अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी एक लट्टू की तरह डोलती भी है। पृथ्वी के केंद्र में मौजूद पिघला लोहा, पिघलती बर्फ, समुद्री धाराएं और यहां तक कि बड़े-बड़े तूफान भी इस धुरी को भटकाने का कारण बनते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ध्रुवों के विचलन में एक इन्सानी गतिविधि – भूजल का दोहन – की भी उल्लेखनीय भूमिका है।
कल्पना कीजिए कि आप अपनी उंगली पर बास्केटबॉल को घुमा रहे हैं। यह अपनी धुरी पर सीधी घूमती रहेगी। लेकिन एक तरफ भी थोड़ी हल्की या भारी हो जाए तो यह असंतुलित होकर डोलने लगेगी और धुरी की दिशा बदल जाएगी। ठीक इसी तरह पृथ्वी की धुरी भी डोलती है जिसके कारण हर साल उत्तरी ध्रुव लगभग 10 मीटर के एक वृत्त पर भटकता रहता है। और इस वृत्त का केंद्र भी सरकता रहता है। हाल ही में पता चला है कि यह केंद्र आइसलैंड की दिशा में प्रति वर्ष लगभग 9 सेंटीमीटर सरक रहा है।
ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी क्लार्क आर. विल्सन इसका एक कारण हर वर्ष सैकड़ों टन भूजल के दोहन को मानते हैं। इसके प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने नए बांधों और बर्फ पिघलने के कारण जलाशयों के भरने जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए ध्रुवों के भटकने का एक मॉडल बनाया। उनका उद्देश्य 1993 से 2010 के बीच देखे गए ध्रुवीय विचलन को समझना था।
इस मॉडल की मदद से उन्होंने पाया कि बांध और बर्फ में हुए परिवर्तन ध्रुवीय विचलन की व्याख्या के लिए पर्याप्त नहीं थे। लेकिन जब उन्होंने इसी दौरान पंप किए गए 2150 गीगाटन भूजल को इस मॉडल में डाला तो ध्रुवीय गति वैज्ञानिकों के अनुमानों के काफी निकट पाई गई।
शोधकर्ताओं के अनुसार महासागरों में पानी के भार के पुनर्वितरण के कारण पृथ्वी की धुरी इस अवधि में लगभग 80 सेंटीमीटर खिसक गई है। जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स की रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनलैंड या अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पहुंचने वाले पानी की तुलना में भूजल दोहन ने ध्रुवों को खिसकाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है।
इसका अधिक प्रभाव इसलिए भी देखने को मिला क्योंकि अधिकांश पानी उत्तरी मध्य अक्षांशों से निकाला गया था। मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत और पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका वे इलाके हैं जहां भूजल का ह्रास सर्वाधिक हुआ है। यदि भूजल को भूमध्य रेखा या ध्रुवों के करीब से निकला जाता तो यह प्रभाव कम होता।
शोधकर्ताओं का कहना है कि धुरी में यह बदलाव इतना नहीं है कि मौसमों पर असर पड़े लेकिन इससे अन्य परिघटनाओं के मापन में मदद मिलेगी। इस अध्ययन से यह जांचने में भी मदद मिलेगी कि भूजल निकासी की वजह से समुद्र स्तर में कितनी वृद्धि हुई है। इस नए अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि भूजल निकासी की वजह से 1993 से 2010 के बीच वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 6 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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