वेबसाइट स्टेटिस्टा (Statista) बताती है कि ब्राज़ील, वियतनाम, कोलंबिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया और होंडुरास के बाद भारत दुनिया का छठवां सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक देश है। 2022-23 में भारत में करीब 4 लाख टन कॉफी का उत्पादन हुआ है।
डॉ. के. टी. अचया अपनी पुस्तक इंडियन फूड: ए हिस्टोरिकल कम्पेनियन में लिखते हैं कि 14वीं-15वीं शताब्दी में कॉफी मध्य पूर्व से ‘कोहा’ नाम से भारत आई, और बाद में कॉफी कहलाने लगी। कुछ ब्लॉगर्स लिखते हैं कि औपनिवेशिक अंग्रेजों ने मैसूर से युरोप तक भारतीय कॉफी का व्यावसायीकरण किया था।
स्रोत के फरवरी 2020 के अंक में प्रकाशित अपने एक लेख में मैंने लिखा था कि कॉफी एक स्वास्थ्यवर्धक पेय है। मेटा-विश्लेषण से पता चलता है कि कॉफी में कई विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। इस तरह, यह एक ऐसा स्वास्थ्यकारी पेय है जो हमारे आमाशय की कोशिकाओं को ऑक्सीकारक क्षति से बचाता है, और टाइप-2 डायबिटीज़ और बढ़ती उम्र से जुड़ी कई बीमारियों के जोखिम को कम करता है। लेकिन इसकी अति से बचना चाहिए; एक दिन में पांच कप से ज़्यादा नहीं।
दक्षिण भारतीय कॉफी वास्तव में भुने हुए कॉफी के बीज और भुनी हुई चिकरी की जड़ों के पावडरों का मिश्रण होती है। चिकरी की यह मिलावट ही दक्षिण भारतीय कॉफी को खास बनाती है।
लेकिन चिकरी है क्या? यह मूलत: युरोप और एशिया में पाई जाने वाली एक वनस्पति है। इसकी जड़ में इनुलिन नामक एक स्टार्ची पदार्थ होता है। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। यह गेहूं, प्याज़, केले, लीक (हरी प्याज़ सरीखी सब्ज़ी), आर्टिचोक (हाथी चक) और सतावरी सहित विभिन्न फलों, सब्ज़ियों और जड़ी-बूटियों में पाया जाता है।
चिकरी की जड़ हल्का-सा विरेचक (दस्तावर) असर देती है और सूजन कम करती है। यह बीटा कैरोटीन का भी एक समृद्ध स्रोत है। यह कॉफी के मुकाबले कोशिकाओं को ऑक्सीकारक क्षति से बेहतर बचाता है। इसके अलावा, चिकरी में कैफीन भी नहीं होता, जिसके कारण बेचैनी और अनिद्रा की शिकायत होती है। दूसरी ओर, कॉफी में कैफीन होता है। यही कारण है कि दक्षिण भारतीय तरीके से (कॉफी और चिकरी पाउडर मिलाकर) कॉफी बनाना एक अच्छी परम्परा लगती है: इस मिश्रण में 70 प्रतिशत कॉफी और 30 प्रतिशत चिकरी पावडर मिलाते हैं। स्वादानुसार ये प्रतिशत अलग भी हो सकते हैं।
भारत में कॉफी बागान कहां-कहां हैं? इसके अधिकतर बागान कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्रों में हैं। फिर आंध्र प्रदेश (अरकू घाटी) और ओडिशा, मणिपुर, मिज़ोरम के पहाड़ी क्षेत्रों में और पूर्वोत्तर भारत के ‘सेवन सिस्टर्स’ पहाड़ों में कॉफी के बागान हैं। चिकरी मुख्यत: उत्तर प्रदेश और गुजरात में उगाई जाती है। दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों राज्यों में ज़्यादातर लोग चाय पीते हैं, कॉफी नहीं। अच्छी बात यह है कि तुलनात्मक रूप से प्रति कप चाय में भी कम कैफीन होता है।
दुनिया के कई हिस्सों में लोग बिना दूध वाली ब्लैक कॉफी पीते हैं। इतालवी लोग कॉफी को कई तरह से बनाते हैं। मसलन एस्प्रेसो कॉफी में, उच्च दाब पर कॉफी पावडर से गर्मा-गरम पानी गुज़ारा जाता है। दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी आम तौर पर गर्म दूध डाल कर पी जाती है। कॉफी में दूध मिलाने से उसका स्वाद और महक बढ़ जाते हैं।
दरअसल, जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री के जनवरी 2023 के अंक में युनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन, डेनमार्क के शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित एक पेपर बताता है कि दूध वाली कॉफी पीना शोथ-रोधी असर दे सकता है। दूध में प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट की उपस्थिति रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने वाली कोशिकाओं को सक्रिय करने में मदद करती है।
दूध वाली कॉफी के स्वास्थ्य पर प्रभावों का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने मनुष्यों पर परीक्षण शुरू कर दिए है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कॉफी के शौकीन भारतीय लोग इस ट्रायल में ज़रूर शामिल होना चाहेंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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