हालिया जलवायु सम्मेलनों में नेट-ज़ीरो उत्सर्जन काफी चर्चा में रहा। इसमें नेट शब्द का अर्थ है कि हम सिर्फ उत्सर्जन कम करने पर नहीं बल्कि कार्बन डाईऑक्साइड को वातावरण में हटाने पर भी ध्यान दें। एक विचार यह है कि सिर्फ उत्सर्जन कम करके हम 1.5 या 2 डिग्री वृद्धि का लक्ष्य नहीं पा सकेंगे।
फिलहाल उड्डयन और नौपरिवहन ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े स्रोत हैं, और आगे भी बने रहने की संभावना है। ऐसे में बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए कार्बन डाईऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) की भी आवश्यकता है।
सीडीआर का ऐतिहासिक तरीका पेड़ लगाना रहा है, लेकिन वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड हटाकर भूमि, समुद्र या अन्य स्थानों पर संग्रहित कर देना शायद अधिक टिकाऊ साबित हो।
वर्तमान में कई कंपनियां विभिन्न सीडीआर तकनीकों को जलवायु समाधान के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं। इस विषय में प्राकृतिक कार्बन चक्र और हाल ही में सीडीआर तकनीकों पर काम कर रहे डेविड टी. हो लंबी अवधि के लिए सीडीआर तकनीकों को विकसित करने के पक्ष में तो हैं लेकिन थोड़े संशय में हैं। गौरतलब है कि पूर्व में डायरेक्ट एयर कैप्चर (डीएसी) तकनीक का छोटे स्तर पर प्रदर्शन किया गया था जो रासायनिक तरीकों से कार्बन डाईऑक्साइड को वातावरण से बाहर करती है। इसके लिए 2022 में यू.एस. बायपार्टीज़न इंफ्रास्ट्रक्चर कानून ने चार डीएसी विकसित करने के लिए 3.5 अरब डॉलर का अनुदान देने का भी निर्णय लिया था। लेकिन डेविड के अनुसार यह प्रयास तब तक व्यर्थ है जब तक प्रदूषणकारी गतिविधियों को पूरी तरह से खत्म न कर दिया जाए।
इसको इस तरह से समझें। हमें कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर को कई वर्ष पहले की स्थिति में ले जाना है। प्रत्येक डीएसी सुविधा से प्रतिवर्ष 10 लाख टन कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण से बाहर करने की उम्मीद है। अब देखिए कि 2022 में 40.5 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है। यदि डीएसी संयंत्र वर्ष भर अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करते हैं तो इससे वातावरण की स्थिति को मात्र 13 मिनट पीछे ले जाया जा सकता है। लेकिन 13 मिनट में जितनी कार्बन डाईऑक्साइड हटाई जाएगी उतने ही समय में बाकी गतिविधियां साल भर की कार्बन डाईऑक्साइड वापस वातावरण में उंडेल देंगी। अब यह देखिए कि यदि हर व्यक्ति एक पेड़ लगाए इन 8 अरब पेड़ों के परिपक्व होने के बाद हमारा वातावरण हर वर्ष 43 घंटे पीछे जा सकता है।
कुल मिलाकर इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सीडीआर तकनीकों की क्षमता कितनी सीमित है।
ऐसे में सीडीआर तकनीकों को तत्काल समाधान के रूप में देखना उचित नहीं है। आने वाले समय में जलवायु समाधानों के लिए काफी धन आवंटित होने की उम्मीद है जिसका सही दिशा में उपयोग करना आवशयक है। यदि हम कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के मौजूदा स्तर को लगभग 10 प्रतिशत यानी 4 अरब टन प्रति वर्ष तक कम करते हैं तो 10 लाख टन हटाने में सक्षम एक डीएसी संयंत्र हमें 13 मिनट के बजाय 2 घंटे से अधिक समय पीछे ले जाएगी। इस स्थिति को देखते हुए एक निर्धारित वर्ष में नेट ज़ीरो हासिल करने के लिए पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा द्वारा संचालित 4000 डीएसी सुविधाओं की आवश्यकता होगी।
इस तरह से अवशिष्ट उत्सर्जन संभवत: हमारे वर्तमान कुल उत्सर्जन का 18 प्रतिशत होगा, इसलिए नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिए कई सीडीआर स्थापित करने होंगे। तकरीबन 7290 डीएसी हब बनाना पर्याप्त होगा। साथ ही, सीडीआर विधियों की खोज के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है जो भूमि उपयोग और ऊर्जा खपत को कम करें तथा जिन्हें स्थायी और सस्ता बनाया जा सके।
फिर भी, यह ज़रूरी नहीं कि प्रयोगशाला में सुचारू रूप से काम करने वाली तकनीकें वास्तविक दुनिया में भी वैसे ही काम करेंगी। इनमें से कुछ तकनीकें जैव विविधता और पर्यावरण के लिए हानिकारक भी हो सकती हैं। यह सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है कि सीडीआर वास्तव में कितना काम कर रहा है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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