कहावत है कि भूखे पेट भजन न होए गोपाला! लेकिन हालिया अध्ययन में देखा गया है कि चूहों को ‘उल्लू’ बनाया जा सकता है कि वे हल्की-फुल्की भूख होने पर भी भोजन की बजाय विपरीत लिंग के साथ मेलजोल को प्राथमिकता देने लगें।
यह तो मालूम था कि लेप्टिन नामक हार्मोन मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के एक समूह को सक्रिय कर भूख के एहसास को दबाता है। कोलोन विश्वविद्यालय की न्यूरोसाइंटिस्ट ऐनी पेटज़ोल्ड और उनके साथी यह देखना चाह रहे थे कि भोजन या साथी के बीच चुनाव करने में लेप्टिन की क्या भूमिका है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुछ नर चूहों को लेप्टिन दिया और उनका अवलोकन किया। अध्ययन के दौरान, पूरे दिन के भूखे चूहे भी खाने से भरे कटोरे की ओर नहीं गए (जैसी कि अपेक्षा थी) लेकिन साथ ही वे चुहियाओं के साथ मेलजोल बढ़ाते भी दिखे।
सेल मेटाबॉलिज़्म में प्रकाशित ये नतीजे सामाजिक व्यवहार में लेप्टिन की एक नई व आश्चर्यजनक भूमिका दर्शाते हैं और वैज्ञानिकों को तंत्रिका विज्ञान के एक अहम सवाल के जवाब की ओर एक कदम आगे बढ़ाते हैं – कि कैसे जीव अपनी मौजूदा ज़रूरतों के सामने विभिन्न व्यवहारों को प्राथमिकता देते हैं।
शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के तथाकथित भूख केंद्र (पार्श्व हाइपोथैलेमस) की तंत्रिकाओं की जांच की। टीम ने देखा कि लेप्टिन के प्रति संवेदी तंत्रिकाएं तब सक्रिय हुईं जब चूहे विपरीत लिंग के चूहों से मिले। ऑप्टोजेनेटिक्स नामक तकनीक की मदद से इन तंत्रिकाओं को सक्रिय करने से भी इस बात की संभावना बढ़ गई कि चूहे विपरीत लिंग के चूहों के पास जाएंगे। ये दोनों परिणाम बताते हैं कि लेप्टिन नामक हार्मोन सामाजिक व्यवहार को बढ़ावा देने में भी भूमिका निभाता है।
लेकिन जब चूहों को पांच दिन तक सीमित भोजन दिया गया तब उन्होंने साथी की बजाय भोजन को प्राथमिकता दी। अर्थात लंबी भूख ने अन्य प्रणालियों को सक्रिय कर दिया और भोजन को वरीयता मिलने लगी। लेप्टिन आम तौर पर तब पैदा होता है जब जंतु की ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति हो गई हो। तब वह अपनी अन्य ज़रूरतों पर ध्यान दे सकता है, अपने व्यवहार की प्राथमिकताएं बदल सकता है।
शोधकर्ताओं ने उन तंत्रिकाओं का भी अध्ययन किया जो न्यूरोटेंसिन नामक हार्मोन बनाती हैं – यह हार्मोन प्यास से सम्बंधित है। देखा गया कि इन तंत्रिकाओं की सक्रियता ने भोजन या सामाजिक व्यवहार की बजाय प्यास बुझाने को तवज्जो दी।
चूहों में लेप्टिन और सामाजिक व्यवहारों के बीच सम्बंध समझकर इस बारे में समझा जा सकता है कि क्यों ऑटिज़्म से ग्रस्त कुछ लोग खाने की विचित्र प्रकृति दर्शाते हैं, या बुलीमिया से ग्रस्त कुछ लोगों में सामाजिक भय (सोशल फोबिया) दिखता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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