हृदय की मांसपेशियां विशिष्ट कोशिकाओं (हृदयपेशीय कोशिकाओं) से बनी होती है, जिनके सिकुड़ने से दिल धड़कता है। भ्रूण अवस्था में हृदयपेशीय कोशिकाएं अधिकतर ग्लूकोज़ और लैक्टिक एसिड से ऊर्जा प्राप्त करती हैं। लेकिन परिपक्व होने पर ये कोशिकाएं वसा अम्लों से ऊर्जा लेने लगती हैं। अब तक यह बात अनसुलझी थी कि यह परिवर्तन कैसे होता है।
अब, चूहों पर अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने बताया है कि मां के दूध में मौजूद एक अणु इस परिवर्तन को अंजाम देता है। देखा गया कि यह परिवर्तन जन्म के 24 घंटों के भीतर हो जाता है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित इन नतीजों तक पहुंचने में स्पैनिश नेशनल सेंटर फॉर कॉर्डियोवेस्कुलर रिसर्च की जीवविज्ञानी मर्सीडीज़ रिकोट और उनके साथियों को सात साल लगे हैं।
पहले उन्होंने कुछ शिशु चूहों की मांओं को वसायुक्त भोजन और कुछ चूहों की मांओं को वसा रहित भोजन खिलाया। उन्होंने देखा कि जिन शिशु चूहों ने वसा रहित आहार पाने वाली मांओं का दूध पिया था उनके हृदय असामान्य थे, और उनमें से अधिकांश शिशु चूहे जन्म के दो दिनों के भीतर मर गए थे।
फिर उन्होंने मां चूहों के दूध के घटकों का विश्लेषण किया ताकि पता चल सके कि कौन-सा अणु इसके लिए ज़िम्मेदार है। उन्होंने पाया कि इसमें गामा-लिनोलेनिक अम्ल नामक वसा अम्ल की भूमिका है; यह अणु इन्सानी मां के दूध में भी पाया जाता है। गौरतलब है कि न तो चूहों का और न ही मनुष्य का शरीर इसे बना सकता है और इसलिए इसका (GLA का) सेवन भोजन के साथ ज़रूरी है।
इसके बाद जब शोधकर्ताओं ने वसा-विहीन आहार वाली मां चूहों को GLA दिया और फिर उनका दूध शिशुओं को पिलाया तो वे ठीक होने लगे। और इन शिशु चूहों में वसा से ऊर्जा बनाने में शामिल जीन्स की गतिविधि में भी वृद्धि देखी गई।
उन्होंने वह रिसेप्टर, RXR, भी खोज लिया है जिससे हृदयपेशीय कोशिकाओं में GLA जुड़ता है। जीएलए और RXR के बीच का सम्बंध ही इन कोशिकाओं को ग्लूकोज़ की जगह वसा अम्लों से ऊर्जा बनाने की क्षमता देता है। टीम ने उन जीन्स को भी पहचाना है जो रिसेप्टर (RXR) के GLA से जुड़ने के बाद सक्रिय हो जाते हैं।
अभी यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि यही प्रक्रिया मनुष्यों में भी होती होगी या क्या इस परिवर्तन में GLA के अलावा विटामिन ‘ए’ जैसे किसी अन्य अणु की भी भूमिका हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने RXR रिसेप्टर रहित चूहे भी विकसित किए हैं। ये चूहे अन्य शोध समूहों को हृदय रोग सम्बंधी अध्ययन करने में मदद कर सकते हैं। बहरहाल, शोधकर्ता नवजात चूहों के साथ काम करना चाहते हैं, लेकिन वह थोड़ा मुश्किल है क्योंकि एक तो वे साइज़ में बहुत छोटे होते हैं, दूसरा उनके जन्म का समय अनिश्चित होता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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