कहने को तो यह बड़ी सरल-सी बात है कि हमें जब भूख लगती है तो हम खाना खा लेते हैं, और पेट भरने का एहसास होने पर खाना बंद कर देते हैं। लेकिन वास्तव में यह काफी जटिल मामला है। आपको भूख लगने और पेट भरने का एहसास दिलाने के लिए कई हार्मोन मिल-जुल कर काम करते हैं ताकि न खाने या अत्यधिक खाने के कारण शरीर और स्वास्थ्य प्रभावित न हो।
यहां भूख नियमन में लिप्त सात प्रमुख हार्मोन पर बात की जा रही है। इनमें कुछ हार्मोन जेनेटिक कारकों से प्रभावित होते हैं जबकि कुछ अन्य हार्मोंन हमारी जीवन शैली, सेहत की हालत और/या शरीर के वज़न में परिवर्तन से प्रभावित होते हैं। कुछ हार्मोन भोजन सेवन का अल्पकालिक नियमन करते हैं ताकि हम अत्यधिक भोजन करने से बच जाएं, वहीं अन्य हार्मोन शरीर में सामान्य ऊर्जा भंडार को बनाए रखने के लिए दीर्घकालिक भूमिका निभाते हैं।
लेप्टिन: लेप्टिन हार्मोन हमारे शरीर के वसा ऊतकों द्वारा बनाया जाता है। वसा कोशिकाएं तृप्ति (पेट भरने) का संकेत देने के लिए पूरे शरीर में लेप्टिन स्रावित करती हैं, जिससे भूख शांत होने का एहसास होता है और भोजन सेवन रोक दिया जाता है। 1994 में लेप्टिन के बारे में पता चलने से पहले हमें यह नहीं पता था कि शरीर के वसा भंडार मस्तिष्क के साथ कैसे संवाद करते हैं।
जो लोग मोटापे का शिकार होते हैं उनमें लेप्टिन का स्तर अधिक होता है क्योंकि या तो उनके शरीर में अधिक वसा कोशिकाएं होती हैं या उनका शरीर हार्मोन के प्रति प्रतिरोधी होता है। दूसरी ओर, यदि आप भोजन में कैलोरी की मात्रा घटाते हैं और शरीर की चर्बी घटाते हैं तो शरीर में लेप्टिन का स्तर कम हो जाता है। लेप्टिन भूखे मरने और शरीर के वसा भंडार को घटने से बचाने की कोशिश करता है। एक मायने में यह वज़न को संतुलित बनाए रखने वाला हार्मोन है।
ग्रेलीन: ग्रेलीन आमाशय में बनता है, और इसे अक्सर ‘भूख का हार्मोन’ कहा जाता है। खाने से ठीक पहले ग्रेलीन का स्तर बढ़ा हुआ होता है, और भोजन करने के बाद कम हो जाता है।
यदि आप वज़न कम करने की कोशिश में कम कैलोरी लेते हैं, तो ग्रेलीन अपने सामान्य स्तर से बढ़ा रहेगा। इससे वज़न कम करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि सामान्य से अधिक समय तक भूख का एहसास बना रहेगा या बार-बार भूख लगेगी। 2017 में ओबेसिटी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि ग्रेलीन के सामान्य से अधिक स्तर ने लोगों में खाने की लालसा बढ़ा दी थी – खासकर तले-भुने, मसालेदार या मीठे पदार्थों के लिए, और छह महीने में ही उनका वज़न काफी बढ़ गया था।
कोलेसिस्टोकायनीन (CCK): यह तृप्ति के एहसास से जुड़ा हार्मोन है। यह खाना खाने के बाद आंत में बनता है और पेट भरे होने का एहसास दिलाता है। यह आमाशय से भोजन के गुज़रने की गति को मंद करके पाचन बेहतर करता है जिससे देर तक पेट भरे होने का एहसास होता है। इसके चलते अग्न्याशय से वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का चयापचय करने वाले और अधिक द्रव और एंज़ाइम स्रावित होते हैं।
इंसुलिन: रक्तप्रवाह में शर्करा का स्तर बढ़ जाने पर अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं द्वारा इंसुलिन स्रावित किया जाता है। कार्बोहाइड्रेट के अधिक सेवन से अधिक इंसुलिन उत्पन्न होता है जो ज़्यादा ग्लूकोज़ को ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में भेजने का काम करता है। यह हार्मोन भी तृप्ति का एहसास कराता है।
कॉर्टिसोल: इसे तनाव हार्मोन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शरीर में इसका स्तर तब उच्च होता है जब आप तनाव में होते हैं। वास्तव में, कॉर्टिसोल के कई अलग-अलग कार्य होते हैं – इनमें से एक है चयापचय को नियंत्रित करना। कॉर्टिसोल का उच्च स्तर इंसुलिन के काम में बाधा डालता है और वसा भंडारण बढ़ाता है। देखा गया है कि जीर्ण तनाव की स्थिति में, कॉर्टिसोल के उच्च स्तर से भूख बढ़ जाती है खासकर मीठा, नमकीन-मसालेदार, या वसायुक्त भोजन की भूख तथा रक्त में शर्करा और इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है। न्यूरोइमेज क्लीनिकल पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि कॉर्टिसोल का अधिक स्तर भूख को उकसाता है और मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में रक्त प्रवाह को कम कर देता है जो भोजन सेवन का नियंत्रण करते हैं।
ग्लूकागोन लाइक पेप्टाइड-1 (GLP-1): GLP-1 खाना खाने के बाद आंत में मुक्त होता है। यह मस्तिष्क में रिसेप्टर्स के साथ संवाद करता है और तृप्ति का एहसास पैदा करता है। यह पाचन और आंत से भोजन गुज़रने की गति को धीमा कर देता है, जिसके कारण लंबे समय तक पेट भरे होने का एहसास होता रहता है।
ग्लूकोज़ डिपेंडेंट इंसुलिनोट्रॉपिक पॉलीपेप्टाइड (GIP): यह हार्मोन खाना खाने के बाद छोटी आंत द्वारा बनाया जाता है। यह इंसुलिन के स्तर को बढ़ाता है जो ग्लायकोजन और वसा अम्लों के निर्माण को उकसाते हैं, और वसा को टूटने को रोकते हैं। GIP की भूमिका को पूरी तरह समझना बाकी है।
ये तो हुई भूख नियंत्रण में जुड़े हार्मोन्स की भूमिकाओं की बात। इनमें गड़बड़ी भूख नियंत्रण प्रणाली को गड़बड़ा देती है, नतीजतन शरीर और स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि कुछ उपचार और जीवनशैली में कुछ बदलाव मदद कर सकते हैं। इनमें से कुछ की चर्चा यहां की जा रही है।
भरपूर नींद: भूख से जुड़े कई हार्मोन के सुचारू कामकाज के लिए पर्याप्त नींद ज़रूरी है। नींद की कमी से शरीर में कॉर्टिसोल और ग्रेलीन का स्तर बढ़ा रहता है, और लेप्टिन कम हो जाता है। ओबेसिटी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि रात में नींद की कमी से पुरुषों की तुलना में महिलाओं में लेप्टिन का स्तर अधिक कम हुआ था। और जो लोग मोटापे से ग्रस्त थे उनमें नींद की कमी के कारण ग्रेलीन का स्तर बढ़ा हुआ था।
नियमित व्यायाम: देखा गया है कि एरोबिक व्यायाम कुछ समय के लिए भूख को शांत कर देते हैं, ग्रेलीन का स्तर कम कर देते हैं और GLP-1 के स्तर को बढ़ा देते हैं। और सघन व्यायाम स्वस्थ लोगों में ग्रेलीन के स्तर को अधिक प्रभावी तरीके से कम करते हैं। लगता है कि नियमित व्यायाम इन हार्मोन को आपके पक्ष में करेंगे, और इंसुलिन को शरीर में बेहतर तरीके से काम करने में मदद करेंगे।
तनाव भगाना: जीवन एकदम ही तनावमुक्त हो, ऐसा होना तो ज़रा मुश्किल है। लेकिन खुद को तनावमुक्त रखने के उपाय करके आप भूख सम्बंधी हार्मोन्स को संतुलित रख सकते हैं।
अध्ययनों में पाया गया है कि अत्यधिक तनाव भूख घटाता है, लेकिन जीर्ण या लंबे समय के तनाव से शरीर में कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ता है। नतीजतन खाने की इच्छा बढ़ती है – खास कर उच्च कैलोरी वाली चीज़ों को खाने की।
तनाव और कॉर्टिसोल के स्तर को कम करने में सांस सम्बंधी या शारीरिक व्यायाम कारगर पाए गए हैं। बिहेवियोरल साइंसेज़ में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि मानसिक शांति के लिए किए गए 12 मिनट के सत्र, सांस सम्बंधी व्यायाम सहित, से लार के कॉर्टिसोल स्तर में कमी आई।
इसके अलावा खान-पान का ध्यान रखना (जैसे प्रोसेस्ड खाद्य का कम सेवन, भोजन में साबुत अनाज, फल, सब्ज़ियां शामिल करना) फायदेमंद होगा।
बहरहाल कभी-कभी हार्मोन का संतुलन रखने के लिए चिकित्सकीय हस्तक्षेप की ज़रूरत भी पड़ती है। मोटापे और डायबिटीज़ के इलाज के लिए GLP-1 और GIP हार्मोन पर लक्षित उपचार इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कई दवाएं मोटापा घटाने और रक्त शर्करा नियंत्रित करने में कारगर हैं। लेकिन इनका उपयोग चिकित्सकीय सलाह पर आहार, जीवनशैली में परिवर्तन और व्यायाम के साथ किया जाना चाहिए। आखिर आप पूरी तरह दवाओं पर निर्भर तो नहीं रह सकते – वे संपूर्ण समाधान नहीं हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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