यह तो सब जानते हैं कि चूहे घर के सामान का कितना नुकसान करते हैं। चूहों जैसे कृंतकों के कारण हर साल लगभग 7 करोड़ टन अनाज की भी बर्बादी होती है। वे खेतों में बोए बीजों को खोद-खोदकर खा जाते हैं और फसल बर्बाद कर देते हैं।
चूहों से निजात के लिए खेतों में बिल्लियां छोड़ने से लेकर ज़हर देने तक के कई तरीके आज़माए गए हैं। लेकिन ये सब महंगे हैं। ज़हर या कीटनाशक का छिड़काव सिर्फ एक बार करने से काम नहीं बनता। ऊपर से ये ज़हर चूहों के अलावा अन्य जीवों को भी मार देते हैं।
इसलिए शोधकर्ता कुछ ऐसे विकल्प की तलाश में थे जो जेब पर भारी न पड़े, अन्य जीवों को नुकसान न पहुंचाए और चूहों से होने वाला नुकसान कम से कम हो जाए। पूर्व अध्ययन में देखा गया था कि पक्षियों की गंध का ‘छद्मावरण’ देने से शिकारी भटक जाते हैं। शोधकर्ताओं ने पक्षियों की गंध को कुछ ऐसी जगहों पर बिखेर दिया जहां ये पक्षी वास्तव में कभी नहीं जाते थे। शुरू-शुरू में बिल्ली व इनके अन्य शिकारी जीव गंध का पीछा करते हुए अपने शिकार को ढूंढने उन जगहों पर पहुंचे थे, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने इस गंध को ‘धोखा’ मान लिया और गंध का पीछा करना छोड़ा दिया। फिर जब घोंसला बनाने के मौसम में ये पक्षी वास्तव में वहां आए तो गंध को छलावा मानकर इनके शिकारियों ने इन तक पहुंचने की चेष्टा नहीं की।
चूहे भी भोजन ढूंढने के लिए गंध पर निर्भर होते हैं। गेहूं के मामले वे गेहूं के भ्रूण से आने वाली गंध सूंघते हुए पहुंचते हैं। तो युनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के जीव वैज्ञानिक पीटर बैंक और उनके दल ने सोचा कि क्या इसी तरह चूहों को भी भटकाया जा सकता है। यह जांचने के लिए शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण इलाके के गेहूं के एक खेत को 10×10 मीटर के 60 भूखंडों में बांटा। कुछ भूखंडों पर सिर्फ गेहूं के भ्रूण की गंध छिड़की गेहूं नहीं बोए। कुछ भूखंडों में बीज भी बोए और गंध भी छिड़की। और कुछ भूखंडों में सिर्फ बीज बोकर छोड़ दिया।
पूर्व अध्ययन के हिसाब से शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि स्थानीय चूहे खाली खेतों के छलावे से समझ जाएंगे कि गंध के पीछे भागकर बीज ढूंढना ऊर्जा और समय की बर्बादी है, पर ऐसा नहीं हुआ। लेकिन गेहूं बोने के साथ गंध का छिड़काव करने का तरीका काम कर गया। जिन खेतों में गेहूं की बहुत अधिक गंध आ रही थी वहां चूहे यह पता ही नहीं कर पाए कि वास्तव में बीज हैं कहां। नेचर सस्टेनेबिलिटी की रिपोर्ट के मुताबिक गंध रहित बुवाई वाले खेतों की तुलना में गंध सहित बुवाई वाले खेतों में फसल को 74 प्रतिशत कम नुकसान हुआ।
अच्छी बात यह है कि गेहूं की गंध का छिड़काव करने के लिए आम तौर पर किसानी में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों से काम चल जाएगा। गंध के लिए गेहूं का तेल मिलों का सह-उत्पाद होता है, इसलिए इसमें कोई अतिरिक्त खर्चा भी नहीं आएगा। तो किसानों के लिए यह उपाय अपनाना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। बहरहाल, यह जानना बाकी है कि कितनी मात्रा में और कितनी बार गंध छिड़काव पर्याप्त होगा, इसे हर साल छिड़कना होगा या मात्र तब छिड़कने से काम चल जाएगा जब चूहे ज़्यादा हों। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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