विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1990 के बाद से सदी के अंत तक, 11 अरब मनुष्यों का पेट भरने की खातिर 42 करोड़ हैक्टर वन अन्य भूमि उपयोगों (जैसे कृषि, औद्योगिक और जैव ईंधन वगैरह) में तबदील करके गंवा दिए गए हैं। इसका सबसे अधिक प्रभाव भारत, चीन और अफ्रीका जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर होगा।
बढ़ते तापमान के कारण
खाद्य व कृषि संगठन द्वारा प्रकाशित वैश्विक वन संसाधन आकलन बताता है कि पृथ्वी पर 31 प्रतिशत भूमि वन से ढंकी है। जब पेड़ काटे जाते हैं तो वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड जमा होने लगती है, नतीजतन वैश्विक तापमान बढ़ता है।
वनों की कटाई के कारण ग्रीनहाउस गैसों (CO2, CH4, N2O, SO2 व CFCs) का वैश्विक उत्सर्जन 11 प्रतिशत बढ़ा है।
इस संदर्भ में हारवर्ड युनिवर्सिटी पब्लिक हेल्थ ग्रुप आगे बताता है कि वनों की कटाई के कारण डेंगू-मलेरिया जैसे रोगों के लिए ज़िम्मेदार कीटाणु बढ़ते हैं, जो मनुष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
एनवॉयरमेंटल सोसाइटी ऑफ इंडिया के डॉ. एस. बी. कद्रेकर बताते हैं कि सिर्फ पेड़ ही नहीं बल्कि मिट्टी और पानी को भी बचाना होगा। वनों की कटाई में एक प्रतिशत की वृद्धि होने से ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता में 0.93 प्रतिशत की कमी आती है, जो पेयजल के लिए कुओं और छोटे नदी-नालों पर निर्भर होते हैं।
इसके अलावा वाष्पोत्सर्जन से पेड़ वायुमंडल में पानी छोड़ते हैं, जो वर्षा के रूप में वापस ज़मीन पर गिरता है। इस तरह, वनों की कटाई के कारण दोहरी मार पड़ती है। पृथ्वी का लगभग 31 प्रतिशत थल क्षेत्र (3.9 अरब हैक्टर) वन से ढंका है। लेकिन कई देशों में खाद्य आपूर्ति, विकास और प्रौद्योगिकी के नाम पर वनों की अत्यधिक कटाई होती है।
भारत में स्थिति
भारत में कुल वनाच्छादन लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 22 प्रतिशत है। इनमें से अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के कुल क्षेत्रफल का 87 प्रतिशत क्षेत्र वन क्षेत्र है।
डॉ. पंकज सक्सेरिया बताते हैं कि अंग्रेज़ों ने लकड़ी निर्यात करने के लिए वहां एक बंदरगाह स्थापित किया था। वर्तमान सरकार की नज़र इन द्वीपों पर अपनी नौसेना का विस्तार करने के लिए और लोगों को यहां न सिर्फ सैर-सपाटा करने बल्कि बसने के लिए आकर्षित के लिए है। इसलिए इन द्वीपों को बचाने के लिए काफी कुछ करने की ज़रूरत है।
जम्मू और काश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे हिमालयी राज्यों में क्रमशः 21,000, 24,000 और 16,000 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। भारत सरकार ने इन क्षेत्रों में अंडरपास और ओवरपास राजमार्ग बनाने के लिए वनों का काफी बड़ा हिस्सा काट दिया है।
इसी तरह, गोवा में लगभग 2219 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। यहां की सरकार मुंबई और गोवा को फोर-लेन राजमार्ग से जोड़ने के लिए यहां अनगिनत पेड़ काट रही है। स्थानीय अधिकारियों द्वारा लगभग 31,000 पेड़ काटे जा चुके हैं।
इसी तरह, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) NH163 पर 45 किलोमीटर लंबी टू-लेन को फोर-लेन करने के लिए तैयार है। ऐसा करने के लिए वे तेलंगाना के चेवेल्ला मंडल में 9000 बरगद के पेड़ों को काटने के लिए तैयार हैं।
ये विशाल बरगद के पेड़ सदियों पुराने हैं, जिन्हें निज़ाम और अन्य वन-प्रेमी समूहों ने लगाया था।
निष्कर्षत:, ये वनों की कटाई के कुछ बुरे प्रभाव हैं और हमें इसका विरोध करना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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