दुनिया में इस सदी के आखिर तक तापमान बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास चल रहे हैं, वहीं एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती गर्मी से प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम पैदा होगा। बता दें कि युनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन के शोधकर्ताओं ने 35 हज़ार प्रजातियों पर चरम तापमान के बढ़ते प्रभाव का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष हासिल किया है।
नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं का दावा है कि यदि तापमान 2.5 डिग्री तक बढ़ा तो बढ़ती गर्मी को सहन न कर पाने की वजह से 30 फीसदी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगी। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि तापमान बढ़ोतरी 1.5 डिग्री होने पर भी 30 फीसदी प्रजातियां अपनी भौगोलिक सीमा में बेहद अधिक तापमान अनुभव करेंगी। 2.5 डिग्री की बढ़ोतरी पर यह खतरा दुगना हो जाएगा और प्रजातियों के लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में यह आवश्यक है कि जानवरों और पौधों पर जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए त्वरित प्रभाव वाले कदम उठाए जाएं।
गौरतलब है कि भारत में मौजूद जीव-जंतुओं की 29 प्रजातियां खतरे में आ गई हैं। इनका नाम इंटरनेशनल युनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की लाल सूची में शामिल हो गया है। यह सूची कनाडा में जैव विविधता सम्मेलन (कोप-15) के दौरान जारी की गई थी। सूची के इन नवीनतम आंकड़ों में चेतावनी दी गई थी कि अवैध और गैर-टिकाऊ ढंग से मछली पकड़ने, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और बीमारियों सहित कई खतरों की वजह से जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर प्रश्न चिंह लग गया है। बताते चलें कि आईयूसीएन की लाल सूची दुनिया की जैव विविधता की हालत का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। यह प्रजातियों की वैश्विक विलुप्ति के जोखिम की स्थिति के बारे में जानकारी देती है और संरक्षण लक्ष्यों को परिभाषित करने में मदद करती है। दुनिया भर के 15,000 से अधिक वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आईयूसीएन के इस आयोग का हिस्सा हैं।
उन्होंने पाया कि भारत में पौधों, जानवरों और कवकों की 9472 से अधिक प्रजातियों में से 1355 लुप्तप्राय या विलुप्त होने की श्रेणी में है। भारत की 239 नई प्रजातियों को आईयूसीएन की लाल सूची में शामिल किया गया है। इनमें से 29 प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं। इससे वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों में चिंता व्याप्त हो गई है। अगर समय रहते इस खतरे को नहीं रोका गया तो कई प्रजातियां इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी। इस पर आईयूसीएन के डायरेक्टर ब्रूनो ओबेर्ल का कहना है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से जीव-जंतुओं की हालत खस्ता है। ऐसा ही चलता रहा तो कई जीव-जंतु खत्म हो जाएंगे।
लिहाजा, हमें जैव विविधता और जलवायु के सम्बंधों को सुधारने के प्रयास तत्काल करना होंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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