इतना तो साफ है कि आने वाले वर्षों में चांद की यात्राओं में खूब इजाफा होने वाला है। कई सरकारी-निजी अंतरिक्ष एजेंसियां चांद पर स्थायी मुकाम बनाने की कोशिश में हैं। इन कोशिशों की कई चुनौतियां हैं। उनमें से एक है कि चांद पर समय क्या है। अर्थात किसी समय चांद पर कितने बज रहे हैं।
बात का थोड़ा खुलासा किया जाए। हम सब जानते हैं कि पृथ्वी पर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय होता है। इन अंतरों की भलीभांति गणना करके हमने अलग-अलग जगहों के समयों का मिलान करना सीख लिया है। लेकिन चांद के लिए ऐसा नहीं हुआ है। आखिर चांद पर भी तो अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय होते होंगे।
फिलहाल चांद का अपना कोई समय का पैमाना नहीं हैं। सारे अंतरिक्ष अभियान अपना पैमाना इस्तेमाल करते हैं। हां, इतना ज़रूर है कि इसे को-ऑर्डिनेटेड युनिवर्सल टाइम (utc) से जोड़ दिया जाता है। utc के आधार पर ही पृथ्वी की घड़ियां तालमेल रखती हैं। लेकिन यह तरीका थोड़ा बेढंगा है और सारे अंतरिक्ष यान एक-दूसरे के साथ समय का तालमेल बनाकर नहीं रखते। चंद्रयानों की संख्या सीमित हो, तो यह ठीक-ठाक काम करता है लेकिन कई सारे यान एक साथ चलेंगे तो मुश्किल होगी। और अभी तो यह भी स्पष्ट नहीं कि क्या चांद पर पृथ्वी के मानक समय का उपयोग किया जाएगा या उसका अपना utc होगा। चांद के लिए घड़ियां बनाने का काम इस निर्णय पर टिका होगा।
और निर्णय जल्दी करना होगा। अन्यथा तमाम अंतरिक्ष एजेंसियां अपने-अपने समाधान बनाकर लागू करने लगेंगी और अफरा-तफरी मच जाएगी।
इस निर्णय की अर्जेंसी का एक कारण यह भी है कि चांद के लिए एक ग्लोबल सेटेलाइट नेविगेशन सिस्टम (जीएनएसएस) स्थापित करने की बातें चल रही हैं। यह जीपीएस जैसा कुछ होगा। जैसा कि विदित है जीपीएस हमें पृथ्वी पर चीज़ों की स्थिति चिंहित करने में मदद करता है। अंतरिक्ष एजेंसियां 2030 तक जीएनएसएस स्थापित कर देना चाहती हैं। युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने इसे लेकर परियोजनाएं शुरू भी कर दी हैं।
अब तक होता यह आया है कि चंद्रमा पर जाने वाले सारे अभियान अपनी स्थिति को चिंहित करने के लिए पृथ्वी से भेजे गए रेडियो संकेतों का उपयोग करते हैं। लेकिन बहुत सारे यान होंगे तो इस व्यवस्था को संभालना तकनीकी रूप से मुश्किल होगा।
इस दिक्कत से निपटने के लिए 2024 से नासा और युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी पृथ्वी से भेजे जाने वाले दुर्बल संकेतों का परीक्षण करेंगे। इसके बाद योजना यह है कि चांद के इर्द-गिर्द कुछ सेटेलाइट इसी काम के लिए स्थापित कर दिए जाएंगे और हरेक पर अपनी-अपनी परमाणविक घड़ी होगी। इन सेटेलाइट से प्राप्त संकेतों की मदद से प्रत्येक यान अपनी स्थिति की गणना करेगा।
एक समस्या यह आ सकती है कि पृथ्वी के समान चांद पर भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय होंगे। वैसे तो सब लोग एक सार्वभौमिक समय से तालमेल बना सकते हैं लेकिन यदि लोग वहां रहेंगे तो चाहेंगे कि सूर्योदय-सूर्यास्त से तालमेल रहे।
इसके बाद एक सैद्धांतिक समस्या है। वैसे तो एक सेकंड की परिभाषा हर जगह एक ही है लेकिन विशिष्ट सापेक्षता का सिद्धांत कहता है कि जितना शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण होगा, घड़ियां उतनी धीमी चलेंगी। चांद का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में कम है, जिसका तात्पर्य है कि पृथ्वी के किसी प्रेक्षक को चांद की घड़ियां तेज़ चलती नज़र आएंगी। एक अनुमान के मुताबिक 24 घंटे की अवधि में चांद की घड़ी 56 माइक्रोसेकंड आगे निकल जाएगी। और तो और, चांद पर घड़ी की स्थिति से भी फर्क पड़ेगा।
कहा यह जा रहा है कि पृथ्वी और चांद के बीच सामंजस्य बैठाने का कोई तरीका निकालना होगा। इसमें एक बात का ध्यान रखना होगा। यदि चांद का समय पृथ्वी के तालमेल से चलता है, तो कोई युक्ति रखनी होगी कि यदि चांद और पृथ्वी का कनेक्शन टूट जाए तो भी काम चलता रहे। ज़्यादा महत्वाकांक्षी लोग कह रहे हैं कि यह व्यवस्था ऐसी होनी चहिए कि जब हम दूरस्थ ग्रहों पर कदम रखें, तब भी काम कर सके।
अंतत:, अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की रुचि है कि वर्तमान इंटरनेट के समान एक सौरमंडलीय इंटरनेट बनाया जाए। इसके लिए समय के सामंजस्य की कोई युक्ति तो अनिवार्य है। उसी की जद्दोजहद जारी है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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