्सा ही बहाते हैं। और आप कुछ भी करके पूरे दिन में अधिक से अधिक दैनिक सेवन का 0.04 प्रतिशत तक ही प्रदूषक पसीने में बहा सकते हैं।
यह भी बात ध्यान में रखने की है कि अधिकांश लोगों के शरीर में कीटनाशकों और अन्य प्रदूषकों का स्तर बेहद कम होता है। सिर्फ इसलिए कि वे हमारे शरीर में मौजूद हैं इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी इतनी मात्रा हमें कोई नुकसान पहुंचा रही है, या शरीर से इन्हें हटाने से स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
चलिए अब इस मिथक की लेशमात्र सच्चाई को देखते हैं। प्लास्टिक में मौजूद सीसा जैसी भारी धातुएं और बीपीए वसा की जगह पानी में आसानी से घुलते हैं। इसलिए ये बहुत थोड़ी मात्रा में पसीने के साथ बाहर निकल जाते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि बीपीए का अधिकांश हिस्सा पेशाब के ज़रिए शरीर से निकलता है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप पानी पी-पीकर पेशाब करते रहें ताकि शरीर विषमुक्त रहे। इसकी बजाय विशेषज्ञों की सलाह है कि प्लास्टिक की चीज़ों में खाने-पीने से बचें ताकि बीपीए का सेवन कम से कम हो। कोशिश करें कि कीटनाशक या अन्य प्रदूषक रहित खाद्य का सेवन करें और इनके संपर्क में आने से बचें। इसके अलावा शरीर के सफाईकर्मी अंग यानी किडनी को स्वस्थ रखें – इसके लिए आप धूम्रपान से, उच्च रक्तचाप और इबुप्रोफेन जैसी दर्दनिवारक दवाइयों के अत्यधिक उपयोग से बचें। और पर्याप्त पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी से किडनी पर दबाव पड़ता है, इसलिए पर्याप्त पानी पिए बिना खूब पसीना बहाने से शरीर की सफाई प्रणाली गड़बड़ा सकती है।
और, बाज़ार के चलन के झांसे में न आएं। बाज़ार जानता है कि हर मनुष्य स्वस्थ रहना चाहता है। और, क्योंकि हम विषाक्त पदार्थों को देख नहीं सकते इसलिए बाज़ार लोगों को बहुत आसानी से यह विश्वास दिला देता है कि इस तरह का उपवास करने से, डाइट प्लान लेने से, या सलाद-सब्ज़ियां खाने या जूस पीने से, या बहुत अधिक पसीना बहाने के उनके विकल्प अपनाकर आप स्वस्थ रहेंगे।
दरअसल, कई मामलों में स्वेट थेरेपी की अति से लोगों की जान तक गई है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन के अनुसार एक बार में 10 मिनट से अधिक समय तक सौना रूम में नहीं रहना चाहिए। 2011 में, एरिज़ोना में एक स्व-सहायता गुरु द्वारा आयोजित दो घंटे लंबे पसीना समारोह के बाद तीन लोगों की मौत हो गई थी। इसी वर्ष, क्यूबेक में एक 35 वर्षीय महिला की मृत्यु हो गई थी। इस महिला के शरीर पर डिटॉक्स स्पा उपचार के तहत मिट्टी का लेप किया गया था, फिर उसे प्लास्टिक में लपेटकर सिर पर एक कार्डबोर्ड का बक्सा रख दिया गया। और ऊपर से कंबल ओढ़ाकर उसे नौ घंटे तक रखा गया। इस तरह वह पसीना तो बहाती रही लेकिन उपचार के कुछ घंटों बाद ही अत्यधिक गर्मी के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
यह तो जानी-मानी बात है कि बाज़ार आपकी स्वस्थ रहने और अन्य हसरतों को जानता है। इसका फायदा उठाकर वह दावे करता है कि कोई उत्पाद या विकल्प अपनाकर आप तुरंत वैसे हो सकते हैं जैसे आप होना चाहते हैं। बाज़ार को रोकना मुश्किल है, लेकिन आप बाज़ार के झांसे में न आएं और समझदारी से काम लें। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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