पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित हुई। रिपोर्ट में अमेरिकन सोसायटी ऑफ ह्यूमैन जेनेटिक्स (एएसएचजी) ने अपने विगत 75 सालों के इतिहास की समीक्षा की है और अपने कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों की यूजेनिक्स आंदोलन में भूमिका के लिए क्षमा याचना की है। साथ ही सोसायटी ने इस बात के लिए माफी मांगी है कि समय-समय पर उसने जेनेटिक्स के क्षेत्र में हुए सामाजिक अन्याय और क्षति को अनदेखा किया और विरोध नहीं किया।
एएसएचजी की स्थापना 1926 में हुई थी और आज इसके लगभग 8000 सदस्य हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थापना के समय से लेकर 1972 तक सोसायटी के निदेशक मंडल के कम से कम 9 सदस्य/अध्यक्ष अमेरिकन यूजेनिक्स सोसायटी के सदस्य रहे। रिपोर्ट में जिन अन्यायों की चर्चा की गई है, उनमें एएसएचजी के मुखियाओं द्वारा जबरन नसबंदियों का समर्थन और जेनेटिक्स का उपयोग अश्वेत लोगों के प्रति भेदभाव को जायज़ ठहराने के लिए करने जैसी घटनाएं शामिल हैं।
दरअसल, इस समीक्षा की प्रेरणा यूएस के मिनेसोटा में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लायड की एक पुलिस अधिकारी द्वारा हत्या के जवाब में उभरे नस्लवाद विरोधी आंदोलन से मिली थी।
गौरतलब है कि यूजेनिक्स और उसके समर्थकों की धारणा रही है कि मनुष्यों में जो अंतर नज़र आते हैं वे मूलत: उनकी जेनेटिक बनावट से उपजते हैं। इसलिए ये लोग मानते हैं कि मानव समाज में बेहतरी के लिए ज़रूरी है कि कतिपय लोगों को अधिक से अधिक प्रजनन का मौका मिले और कुछ समुदायों को प्रजनन करने से रोका जाए। और तो और, यूजेनिक्स के समर्थक मानते हैं कि अपराध की प्रवृत्ति, शराबखोरी की लत जैसी सामाजिक बुराइयों की जड़ें भी जेनेटिक्स में हैं।
यूजेनिक्स के आधार पर नस्लों को जायज़ ठहराने के प्रयास हुए हैं। जर्मनी में यहूदियों के संहार को भी इसी आधार पर जायज़ ठहराया गया था कि इससे समाज उन्नत होगा।
रिपोर्ट में ऐसी कई बातों का खुलासा किया गया है जब सोसायटी के प्रमुख सदस्यों ने यूजेनिक्स-प्रेरित कदमों का समर्थन किया। साथ ही यह भी कहा गया है कि कई बार सोसायटी ने यूजेनिक्स की धारणा पर हो रहे शोध का समर्थन तो नहीं किया लेकिन खुलकर विरोध भी नहीं किया। अंतत: 1990 के दशक में सोसायटी ने यूजेनिक्स सिद्धांतों के विरोध में स्पष्ट वक्तव्य प्रकाशित किए।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जब 1960 के दशक में जेनेटिक्स का दुरुपयोग सामाजिक भेदभाव को जायज़ ठहराने के लिए किया जा रहा था, तब भी सोसायटी मौन रही। उदाहरण के लिए कुछ वैज्ञानिकों ने यह विचार प्रस्तुत किया कि अश्वेत लोग अपनी जेनेटिक बनावट के चलते बौद्धिक रूप से हीन होते हैं। इसी प्रकार से सिकल सेल रोग की जेनेटिक प्रकृति के बारे में गलतफहमियों को पनपने दिया गया, जिसके चलते अश्वेत लोगों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा मिला।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सोसायटी ने समय-समय पर जेनेटिक्स के अनैतिक प्रयोगों के प्रति कोई विरोध दर्ज नहीं किया था। इन प्रयोगों में कुछ समुदायों की जेनेटिक सूचनाओं का इस्तेमाल समुदाय की अनुमति/स्वीकृति के बगैर किया गया था। अलबत्ता, यह भी स्पष्ट किया गया है कि आम तौर पर जेनेटिक्स अनुसंधान के क्षेत्र और सोसायटी ने हाल के वर्षों में ऐसे अन्यायों की खुलकर निंदा की है।
दरअसल. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रिपोर्ट सोसायटी के इतिहास की समीक्षा तो है ही, लेकिन यह जेनेटिक्स के लगातार फैलते क्षेत्र की भावी चुनौतियों और मुद्दों को भी व्यक्त करती है। इस लिहाज़ से यह एक साहसिक व महत्वपूर्ण रिपोर्ट है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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