साल 2022 में भारतीय विज्ञान लगातार नई सफलताओं और उपलब्धियों की ओर अग्रसर रहा। वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं ने अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर टीका निर्माण में आत्मनिर्भरता का परिचय दिया।
भारत में पिछले वर्ष अंतरिक्ष को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया, जिसकी झलक 2022 में दिखाई दी। गुज़रे साल नवंबर में देश का पहला प्राइवेट रॉकेट लॉन्च किया गया। इस रॉकेट का नाम महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम एस’ रखा गया है। यह दुनिया का पहला ऑल कम्पोज़िट रॉकेट है। इसका निर्माण हैदराबाद की स्टार्ट अप कंपनी स्कायरूट एयरोस्पेस ने किया ने किया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-2 ऑर्बाइटर ने चंद्रमा पर पहली बार प्रचुर मात्रा में सोडियम का पता लगाया। यह काम ऑर्बाइटर में लगे एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर ने कर दिखाया। इससे चंद्रमा पर सोडियम की सटीक मात्रा का पता लगाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। चंद्रयान-2 श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई 2019 में लॉन्च किया गया था।
देश के वैज्ञानिकों ने पहली बार मंगल ग्रह पर भवन निर्माण के लिए अंतरिक्ष ईंट बनाई। इसरो और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलूरू के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष ईंटें बनाने के लिए मंगल की प्रतिकृति मिट्टी, यूरिया और एक बैक्टीरिया (स्पोरोसारसीना पाश्चुरी) का उपयोग किया।
इसरो ने 23 अक्टूबर को जीएसएलवी-एमके-3 के ज़रिए 36 व्यावसायिक उपग्रहों का एक साथ सफल प्रक्षेपण कर नया इतिहास रचा। इसी वर्ष 26 नवंबर को ‘ओशनसेट’ उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया और जम्मू में उत्तर भारत का पहला अंतरिक्ष केंद्र शुरु हुआ। राज्य सभा में बताया गया कि इसरो अंतरिक्ष में पर्यटन क्षमताओं का विकास कर रहा है।
फरवरी में ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ उत्सव भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों का गवाह बना। इसका आयोजन 22 से 28 फरवरी के दौरान देश के 75 स्थानों पर किया गया था। इस उत्सव की थीम थी: ‘दीर्घकालीन भविष्य के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण की ज़रूरत’।
संसद में परिपाटी से दूर डिजिटल बजट पेश किया गया। सौर ऊर्जा और रसायन मुक्त खेती को विशेष प्राथमिकता दी गई। विज्ञान से जुड़े विभागों – डीएसटी, डीबीटी और डीएसआईआर के बजट में दो हज़ार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की गई। इन तीनों मंत्रालयों ने कोविड-19 महामारी से निपटने में अहम भूमिका निभाई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को 2653.51 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। महासागरीय मिशन को बढ़ावा देने के लिए 650 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया। देश के गगन यान सहित चंद्रयान और आदित्य एल-1 जैसे बड़े अभियानों को ध्यान में रखते हुए इसरो को 13,700 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। स्टार्ट अप को प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञान बजट में धनराशि बढ़ाई गई।
इसी साल भारत ने महिलाओं को गर्भाशय-ग्रीवा (सरवाइकल) कैंसर से बचाने के लिए क्वाड्रिवेलेंट एचपीवी वैक्सीन लॉन्च की। इस स्वदेशी वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने मिलकर बनाया है। भारत ने 18 महीनों के में दो सौ करोड़ कोविड टीके लगाए और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।
गुज़रे साल आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर 5 जुलाई से 17 सितंबर के बीच 75 दिवसीय ‘स्वच्छ सागर, सुरक्षित सागर’ महाअभियान आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य महासागरों के बारे में जागरूकता पैदा करना था।
इसी साल जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) की स्थापना का एक दशक पूरा हुआ। इस सिलसिले में 09-10 जून के दौरान नई दिल्ली के प्रगति मैदान में बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो का आयोजन किया गया था। यहां जैव प्रौद्योगिकी के अब तक के सफर और नवीनतम उपलब्धियों की झलक दिखाई दी।
जम्मू की ‘पल्ली’ देश की पहली कार्बन उदासीन पंचायत बन गई। गुज़रे साल देश की पहली स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित बस लॉन्च की गई। इसी साल मध्यप्रदेश हिंदी में चिकित्सा विज्ञान (एमबीबीएस) पाठ्यक्रम शुरु करने वाला देश का पहला राज्य बन गया। 16 अक्टूबर को एमबीबीएस प्रथम वर्ष के लिए हिंदी में प्रकाशित तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ।
भारत की पहली नाइट स्काई सेंक्चूरी लद्दाख में बनाई जाएगी। गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। सेमीकंडक्टर का उपयोग कारों से लेकर मोबाइल फोन और एटीएम कार्ड के निर्माण में किया जाता है। अनुमान है कि 2026 तक भारत का सेमीकंडक्टर बाज़ार 64 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
17 सितंबर को नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया। बड़े मांसाहारी जंगली जानवरों के अंतर महाद्वीपीय स्थानांतरण की यह विश्व की पहली परियोजना है। इसी साल चीतों को भारत लाने के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे।
जनवरी, 2022 में हैदराबाद में देश के प्रथम ओपन रॉक म्यूज़ियम का शुभारंभ हुआ। इस म्यूज़ियम में भारत के विभिन्न भागों से एकत्रित की गई 35 अलग-अलग प्रकार की चट्टानें प्रदर्शित की गई हैं। म्यूज़ियम का उद्देश्य जन सामान्य को रोचक भू-वैज्ञानिक जानकारियों से परिचित कराना है।
साइंस सिटी अहमदाबाद में पहली बार देश के सभी राज्यों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रियों का सम्मेलन हुआ, जिसमें वर्ष 2047 का वैज्ञानिक रोडमैप तैयार करने पर विमर्श हुआ।
अक्टूबर में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की शोध प्रयोगशालाओं के प्रमुखों की बैठक में अनाज और बाजरे की नई किस्मों में पौष्टिकता बढ़ाने के लिए तकनीकी समाधान पर विचार किया गया। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ (आईवाईएम) घोषित किया है। भारत मोटे अनाज पैदा करने वाले अग्रणी देशों में शामिल है। विश्व पैदावार में भारत का अनुमानित योगदान लगभग 41 फीसदी है।
इसी वर्ष भारत की पहली तरल दर्पण दूरबीन उत्तराखंड में आर्यभट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ आब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ की देवस्थल वेधशाला परिसर में स्थापित की गई। इसे भारत सहित तीन देशों के वैज्ञानिकों के सहयोग से स्थापित किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तरल दर्पण दूरबीन खगोलीय दृश्यों के अवलोकन के साथ ही अंतरिक्ष मलबे, क्षुद्रग्रह आदि परिवर्तनशील वस्तुओं की पहचान में भी मददगार होगी।
9 अक्टूबर को गुजरात का मोढेरा गांव देश का पहला ऐसा गांव बन गया, जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से चलेगा। दिन में सोलर पैनल से और रात को बैटरी से बिजली की आपूर्ति की जाएगी।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मेज़बानी में दूसरी संयुक्त राष्ट्र भू-स्थानिक सूचना कांग्रेस 10-14 अक्टूबर के दौरान हैदराबाद में संपन्न हुई, जिसमें 120 देशों के लगभग 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस आयोजन में विचार मंथन का मुख्य विषय ‘जियो इनेबलिंग दी ग्लोबल विलेज, नो वन शुड बी लेफ्ट बिहाइंड’ चुना गया था। भू-स्थानिक यानी जियो स्पेशियल डैटा सभी क्षेत्रों में विकास रणनीतियों और जनहित योजनाओं को तैयार करने में बेहद उपयोगी है। यही नहीं पिछड़े क्षेत्रों की पहचान करके उनके आर्थिक और सामाजिक विकास में इसकी अहम भूमिका सामने आई है। सटीक भू-स्थानिक सूचनाओं ने कोविड-19 महामारी से कारगर ढंग से निपटने में बहुत सहायता की थी।
साल 2022 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने जेनेटिक रूप से परिवर्तित (जीएम) सरसों को मंज़ूरी दे दी। हमारे यहां जीएम फसलों का पर्यावरण पर पड़ने वाले कुप्रभावों को लेकर विरोध हो रहा है। देश में पिछले दो दशकों से जीएम फसलों की खेती की अनुमति को लेकर विभिन्न मंचों पर बहस जारी है।
इसी वर्ष रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के 175 वर्ष पूरे हुए। यह 1847 में स्थापित देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज था। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की का विश्व स्तरीय शिक्षा देने के साथ शोधकार्यों में भी अहम योगदान रहा है। यह वही संस्थान है, जिसने देश को सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विभिन्न नवाचार दिए हैं।
इसी वर्ष होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (एचएसटीपी) के 50 वर्ष पूरे हुए। यह कार्यक्रम 1972 में किशोर भारती और फ्रेंड्स रूरल सेंटर ने मिलकर शुरू किया था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों के स्कूली बच्चों के विज्ञान शिक्षण में नवाचारों को बढ़ावा देना था। विज्ञान शिक्षण के इस अभिनव कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के 14 ज़िलों की लगभग 600 माध्यमिक शालाओं के बच्चों के बच्चे शामिल थे।
मौलिक चिंतक और वैज्ञानिक डॉ. अनिल सद्गोपाल और उनके सहयोगियों ने इस कार्यक्रम से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और उच्च विज्ञान शिक्षण संस्थाओं को जोड़ने में सफलता प्राप्त की। बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम से प्रभावित होकर होशंगाबाद जिले की सभी सरकारी/निजी माध्यमिक शालाओं को इससे जोड़ दिया। वर्ष 1982 में एकलव्य की स्थापना के साथ एचएसटीपी ने नए दौर में प्रवेश किया।
जनवरी में रॉकेट विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. एस. सोमनाथ को इसरो का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उन्होंने स्वदेशी क्रॉयोजेनिक इंजन और पीएसएलवी के ग्यारह सफल प्रक्षेपणों में अहम भूमिका निभाई है। इसी वर्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एन. कलैसेल्वी को सीएसआईआर का महानिदेशक नियुक्त किया गया। वे इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला वैज्ञानिक हैं। विज्ञान जगत की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका नेचर ने वर्ष 2023 के लिए चुने गए पांच विषिष्ट व्यक्तियों की सूची में डॉ. एन. कलैसेल्वी को भी शामिल किया है। केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान कराईकुडी में निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक रह चुकी डॉ. कलैसेल्वी ने लीथियम आयन बैटरी के क्षेत्र में शोध कार्य के लिए ख्याति प्राप्त की है।
नेशनल साइंस फाउंडेशन की रिपोर्ट के एक अनुसार भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों की ग्लोबल रैंकिंग में सातवें पायदान से तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन वर्षों में भारतीय वैज्ञानिक पेटेंट दुगने हो गए।
जुलाई में डोंगरी भाषा में विज्ञान लोकप्रियकरण की प्रथम पत्रिका का प्रकाशन विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली, के सहयोग से आरंभ हुआ। गुज़रे साल एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत जयपुर से दैनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाचार पत्र का ऑनलाइन संस्करण प्रकाशित किया गया।
सितंबर में सूरत में आयोजित एक कार्यक्रम में देश की सबसे लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका विज्ञान प्रगति को राष्ट्रीय राजभाषा कीर्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। इसका प्रकाशन 1952 में सीएसआईआर के प्रकाशन निदेशालय ने आरंभ किया था। यह पत्रिका देश भर के विज्ञानप्रेमी पाठकों द्वारा पढ़ी जाती है, जिनमें विद्यार्थियों से लेकर अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक तक सम्मिलित हैं।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर पिछले साल विज्ञान संचार और विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाली दो संस्थाओं और नौ लोगों को पुरस्कृत किया गया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में विशेष योगदान के लिए केरल की पी. एन. पणिक्कर फाउंडेशन को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। नवाचारों और परंपरागत तरीकों से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में विशेष योगदान के लिए उत्तरप्रदेश के नेशनल एसोसिएशन फॉर वालंटरी इनिशिएटिव एंड कोऑपरेशन को पुरस्कृत किया गया।
इस वर्ष पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री पुरस्कारों से सम्मानित व्यक्तियों में आठ वैज्ञानिक भी शामिल हैं। भारतीय मूल के खाद्य वैज्ञानिक डॉ. संजय राजाराम ने गेहूं की 480 से ज़्यादा किस्में विकसित की हैं, जिन्हें लगभग 51 देशों में उगाया जा रहा है। उन्हें यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया है। उन्हें सन 2001 में पद्मश्री और 2014 में विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
कर्नाटक के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सुब्बन्ना अय्यप्पन, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता की प्रो. संघमित्रा बंद्योपाध्याय, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, भुवनेश्वर के कुलपति प्रो. आदित्य प्रसाद दास, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के पूर्व निदेशक (रिसर्च), निम्बकर कृषि अनुसंधान संस्थान, फलटण, महाराष्ट्र के डॉ. अनिल कुमार राजवंशी, स्वतंत्र शोधकर्ता, प्रयागराज उत्तरप्रदेश के डॉ. अजय कुमार सोनकर और राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डॉ. जयंत कुमार मगनलाल व्यास को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। मध्यप्रदेश के चिकित्सक डॉ. नरेन्द्र प्रसाद मिश्रा को भोपाल गैस पीड़ितों और कोविड-19 के लिए उपचार प्रोटोकॉल विकसित करने में विशेष योगदान के लिए मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
हिंदी दिवस पर आयोजित विशेष समारोह में मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित गुणाकर मुले सम्मान ‘इलेट्रॉनिकी आपके लिए’ पत्रिका के संपादक संतोष चौबे को प्रदान किया गया। उन्हें यह सम्मान हिंदी में विज्ञान लेखन को बढ़ावा देने के लिए दिया गया है।
23 मई को वरिष्ठ विज्ञान लेखक शुकदेव प्रसाद का देहांत हो गया। इलाहाबाद में जन्मे शुकदेव प्रसाद ने स्वतंत्र विज्ञान पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई। उन्होंने समाचार पत्रों, संवाद एजेंसियों और विज्ञान पत्रिकाओं में लगभग तीन हज़ार आलेख लिखे। विज्ञान भारती और विज्ञान वैचारिकी पत्रिकाओं का संपादन भी किया। शुकदेव प्रसाद ने विज्ञान कथाओं पर केंद्रित छह खंडों में प्रकाशित विज्ञान कथा कोश का संपादन किया। उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले, जिनमें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, डॉ. आत्माराम और मेघनाथ साहा पुरस्कार उल्लेखनीय हैं।
वर्ष 2022 के दौरान छह भारतीय वैज्ञानिकों की जन्मशती मनाई गई। शुरुआत नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. हरगोविन्द खुराना की जन्मशती से हुई। 9 जनवरी 1922 को जन्मे डॉ. खुराना को कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण में जेनेटिक कोड की भूमिका पर मौलिक अनुसंधान के लिए 1968 में चिकित्सा विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आज विश्व भर में प्रयुक्त हो रही जीनोम सीक्वेंसिंग तकनीक के पुरोधा डॉ. हरगोविन्द खुराना थे।
जनवरी में ही राजेश्वरी चटर्जी की जन्मशती मनाई गई। 24 जनवरी 1922 को जन्मी राजेश्वरी चटर्जी को कर्नाटक से पहली महिला इंजीनियर होने का विशेष सम्मान प्राप्त है। उन्होंने माइक्रोवेव और एंटीना इंजीनियरिंग में विशेष योगदान किया। राजेश्वरी चटर्जी के शोधकार्य का उपयोग अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में किया गया।
30 जनवरी को विख्यात न्यूरोसर्जन प्रो. बी. रामामूर्ति की जन्मशती पर विभिन्न आयोजन हुए और उन्हें याद किया गया। भारत में उन्हें न्यूरो सर्जरी के पितृ पुरुष का सम्मान प्राप्त है। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान एकेडमी (इन्सा) का मानद सदस्य नियुक्त किया गया था।
प्रो. जी. एस. लड्ढा का जन्मशती के मौके पर स्मरण किया गया। 26 अगस्त 1922 को जन्मे केमिकल इंजीनियर जी. एस. लड्ढा ने आज़ादी के पहले देश में अनेक रासायनिक उद्योगों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान किया था। प्रो. लड्ढा ने भौतिकी में क्रिस्टल ग्रोथ में विशेष शोधकार्य किया था।
वर्ष 2022 में वैज्ञानिक येलावर्ती नायुडम्मा की जन्मशती पर सीएसआईआर की मद्रास स्थित केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान प्रयोगशाला में विचार गोष्ठियों का आयोजन हुआ। नायुडम्मा का जन्म 10 सितंबर 1922 के दिन हुआ था। उन्होंने केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान प्रयोगशाला में एक छोटे से पद से अपना करियर शुरू किया और आगे चलकर इसी संस्थान के निदेशक और बाद में सीएसआईआर के महानिदेशक पद तक पहुंचे। उन्हें पद्मश्री सहित अनेक राष्ट्रीय सम्मान मिले।
इसी साल अक्टूबर में डॉ. जी. एन. रामचंद्रन की जन्मशती मनाई गई। वे उन कुछ चुनिंदा भारतीय वैज्ञानिकों में शामिल थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कोलेजन की ट्रिपल हेलिकल संरचना का विचार प्रस्तुत किया था। इस महत्त्वपूर्ण खोज ने उन्हें विश्व भर में प्रसिद्धि दिलाई थी। उन्हें 1961 में शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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