दुनिया के कई हिस्से भयानक सूखे की मार झेल रहे हैं। और सूखे की परिस्थितियों में वनस्पतियों की प्रतिक्रिया जानने को लेकर किया गया हालिया अध्ययन बताता है कि सूखे की स्थिति जलवायु परिवर्तन को और बुरी तरह प्रभावित सकती है।
साल भर सूखे की हालत रहे तो वनस्पतियों की वृद्धि 80 प्रतिशत तक कम हो सकती है, जिसके चलते इनकी कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता बहुत कम हो जाएगी। और घास के मैदानों में पौधों की कुल वृद्धि 36 प्रतिशत तक कम हो सकती है। वैसे लगभग 20 प्रतिशत अध्ययन क्षेत्रों की वनस्पति सूखे के बावजूद फलती-फूलती रही।
दरअसल तीन पारिस्थितिकीविद जानना चाहते थे कि शुष्क मौसम पौधों की उत्पादकता को कैसे प्रभावित करता है, खास कर घास के मैदानों और झाड़ियों वाले स्थानों पर क्योंकि ज़मीन के 40 प्रतिशत हिस्से पर तो यही हैं। इसके लिए उन्होंने एक प्रयोग – अंतर्राष्ट्रीय सूखा प्रयोग (आईडीई) – डिज़ाइन किया, जिसमें उन्होंने 139 अध्ययन स्थलों पर कृत्रिम सूखा पैदा किया और वनस्पतियों की वृद्धि को मापा। इनमें से कुछ अध्ययन स्थल ईरान और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में थे। अधिकतर अध्ययन क्षेत्र झाड़ी और घास के मैदानों में थे, जहां वर्षा को कृत्रिम रूप से रोकना आसान था।
इसके लिए उन्होंने 1 वर्ग मीटर के क्षेत्र को प्लास्टिक की शीट से ढंक कर वर्षा को अवरुद्ध किया; कितनी वृष्टि की ज़रूरत है, उसके अनुसार उन्होंने प्लास्टिक शीट के बीच जगह छोड़ी। औसतन वहां होने वाली सामान्य से आधे से भी कम वर्षा मिली। कंट्रोल के तौर पर हर अध्ययन स्थल एक वर्ग मीटर के क्षेत्र को खुला छोड़ा गया।
प्रत्येक स्थल पर दोनों भूखंडों में पौधों के प्रकार और संख्या का हिसाब रखा। एक साल तक सूखे की स्थिति बनाए रखने के बाद शोधकर्ताओं ने फिर से पौधों का सर्वेक्षण किया, दोनों तरह के भूखंडों के पौधों को काटा, सुखाया और तौला।
100 अध्ययन स्थल से प्राप्त परिणामों में देखा गया कि कुछ क्षेत्रों के छोटी घास के मैदानों को कृत्रिम सूखे से भारी क्षति पहुंची थी। पानी की कमी वाले क्षेत्र में पौधों की उत्पादकता में 88 प्रतिशत की कमी देखी गई।
इसके विपरीत, जर्मनी के एक समशीतोष्ण घास के मैदान में कृत्रिम सूखे से कोई खास फर्क नहीं पड़ा था (जर्मनी के अध्ययन स्थलों की जलवायु नम होती है और कम गंभीर सूखा पड़ता है)। कुल मिलाकर नम जलवायु वाले पौधों का प्रदर्शन बेहतर रहा, और झाड़ी वाले भूखंडों ने घास वाले भूखंडों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। घास वाले भूखंडों की उत्पादकता में औसतन 36 प्रतिशत की कमी देखी गई — यह पूर्व अध्ययनों में देखी गई कमी से लगभग दुगनी है।
कई शोधकर्ता इस प्रयोग को चार या उससे अधिक वर्षों तक जारी रखना चाहते हैं। यह अतिरिक्त डैटा जलवायु मॉडल के अनुमानों को बेहतर करने में मदद कर सकता है, जो यह बता सकते हैं कि सूखा पड़ने पर झाड़ी और घास के मैदान कितनी कम कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करेंगे। ये नतीजे पारिस्थितिकीविदों को यह अनुमान लगाने में भी मदद कर सकते हैं कि सूखे के दौरान कौन से पारिस्थितिक तंत्र सबसे अधिक जोखिम में होंगे। कम वनस्पति का मतलब होगा उन्हें खाने वाले वाले जानवरों के लिए कम भोजन, और इससे चलते इनके शिकारियों के लिए कम भोजन। कई पारिस्थितिक तंत्रों का स्वास्थ्य और उनकी जैव विविधता पौधों के उत्पादन पर निर्भर करती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.ade5720/files/_20220824_nid_droughtsecondary.jpg