वैज्ञानिक इस बात से तो सहमत हैं कि ऊंट का दूध मनुष्य तथा गाय के दूध से किसी मामले में कम नहीं है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि ऊंट के दूध में एंटी-डायबेटिक, एंटी-हाइपरटेंसिव, एंटी-माइक्रोबियल व एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं।
देखा गया है कि मधुमेह रोगियों द्वारा ऊंट के दूध का लंबी अवधि तक सेवन इंसुलिन की ज़रूरत कम करने में सहायक होता है। ऊंटनी का दूध ऐतिहासिक रूप से अपने औषधीय और अन्य गुणों के लिए जाना जाता है। इन गुणों को लेकर कई अनुसंधान पत्र प्रकाशित हुए हैं। शोध बताते हैं कि यह मधुमेह और ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकारों से सम्बंधित बीमारियों के लिए अत्यंत लाभकारी पाया गया है। हाल के एक अनुसंधान से पता चला है कि ऊंट का दूध जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटीऑक्सिडेंट, कैंसर-रोधी तथा हाइपोएलर्जेनिक गुणों से संपन्न है।
इसके अलावा, ऊंट के दूध ने लैक्टोज़ टॉलरेंस के कारण लोगों के लिए एक वैकल्पिक डेयरी उत्पाद के रूप में लोकप्रियता हासिल की है। एक नई शोध समीक्षा के अनुसार ऊंट के दूध को गाय के दूध से बेहतर माना गया है क्योंकि इसमें लैक्टोज़, संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल कम होते हैं। इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल भी अधिक होते हैं तथा 10 गुना अधिक लौह और 3 गुना अधिक विटामिन सी होता है।
वैसे तमाम वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ आम तौर पर कई उच्च जोखिम के कारण सामान्य रूप से कच्चे दूध का सेवन करने की सलाह नहीं देते हैं। कच्चे दूध का सेवन संक्रमण, गुर्दे की निष्क्रियता और यहां तक कि आक्रामक संक्रमण से मौत का कारण बन सकता है। विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली आबादी, गर्भवती महिलाओं, बच्चों, वृद्धों, वयस्कों में प्रतिरक्षा सम्बंधी समस्याएं बढ़ने लगती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि ऊंट के दूध में ऐसे जीवाणु पाए गए हैं जो श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। इसलिए गंभीर संक्रमण की घटनाएं तब पाई जाती हैं जब ऊंट के दूध का सेवन बिना पाश्चरीकरण के किया जाता है।
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात में ऊंटनी के दूध की खपत के पैटर्न और वयस्कों के बीच कथित लाभों और उसके नुकसान सम्बंधी कुछ महत्वपूर्ण अध्ययन किए गए थे। इस अध्ययन के तहत एक प्रश्नावली के माध्यम से 852 वयस्कों से जानकारी ली गई। प्रश्नावली में सामाजिक-जनसांख्यिकीय विशेषताओं से लेकर ऊंट के दूध की खपत के पैटर्न और कच्चे ऊंट के दूध के लाभों और जोखिमों के कथित ज्ञान की जांच की गई। पता चला कि 60 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ऊंटनी का दूध आज़माया है, लेकिन मात्र एक चौथाई ही नियमित रूप से सेवन करते थे। अध्ययन में दूध के बाद सबसे ज़्यादा खपत ऊंट के दही और विशेष स्वाद तथा महक वाले वाले दूध की रही। ऊंट के दूध की उपभोग परीक्षण में शहद, हल्दी और चीनी के साथ मिलाकर सेवन करने वालों का प्रतिशत अधिक था। अधिकांश उपभोक्ता (57 प्रतिशत) रोज़ाना एक कप से कम ऊंटनी के दूध का सेवन करते हैं। 64 प्रतिशत लोग ऊंट के दूध को उसकी पौष्टिकता के कारण, जबकि 40 प्रतिशत चिकित्सकीय गुणों के कारण पसंद करते थे।
वैश्विक स्तर पर केन्या सालाना 11.65 लाख टन ऊंट के दूध का उत्पादन कर अव्वल है। इसके बाद सोमालिया 9.58 लाख टन और माली 2.71 लाख टन उत्पादन करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि केन्या के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में जनजातियां लगभग 47.22 लाख ऊंट पालती हैं जो विश्व की ऊंट आबादी का लगभग 80 प्रतिशत है। वर्ष 2020 में गल्फ कॉर्पोरेट काउंसिल (जीसीसी) ने ऊंट के दूध के व्यवसाय से 50.23 लाख अमेरिकी डॉलर की कमाई की और वर्ष 2026 तक 7.1 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है। संयुक्त अरब अमीरात में ऊंट के दूध के कई उत्पाद बाजार में हैं – जैसे ताज़ा दूध, सुगंधित दूध, दूध पाउडर, घी, दही, छाछ आदि।
भारत समेत विभिन्न देश ऊंट के दूध का उत्पादन और विपणन करने के नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं। हमारे देश में ऊंट के दूध का उत्पादन एवं बिक्री करने के लिए अमूल, आदविक जैसे कई बड़े दुग्ध उत्पादक सामने आए हैं। भारत में ऊंटनी के दूध का बाज़ार अभी धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की कुल वार्षिक आपूर्ति में गाय का दूध 85 प्रतिशत, भैंस का दूध 11 प्रतिशत, बकरी का दूध 3.4 प्रतिशत, भेड़ का दूध 1.4 प्रतिशत और ऊंट का दूध मात्र 0.2 प्रतिशत ही है।
गौरतलब है कि भारत में ऊंटों की आबादी में लगातार गिरावट आ रही है क्योंकि अब परिवहन या खेती के लिए इनकी आवश्यकता नहीं है। इतना ही नहीं, खेती तथा अन्य व्यवसाय के लिए खरीदकर मांस के लिए इनका उपयोग किया जाता है। 20वीं पशुधन गणना (2019) के अनुसार ऊंटों की आबादी में 37.5 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के लोग सदियों से दूध के लिए ऊंटों पर निर्भर हैं। अब, संयुक्त राज्य अमेरिका में ऊंट के दूध की खपत बढ़ रही है और मांग आपूर्ति से आगे निकल चुकी है।
2012 में अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने ऊंट के दूध की बिक्री की अनुमति दी। लेकिन बिक्री के लिए कानूनी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। ऊंट के दूध को निश्चित तौर पर पाश्चरीकृत होना चाहिए।
डेयरी उद्योग के एक जानकार के अनुसार ऊंट के दूध बाज़ार में वर्ष 2022-2027 के दौरान 3.1 प्रतिशत वृद्धि की आशा है और 2027 के अंत तक 8.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
अगर देखा जाए तो आज भारत में ऊंटों के नस्ल संरक्षण और संवर्धन की नई राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है। इस नियम में अवैध परिवहन और वध पर प्रतिबंध का प्रावधान किया जाना चाहिए। साथ ही साथ, ऊंटों के लिए चारागाह की व्यवस्था ज़रूरी है। ऊंट के दूध के वितरण के लिए स्थापित डेयरी उद्योग के विकास की नीति ज़रूर शामिल करनी चाहिए। इस संदर्भ में राजस्थान में ऊंट दूध कोऑपरेटिव प्रणाली वर्ष 2010 में आरंभ की गई थी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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