मानव गतिविधियों से न जाने कितने प्राकृतिक स्थलों की दुर्दशा हो गई है। इन्हीं में से एक है इटली की बेगनोली खाड़ी, जिसमें समुद्री जीवन लगभग शून्य हो चुका है। ताज़ा अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बेगनोली खाड़ी की तलछट में बचे रह गए पर्यावरणीय डीएनए (तलछटी डीएनए) की मदद से 200 साल पीछे तक का जैविक इतिहास खंगाला और इस पारिस्थितिक तंत्र के तबाह होने की क्रमिक तस्वीर निर्मित की। ऐसी जानकारी बेगनोली खाड़ी और अन्य खस्ताहाल पारिस्थितिकी तंत्रों की बहाली में मददगार हो सकती है।
दरअसल औद्योगिक क्रांति से पहले, लगभग 1827 तक बेगनोली खाड़ी स्वस्थ और सुंदर हुआ करती थी। इसमें नेपच्यून घास उगा करती थी और यह कृमियों, समुद्री स्क्वर्ट्स, स्पॉन्ज और छोटे प्लवकों जैसे जीवों का घर हुआ करती थी। लेकिन 20वीं शताब्दी के आरंभ तक, स्टील और एस्बेस्टस संयंत्र बनने के साथ खाड़ी के बीच मौजूद द्वीप को मुख्य ज़मीन से जोड़ने के लिए पुल बने। इन गतिविधियों ने इसकी समुद्री घास को तबाह कर दिया था, जिससे इस पर निर्भर जीवन भी प्रभावित हुआ। नतीजतन खाड़ी प्रदूषित होती गई और इसका पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाता गया।
ऐसा नहीं था कि खाड़ी की बहाली के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे थे। यह अध्ययन बहाली के इन्हीं प्रयासों के चलते किया गया था। दरअसल बहाली के लिए उठाए गए कदमों से खाड़ी का प्रदूषण तो काफी हद तक कम हो गया था, लेकिन इसके पारिस्थितिक तंत्र में कोई खास सुधार नहीं हो सका था।
पारिस्थितिक तंत्र की बहाली के लिए यह पता होना ज़रूरी है कि मानव दखल या औद्योगिक क्रांति से पहले आखिर यह था कैसा? इसमें कौन से जीव, प्रजातियां, पौधे वगैरह वापस लाए जाएं और किस हिसाब से वापस लाए जाएं।
इसके लिए दो समुद्री पारिस्थितिकीविदों एंटॉन डॉर्न ज़ुऑलॉजिकल इंस्टीट्यूट की लॉरेना रोमेरो और अर्बिनो युनिवर्सिटी के मार्को कैवलियरे ने सोचा कि इसकी तलछट में मौजूद डीएनए इसकी पूर्वस्थिति के सुराग दे सकते हैं।
तलछटी डीएनए के अध्ययन से शोधकर्ता न सिर्फ मानव दखल से पहले और बाद की खाड़ी की तस्वीर बना पाए बल्कि वे यह भी पता कर पाए कि समय के साथ धीरे-धीरे खाड़ी किस तरह बदहाल होती गई। तलछटी डीएनए के अध्ययन का फायदा यह है कि तलछट परत-दर-परत जमा होती है, और हर परत में मौजूद डीएनए उस काल विशेष के जीवन के बारे में बता सकते हैं। खाड़ी की परतों के नमूनों में शोधकर्ताओं को कुछ अनजानी प्रजातियों के डीएनए भी मिले।
इस लिहाज से तलछटी डीएनए का अध्ययन किसी पारिस्थितिक तंत्र की बहाली के लिए एक उम्दा तरीका लगता है लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। मसलन, डीएनए समय के साथ क्षतिग्रस्त होते जाते हैं। संभावना है कि इसमें कई प्रजातियां छूट जाएं। इसलिए इसे पारिस्थितिकी पता करने के कई तरीकों में से एक तरीके के तौर पर देखा जाना चाहिए न कि एकमात्र तरीके के तौर पर। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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