हिंदी फिल्मों में ‘एक बाप की औलाद’ की बात कई मर्तबा की जाती है और माना जाता है कि वही सच्ची औलाद होती है। लेकिन यहां बात उस संवाद के संदर्भ में नहीं बल्कि वैज्ञानिकों द्वारा नर की कोशिकाओं से अंडे के निर्माण की हो रही है।
लंदन में हाल ही में सम्पन्न तृतीय अंतर्राष्ट्रीय मानव जीनोम संपादन सम्मेलन में यह जानकारी दी गई कि शोधकर्ताओं ने नर चूहों की कोशिकाओं से अंडे बना लिए और जब उन्हें निषेचित करके मादा चूहे के गर्भाशय में रखा गया तो उनसे स्वस्थ संतान पैदा हुई और वे स्वयं संतानोत्पत्ति में सक्षम थीं।
यह करामात करने के लिए शोधकर्ता बरसों से प्रयास कर रहे थे। मसलन, 2018 में एक टीम ने खबर दी थी कि उन्होंने शुक्राणु या अंडाणु से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं से पिल्ले पैदा किए थे जिनके दो पिता या दो मांएं थीं। दो मांओं वाले पिल्ले तो वयस्क अवस्था तक जीवित रहे और प्रजननक्षम थे लेकिन दो पिता वाले पिल्ले कुछ ही दिन जीवित रहे थे।
फिर 2020 में कात्सुहिको हयाशी ने बताया था कि किसी कोशिका को प्रयोगशाला के उपकरणों में परिपक्व अंडे में विकसित होने के लिए किस तरह के जेनेटिक परिवर्तनों की ज़रूरत होती है। इसी टीम ने 2021 में खबर दी कि वह चूहे के अंडाशय की परिस्थितियां निर्मित करके अंडे तैयार करने में सफल रही और इन अंडों ने प्रजननक्षम संतानें भी उत्पन्न कीं।
अब हयाशी और उनके साथियों ने कोशिश शुरू कर दी कि वयस्क नर चूहे की कोशिकाओं से अंडे विकसित किए जाएं। उन्होंने इन कोशिकाओं को इस तरह परिवर्तित किया कि वे प्रेरित बहुसक्षम कोशिकाएं बन गईं। टीम ने इन कोशिकाओं को कल्चर में पनपने दिया जब तक कि उनमें से कुछ कोशिकाओं ने स्वत: अपना वाय गुणसूत्र गंवा नहीं दिया। जैसा कि सब जानते हैं नर चूहों की कोशिकाओं में सामान्यत: एक वाय और एक एक्स गुणसूत्र होता है। इन कोशिकाओं को रेवर्सीन नामक एक रसायन से उपचारित किया गया। यह रसायन कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों के वितरण में त्रुटियों को बढ़ावा देता है। इसके बाद टीम ने वे कोशिकाएं ढूंढी जिनमें एक्स गुणसूत्र की दो प्रतिलिपियां थी, अर्थात गुणसूत्रों के लिहाज़ से वे मादा कोशिकाएं थीं।
इसके बाद टीम ने प्रेरित बहुसक्षम स्टेम कोशिकाओं को वे जेनेटिक संकेत दिए जो अपरिपक्व अंडा बनाने के लिए ज़रूरी होते हैं। जब अंडा बन गया तो उसका निषेचन शुक्राणु से करवाया गया और निषेचित अंडों को मादा चूहे के गर्भाशय में डाल दिया गया।
हयाशी ने सम्मेलन में बताया कि इन निषेचित अंडों (भ्रूण) की जीवन दर बहुत कम रही – कुल 630 भ्रूण गर्भाशयों में डाले गए और उनमें से मात्र 7 का विकास पिल्लों के रूप में हो पाया। लेकिन ये 7 भलीभांति विकसित हुए और वयस्क होकर प्रजननक्षम रहे।
यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, लेकिन हयाशी का कहना है कि अभी इसे एक चिकित्सकीय तकनीक बनने में बहुत समय लगेगा क्योंकि मनुष्य और चूहों में बहुत फर्क होते हैं। अभी यह भी देखना बाकी है कि क्या मूल कोशिका में जो एपिजेनेटिक बदलाव किए गए थे वे नर कोशिका से बने अंडों में सुरक्षित रहते हैं या नहीं। और भी कई तकनीकी अड़चनें आएंगी।
बहरहाल, यदि ये अड़चनें पार कर ली जाएं, तो यह तकनीक संतानहीनता की कुछ परिस्थितियों में कारगर हो सकती है। जैसे टर्नर सिंड्रोम के मामले में जहां स्त्री के दो में से एक एक्स गुणसूत्र नहीं होता या आधा-अधूरा होता है। जापान के होकाइडो विश्वविद्यालय के जैव-नैतिकताविद तेत्सुया इशी का कहना है कि यह तकनीक पुरुष (समलैंगिक विवाहित) दंपतियों को भी संतान पैदा करने का अवसर दे सकती है; हां, उन्हें सरोगेट गर्भाशय की ज़रूरत तो पड़ेगी। इसके अलावा, शायद सूदूर भविष्य में अकेला पुरुष भी अपनी जैविक संतान पैदा कर सकेगा। इस संदर्भ में सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दों पर विचार भी ज़रूरी होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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