दीपावली पर आतिशबाज़ी में अंधाधुंध पटाखे जलाए जाते है जिससे हमारे पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान होता है। यही वजह है कि दीपावली के दौरान और इसके बाद वातावरण में प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है।
पटाखों में मुख्य रूप से सल्फर के यौगिक मौजूद होते हैं। इसके अतिरिक्त भी पटाखों में कई प्रकार के बाइंडर्स, स्टेबलाइज़र्स, ऑक्सीडाइज़र, रिड्यूसिंग एजेंट और रंग मौजूद होते हैं। रंग-बिरंगी रोशनी पैदा करने के लिए एंटीमनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, एल्यूमीनियम, तांबा, लीथियम, स्ट्रॉन्शियम वगैरह मिलाए जाते हैं।
दीपावली का त्योहार अक्टूबर/नवंबर में आता है और इस समय भारत में कोहरे का मौसम रहता है। इस वजह से यह पटाखों से निकलने वाले धुएं के साथ मिलकर प्रदूषण के स्तर को और भी ज़्यादा बढ़ा देता है। पटाखों से निकलने वाले रसायन अल्ज़ाइमर तथा फेफड़ों के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां का कारण बन सकते हैं। प्रदूषण का प्रभाव बड़ों की तुलना में बच्चों पर शीघ्र और ज़्यादा पड़ता है। साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण शरीर के हर अंग को नुकसान पहुंचा सकता है।
पटाखों में विभिन्न रंगों की रोशनी के लिए अलग-अलग रसायन मिलाए जाते हैं जो पर्यावरण व समस्त जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचाते है।
एल्युमिनियम का प्रदूषण त्वचा सम्बंधी रोग का कारण बनता है। सोडियम, मैग्नीशियम और ज़िंक का प्रदूषण मांशपेशियों को कमज़ोर करता है। कैडमियम रक्त की ऑक्सीजन वहन क्षमता को कम करता है, एनीमिया की संभावना बढ़ाता है। स्ट्रॉन्शियम कैल्शियम की कमी पैदा करके हड्डियों को कमज़ोर करता है। सल्फर सांस की तकलीफ पैदा करता है। और तांबा श्वसन नली में परेशानी पैदा करता है।
पटाखा | जलाने का समय (मिनट में) | PM 2.5 की मात्रा (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) |
फुलझड़ी | 2 | 10,390 |
सांप की गोली | 3 | 64,500 |
हंटर बम | 3 | 28,950 |
अनार | 3 | 4,860 |
चकरी | 5 | 9,490 |
लड़ (1000 बम वाली) | 6 | 38,450 |
वर्ष 2016 में पुणे के चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन द्वारा अलग-अलग पटाखों से कितना प्रदूषण होता है इसका अध्ययन किया गया था। इसमें पाया गया था विभिन्न पटाखों को जलाने पर अलग-अलग मात्रा में 2.5 माइक्रॉन के कण (PM 2.5) उत्पन्न होते हैं। यह जानकारी तालिका में देखें।
जले हुए पटाखों के टुकड़ों से भूमि प्रदूषण की भी समस्या उत्पन्न होती है। पटाखों के कई टुकड़े बायोडीग्रेडेबल नहीं होते, जिस वजह से इनका निस्तारण आसानी से नहीं होता तथा समय बीतने पर ये और भी अधिक विषैले होते जाते हैं और भूमि को प्रदूषित करते हैं।
दिल्ली में हर वर्ष सितंबर महीने के आखिर से दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता खराब होने लगती है क्योंकि इस समय हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान पराली जलाते हैं। साथ ही यह समय आतिशबाज़ी का होता है। इसलिए दिल्ली सरकार ने पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह रोक लगा दी है। राजधानी दिल्ली में पिछले साल भी पटाखों की बिक्री और आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध था किंतु उसके बावजूद लोगों ने पटाखे फोड़े थे। पिछले साल यानी वर्ष 2021 में दिवाली के अगले दिन दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 462 था जो कि पिछले 5 साल में सबसे बुरा था। एयर क्वालिटी इंडेक्स के 462 होने का मतलब है कि दिल्ली में हवा गंभीर से अधिक खतरनाक स्तर पर प्रदूषित थी।
प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) द्वारा हरित पटाखे बनाए गए हैं। हरित पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं पर इनके जलने से प्रदूषण कम होता है। अलबत्ता, लोगों में हरित पटाखों को लेकर भ्रम है कि ये पूरी तरह प्रदूषण मुक्त हैं, लेकिन अगर लोग हरित पटाखे अधिक जलाते हैं तो निश्चित ही त्योहारों के बाद प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अनुसार सरकार को सभी परिवारों के लिए पटाखे खरीदने की एक सीमा निर्धारित करनी चाहिए ताकि लोग एक तय सीमा से अधिक इन पटाखों का इस्तेमाल ना कर सकें। यह विडंबना है कि लोग पटाखों से होने वाले दुष्प्रभावों को जानने के बाद भी इनका उपयोग करते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://i.pinimg.com/564x/8c/ae/c8/8caec8198725320d880a8eeac5f9a1aa.jpg