नींद हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। नींद ठीक से न हो तो दिन भर सुस्ती रहती है। लेकिन नींद और इससे जुड़े विकार चिकित्सा अध्ययनों में सबसे उपेक्षित रहे हैं। स्नातक स्तर की पढ़ाई में इस विषय पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, नींद अनुसंधान के क्षेत्र में वित्त या अनुदान की भी कमी है। इस उपेक्षा का कारण नींद सम्बंधी विकारों की विविधता है – जैसे स्लीप एप्निया (जो कान, नाक व गला विशेषज्ञ या हृदय रोग विशेषज्ञ के दायरे में आते हैं), या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (न्यूरोलॉजिस्ट या प्राथमिक चिकित्सक)। इसके कारणों की समझ में कमी और उपचार का अभाव भी इस समस्या को उपेक्षित बनाए रखते हैं।
हालांकि, अब परिस्थितियां बदलने लगी हैं। और इस बदलाव में कुछ योगदान दैनिक शारीरिक लय के आनुवंशिक आधार पर काम करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेताओं माइकल रॉसबैश, जेफरी हॉल और माइकल यंग का रहा है। उनके काम की बदौलत आज हम यह जानते हैं कि मनुष्यों में एक आंतरिक आणविक घड़ी होती है – यह समय का हिसाब रखने वाले जीन और सम्बंधित प्रोटीन के एक नेटवर्क के रूप में होती है। ये जीन बाइपोलर डिसऑर्डर, अवसाद (डिप्रेशन) और अन्य मूड डिसऑर्डर से भी सम्बंधित हैं। कुछ निद्रा विकार पार्किंसंस रोग, लेवी बॉडी डिमेंशिया और मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी के संकेतक के रूप में पाए गए हैं। इसके अलावा, पोर्टेबल निगरानी उपकरणों के विकास ने चिकित्सकों को सहज माहौल में, यहां तक कि घर में भी, नींद का निरीक्षण करने में सक्षम बनाया है। और, नार्कोलेप्सी की कार्यिकीय व्याख्या ने अनिद्रा की समस्या के लिए नई दवाओं का विकास संभव किया है। नार्कोलेप्सी उन न्यूरॉन्स की क्षति के कारण होती है जो जागृत अवस्था को उकसाने वाले ऑरेक्सिन नामक न्यूरोपैप्टाइड का स्राव करते हैं।
इसी कड़ी में, दी लैंसेट और दी लैंसेट न्यूरोलॉजी में चार शोध समीक्षाएं प्रकाशित हुई हैं जो विभिन्न निद्रा विकारों और नींद के मानवविज्ञान की व्यवस्थित तरीके से पड़ताल करती हैं। ये चार समीक्षाएं नींद के बारे में चार मुख्य बातें बताती हैं।
पहली, कि नींद सम्बंधी विकार एक आम स्वास्थ्य समस्या होने के बावजूद इन्हें बहुत कम तरजीह मिली है। नींद सम्बंधी विकार पीड़ित और उसके साथ सोने वालों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बनते हैं, और जन-स्वास्थ्य और आर्थिक खुशहाली पर दूरगामी प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, एक तिहाई वयस्क अनिद्रा की समस्या के शिकार होते हैं। दिन के अधिकतर समय उनींदापन उत्पादकता और कार्यस्थल पर सुरक्षा में कमी ला सकता है। इसके चलते बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है और एक तिहाई तक सड़क हादसे नींद की कमी के कारण होते हैं।
दूसरी, कि प्रभावी उपचारों की कमी है। अनिद्रा के लिए तो आसानी से दवाएं लिख दी जाती हैं जैसे बेंजोडायज़ेपाइन्स और तथाकथित ज़ेड-औषधियां यानी ज़ोपिक्लोन, एस्ज़ोपिक्लोन और ज़ेलेप्लॉन। हालांकि अनिद्रा के उपचार के लिए गैर-औषधीय तरीकों, जैसे संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी प्रथम उपचार माने जाते हैं, लेकिन ये उपचार हर जगह उपलब्ध नहीं होते हैं। और, बातचीत आधारित उपचार से दवा पर आश्रित होने का खतरा भी नहीं होता – लंबे समय तक नींद की दवाएं लेने से इनकी लत लगना आम बात है। स्लीप हाइजीन (यानी समयानुसार सोना-जागना, शांत-अंधेरी जगह पर सोना, सोते समय मोबाइल वगैरह दूर रखना आदि) इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
तीसरी, अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों को उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग जैसी चिकित्सा में नींद की जीर्ण समस्या के प्रभाव पता होना चाहिए। अपर्याप्त और अत्यधिक नींद दोनों ही स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालती हैं, ये अस्वस्थता और मृत्यु दर को बढ़ाती हैं। इसलिए किसी भी बीमारी का उपचार करते समय चिकित्सक को व्यक्ति की नींद की गुणवत्ता के बारे में भी पूछ लेना चाहिए।
और चौथी, अपर्याप्त नींद और नींद सम्बंधी विकारों की संख्या बढ़ने की अत्यधिक संभावना है। उदाहरण के लिए, मानवशास्त्रीय अध्ययनों से पता चला है कि अनिद्रा पूरी तरह से आधुनिक जीवन से जुड़ी हुई समस्या है (औद्योगिक समाज में 10-30 प्रतिशत लोग अनिद्रा का शिकार होते हैं, जबकि नामीबिया और बोलीविया में रहने वाले शिकारी-संग्रहकर्ता समुदाय की महज़ दो प्रतिशत आबादी अनिद्रा की शिकार है)। मनोसामाजिक तनाव, मदिरापान, धूम्रपान और व्यायाम में कमी नींद में बाधा डालते हैं। इसके अलावा, सोने के समय शयनकक्ष में तकनीकी उपकरणों का उपयोग या उनकी मौजूदगी, खास कर युवा वर्ग में स्मार्ट फोन का बढ़ता उपयोग नीली रोशनी से संपर्क बढ़ाता है जो, सोने और जागने की लय सम्बंधी विकारों के संभावित कारणों में से एक माना जाता है।
नींद हमारे जीवन का एक तिहाई हिस्सा है लेकिन चिकित्सकों, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और नीति निर्माताओं द्वारा इस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। उक्त शृंखला अच्छी नींद के महत्व को भलीभांति उजागर करती हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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