कई भोज्य पदार्थों को हम बंद आंखों से सूंघ कर भी पहचान जाते हैं। हमारे शरीर से भी लगातार नाना प्रकार की गंध निकलती हैं। जब मादा मच्छर किसी मनुष्य की तलाश में होती है तो वह मनुष्य के शरीर से निकलने वाली गंध के एक अनोखे मिश्रण को सूंघती हैं। गंध मच्छरों के स्पर्शक (एंटीना) में उपस्थित ग्राहियों को उत्तेजित करती है और मच्छर हमें अंधेरे में भी खोज लेते हैं। यदि मच्छरों में गंध के ग्राही ही न रहें तो क्या मच्छर इंसानों की गंध को नहीं सूंघ पाएंगे? तब क्या हमें मच्छरों और उनसे होने वाले रोगों से निजात मिल पाएगी?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने मच्छरों पर ऐसे ही कुछ प्रयोग किए। उन्होंने मच्छरों के जीनोम (डीएनए) में से गंध संवेदी ग्राहियों के लिए ज़िम्मेदार पूरे जीन समूह को ही निकाल दिया। किंतु अनुमान के विपरीत पाया गया कि गंध संवेदी ग्राहियों के अभाव के बावजूद मच्छर हमें ढूंढकर काटने का तरीका ढूंढ लेते हैं। मानव शरीर की गर्मी भी उन्हें आकर्षित करती है।
अधिकांश जंतुओं के घ्राण (गंध संवेदना) तंत्र की एक तंत्रिका कोशिका केवल एक प्रकार की गंध का पता लगा सकती हैं। लेकिन एडीज एजिप्टी मच्छरों की केवल एक तंत्रिका कोशिका भी अनेक गंधों का पता लगा सकती है। इसका मतलब है कि यदि मच्छर की कोई तंत्रिका कोशिका मनुष्य-गंध का पता लगाने की क्षमता खो देती है, तब भी मच्छर मानव की अन्य गंधों को पहचानने की क्षमता से उन्हें खोज सकते हैं। हाल ही में शोधकर्ताओं के एक दल ने 18 अगस्त को सेल नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि यदि मच्छर में मानव गंध का पता लगाने वाले कुछ जीन काम करना बंद भी कर दें तो भी मच्छर हमें सूंघ सकते हैं। अतः ज़रूरत हमें किसी ऐसी गंध की है जिसे मच्छर सूंघना पसंद नहीं करते हैं।
प्रभावी विकर्षक (रेपलेंट) मच्छरों को डेंगू और ज़ीका जैसे रोग पैदा करने वाले विषाणुओं को प्रसारित करने से रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। किसी भी अन्य जंतु की तुलना में मच्छर इंसानी मौतों के लिए सर्वाधिक ज़िम्मेदार हैं। जितना बेहतर हम मच्छरों को समझेंगे उतना ही बेहतर उनसे बचने के उपाय खोज सकेंगे।
मच्छर जैसे कीट अपने स्पर्शक और मुखांगों से सूंघते हैं। वे अपनी घ्राण तंत्रिका की कोशिकाओं में स्थित तीन प्रकार के सेंसर का उपयोग करके सांस से निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड तथा अन्य रसायनों से मनुष्य का पता लगा लेते हैं।
पूर्व के शोधकर्ताओं ने सोचा था कि मच्छर के गंध ग्राही को अवरुद्ध करने से उनके मस्तिष्क को भेजे जाने वाले गंध संदेश बाधित हो जाएंगे और मच्छर मानव को गंध से नहीं खोज पाएंगे। लेकिन आश्चर्य की बात है कि ग्राही से वंचित मच्छर फिर भी लोगों को सूंघ सकते हैं और काटते हैं।
यह जानने के लिए रॉकफेलर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एडीज़ इजिप्टी नामक मच्छर की तंत्रिका कोशिकाओं में फ्लोरोसेंट लेबल जोड़े ताकि गंध को पहचानने की क्रियाविधि को समझा जा सके। हैरान करने वाली बात यह थी कि एक-एक घ्राण तंत्रिका कोशिका में कई प्रकार के सेंसर होते हैं और वे संवेदी केंद्रों के समान कार्य कर रहे थे।
वैज्ञानिकों ने मनुष्यों में पाए जाने वाले तथा मच्छरों को आकर्षित करने वाले विभिन्न रसायनों (ऑक्टेनॉल, ट्राइथाइल अमीन) के उपयोग से तंत्रिका कोशिका में विद्युत संकेत उत्पन्न किए जो एक-दूसरे से भिन्न थे।
यह स्पष्ट नहीं है कि लोगों की गंध का पता लगाने के लिए क्यों मच्छर अतिरिक्त तरीकों का उपयोग करते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति की गंध दूसरे से अलग होती है। शायद इसलिए मानव की गंध को भांपने के लिए मच्छरों में यह तरीका विकसित हुआ है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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