पिछले दिनों केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम संशोधन को लेकर काफी बहस चली है। इन परिवर्तनों में यह भी शामिल है कि कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में से जैव विकास सम्बंधी अंश को विलोपित कर दिया जाएगा। इस निर्णय को लेकर देश भर के वैज्ञानिकों, विज्ञान शिक्षकों और विज्ञान से सरोकार रखने वाले नागरिकों ने एक अपील जारी की है। इस अपील पर अनिकेत सुले (मुंबई), राघवेंद्र गडग्कर (बैंगलुरु), एल.एस शशिधर (बैंगलुरु), टी.एन.सी. विद्या (बैंगलुरु), एनाक्षी भट्टाचार्य (चेन्नै), डॉ. इंदुमति (चेन्नै), अमिताभ पांडे (दिल्ली), राम रामस्वामि (दिल्ली), टी.वी. वेकटेश्वर (दिल्ली), अनिंदिता भद्रा (कोलकाता), सौमित्र बैनर्जी (कोलकाता), एस. कृष्णास्वामि (मदुरै), एन. जी. प्रसाद (मोहाली), और्नब घोष (पुणे), सत्यजित रथ (पुणे), श्रद्धा कुंभोजकर (पुणे), सुधा राजमणि (पुणे), वीनिता बाल (पुणे) सहित 1800 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। प्रस्तुत है उस अपील का हिंदी रूपांतरण….
हमें ज्ञात हुआ है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल (सीबीएससी) के उच्च व उच्चतर माध्यमिक कोर्स में व्यापक परिवर्तन का प्रस्ताव है। इन परिवर्तनों को पहले कोरोना महामारी के दौरान अस्थायी उपायों के रूप में लागू किया गया था और अब इन्हें तब भी जारी रखा जा रहा है जब स्कूल वापिस ऑफलाइन शैली में लौट रहे हैं। खास तौर से हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में से जैव विकास का डार्विनियन सिद्धांत हटाया जा रहा है, जैसा कि एनसीईआरटी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी से पता चलता है (देखें: https://ncert.nic.in/pdf/BookletClass10.pdf पृष्ठ 21)।
शिक्षा के वर्तमान ढांचे में बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही कक्षा 11 या 12 में विज्ञान को अपने अध्ययन की शाखा के रूप में चुनते हैं और उनमें से भी बहुत कम जीव विज्ञान को चुनते हैं।
लिहाज़ा, कक्षा 10 तक के पाठ्यक्रम में प्रमुख अवधारणाओं को हटा देने का मतलब है कि विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या इस क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण अंश से वंचित रह जाएगी। उद्वैकासिक जीव विज्ञान का ज्ञान व समझ न सिर्फ जीव विज्ञान के उप-क्षेत्रों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए भी ज़रूरी है। विज्ञान के एक क्षेत्र के रूप में जैव विकास जैविकी का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसका इस बात पर गहरा असर होता है कि हम समाजों और राष्ट्रों के समक्ष उपस्थित विभिन्न समस्याओं से कैसे निपटने का निर्णय करते हैं। ये समस्याएं चिकित्सा, औषधियों की खोज, महामारी विज्ञान, पारिस्थितिकी और पर्यावरण, से लेकर मनोविज्ञान तक से सम्बंधित हैं। जैव विकास हमारी इस समझ को भी प्रभावित करता है कि हम मनुष्यों और जीवन के ताने-बाने के साथ उनके सम्बंधों को किस तरह देखते हैं।
हालांकि हममें से कई लोग यह बात स्पष्ट रूप से नहीं जानते लेकिन तथ्य यह है कि प्राकृतिक वरण के सिद्धांत हमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने में मदद करते हैं, जैसे – कोई महामारी कैसे आगे बढ़ती है, या प्रजातियां क्यों विलुप्त हो जाती हैं।
जैव विकास की प्रक्रिया की समझ वैज्ञानिक मानसिकता और एक तर्कसंगत विश्वदृष्टि के निर्माण के लिए भी ज़रूरी है। जिस ढंग से श्रमसाध्य अवलोकनों और गहरी सूझ-बूझ ने डार्विन को प्राकृतिक वरण के सिद्धांत तक पहुंचने में मदद की थी, वह विद्यार्थियों को विज्ञान की प्रक्रिया और आलोचनात्मक सोच के महत्व के बारे में भी शिक्षित करता है। जो विद्यार्थी कक्षा 10 के बाद जीव विज्ञान नहीं पढ़ेंगे, उन्हें इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र से संपर्क से वंचित रखना शिक्षा की प्रक्रिया का मखौल होगा।
हम वैज्ञानिक, विज्ञान शिक्षक, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में जुटे लोग और सरोकारी नागरिक स्कूली विज्ञान शिक्षा में ऐसे खतरनाक परिवर्तनों से असहमत हैं और मांग करते हैं कि जैव विकास के डार्विनियन सिद्धांत को माध्यमिक शिक्षा में बहाल किया जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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