हालिया अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि प्लास्टिक के कारण समुद्री पक्षियों का पाचन तंत्र खराब हो रहा है। बता दें कि यह पहली बार प्लास्टिक से होने वाली बीमारी का पता चला है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम प्लास्टिकोसिस रखा है। फिलहाल यह बीमारी समुद्री पक्षियों को हो रही है। लेकिन आशंका है कि भविष्य में यह कई प्रजातियों में फैल सकती है।
प्लास्टिकोसिस उन पक्षियों को हो रहा है जो समुद्र में अपना शिकार ढूंढते हैं। शिकार के साथ ही उनके शरीर में छोटे और बड़े आकार के प्लास्टिक चले जाते हैं जिनसे उनके शरीर को नुकसान होने लगता है। धीरे-धीरे वे बीमार होकर मर जाते हैं। वैज्ञानिकों ने प्लास्टिकोसिस की वजह से शरीर पर पड़ने वाले असर को भी रिकॉर्ड किया है।
इस शोध की रिपोर्ट हैज़ार्डस मटेरियल्स जर्नल में प्रकाशित हुई है। शोध के मुताबिक प्लास्टिक प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि विभिन्न उम्र के पक्षियों में प्लास्टिक की उपस्थिति के संकेत पाए गए हैं। शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया में शीयरवाटर्स पक्षी का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है। अध्ययन में बताया गया है कि पक्षियों की आहार नाल के प्रोवेन्ट्रिकुलस नामक अंग की ग्रंथियों के क्रमिक क्षय के कारण यह रोग होता है। इन ग्रंथियों की कमी से पक्षी संक्रमण और परजीवियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। ये भोजन को पचाने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
हकीकत यही है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक थैलियों, बर्तनों व अन्य प्लास्टिक से उपजा प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए नासूर बन चुका है। उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक एक ऐसा नॉन-बायोडीग्रेडबल पदार्थ है जो जल और भूमि में विघटित नहीं होता है। यह लंबे समय तक हवा, मिट्टी व पानी के संपर्क में रहने पर हानिकारक विषैले पदार्थ उत्सर्जित करने लगता है। ये विषैले पदार्थ घुलकर पानी के स्रोतों तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में यह लोगों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलाने का काम करता है। एक शोध से पता चला है कि प्लास्टिक के ज़्यादा संपर्क में रहने से खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है जिससे गर्भ में शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनाल रसायन शरीर में मधुमेह और यकृत एंज़ाइम को असंतुलित कर देता है। इसके अलावा प्लास्टिक कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे श्वसन, त्वचा और आंखों से सम्बंधित बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
सवाल है कि प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम कैसे हो? सर्वप्रथम तो प्लास्टिक के खतरों के प्रति आम लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी। साथ ही सरकारी प्रयासों को गति दी जानी चाहिए। इसमें आम लोगों की सहभागिता को सुनिश्चित किया जाना भी ज़रूरी है। इसके बिना प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण संभव नहीं हो सकेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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