दक्षिण भारतीय पूजा और उत्सवों में केला एक अनिवार्य चीज़ है। लोग मंदिरों, शादी स्थलों और जश्नों के प्रवेश द्वारों को केले के पेड़ों से सजाते हैं, देवी-देवताओं को केला चढ़ाते हैं, और भोजन परोसने के लिए केले के पत्ते का उपयोग थाली की तरह करते हैं (तरल व्यंजनों तक के लिए कटोरी या चम्मच वगैरह का उपयोग नहीं करते)।
केले के पत्ते पर रसम भात खाना एक कला है। हालांकि इन दिनों किसी भी रेस्तरां में केले की ‘आधुनिक’ प्लेट (पत्तल) मिल सकती है, जिसमें सुविधा के लिए सूखे केले के पत्तों को आपस में सिल दिया जाता है।
एक पवित्र फल
विज्ञान लेखिका जे. मीनाक्षी बीबीसी में लिखती हैं कि केले का पेड़ प्रजनन और सम्पन्नता की दृष्टि से भगवान बृहस्पति के तुल्य माना जाता है। इसलिए इसे पवित्र माना जाता है।
डॉ. के. टी. अचया ने अपनी पुस्तक इंडियन फूड: ए हिस्टॉरिकल कम्पैनियन में लगभग 400 ईसा पूर्व बौद्ध साहित्य में केले का उल्लेख बताया था। अपनी पुस्तक में अचया बताते हैं कि केला न्यू गिनी द्वीप से समुद्री मार्ग से होकर दक्षिण भारत पहुंचा था। कुछ लोगों का दावा है कि केले का पालतूकरण सबसे पहले न्यू गिनी में किया गया था।
कई किस्में
मीनाक्षीजी ने हैदराबाद से नागरकोइल की यात्रा के दौरान पाया कि यहां केले की लगभग 12-15 किस्में पाई जाती हैं। केले के पौधे पश्चिमी घाट से सटे गर्म और नम क्षेत्रों में उगते हैं।
तो फिर, पूरे भारत में केला कहां-कहां उगाया जाता है? केला मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय दक्षिणी तटीय इलाकों में – गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बंगाल के कुछ हिस्सों तथा असम और अरुणाचल जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाया जाता है।
वैसे, मध्य और उत्तरी क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब) में भी केला उगाया जाता है, लेकिन यहां इसकी किस्मों में न तो इतनी विविधता होती है और न ही इतनी अधिक मात्रा में उगाया जाता है।
भारत हर साल लगभग 2.9 करोड़ टन केले का उत्पादन करता है। इसके बाद दूसरे नंबर पर चीन 1.1 करोड़ टन का उत्पादन करता है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का कहना है कि लगभग 135 देश केले का उत्पादन करते हैं, और केले के पौधे गर्म और नम परिस्थितियों में फलते-फूलते हैं। इस संदर्भ में दक्षिणपूर्वी एशियाई देश विशेष स्थान रखते हैं। इन देशों में केले की 300 से अधिक किस्में पाई जाती हैं, और कई किस्मों के पौधे देखने में भी सुंदर लगते हैं।
पोषण मूल्य
केले में ऐसा क्या है जिसने उन्हें स्वादिष्ट, पवित्र, औषधीय और पोषण के लिहाज़ से महत्वपूर्ण बनाया है? इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की पुस्तक न्यूट्रीटिव वैल्यू ऑफ इंडियन फूड्स बताती है कि केले के 100 ग्राम खाने योग्य हिस्से में 10-20 मिलीग्राम कैल्शियम, 36 मिलीग्राम सोडियम, 34 मिलीग्राम मैग्नीशियम व 30-50 मिलीग्राम फॉस्फोरस होता है। ये सभी पोषक तत्व मिलकर केले को अत्यधिक पौष्टिक बनाते हैं।
डॉ. के. अशोक कुमार और उनके साथियों ने वर्ष 2018 में जर्नल ऑफ फार्माकोग्नॉसी एंड फायटोकेमिस्ट्री में प्रकाशित अपने पर्चे में केले की किस्मों में पोषक तत्वों की मात्रा बताई थी। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि भारत में मिलने वाले सभी फलों में केला सबसे सस्ता है। यह भारत के अधिकांश हिस्सों, यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी, पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। और केला बाज़ार में मिलने वाले कई अन्य फलों जैसे आम, संतरा की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है। अन्य अधिकांश फल मौसमी और महंगे होते हैं, और केले की तुलना में कम पौष्टिक होते हैं।
केले का सिर्फ फल उपयोगी नहीं है। इसका छिलका भी बायोचार के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके बायोचार का उपयोग उर्वरक के रूप में और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से इलेक्ट्रिक वाहन चलाने के भी प्रयास जारी हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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