हालिया चुनावों में मुफ्त बिजली का मुद्दा काफी चर्चा में रहा। विभिन्न राजनीतिक दलों ने मुफ्त बिजली की एक से बढ़कर एक योजनाओं का वादा किया। घरेलू उपयोग के लिए 300 युनिट प्रति माह मुफ्त बिजली से लेकर कृषि क्षेत्र के लिए मुफ्त बिजली और लंबित बिलों को माफ करने के वादे किए गए। यहां हम विभिन्न दलों द्वारा किए गए वादों की तुलना करने के बजाय इनसे होने वाले लाभ और हानि पर चर्चा कर रहे हैं।
कृषि क्षेत्र के लिए मुफ्त बिजली: पहले ही एक समस्या है
घरेलू उपभोक्ताओं को एक निर्धारित खपत सीमा के भीतर मुफ्त बिजली प्रदाय के मुद्दे पर जाने से पहले हम कृषि क्षेत्र में बिजली सब्सिडी पर चर्चा करेंगे। सब्सिडी के दम पर अधिकांश राज्यों में कृषि उपयोग के लिए बिजली शुल्क 1 रुपए/युनिट से भी कम है जबकि पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह बिलकुल मुफ्त है। हालांकि यह खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के नज़रिए से महत्वपूर्ण है लेकिन मुफ्त बिजली के कई प्रतिकूल प्रभाव भी हैं। इसके कारण बिजली और पानी का अकुशल उपयोग और वितरण कंपनियों की लापरवाही के कारण बार-बार बिजली गुल और मोटर जलने की समस्या तो होती ही है, राज्य सरकारों पर लगातार अत्यधिक सब्सिडी का बोझ भी बढ़ता रहता है। देश के लगभग तीन चौथाई कृषि कनेक्शन बिना मीटर के हैं जिसके चलते वितरण कंपनियां खपत के अनुमानों को अक्सर बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करती हैं ताकि सब्सिडी की मांग बढ़ा सकें और वितरण घाटे को कम करके बता सकें। गौरतलब है कि मीटरिंग करने के प्रयासों को हमेशा विरोध का सामना करना पड़ता है क्योंकि ऐसा मान लिया जाता है कि यह शुल्क वसूलने की दिशा में पहला कदम है। पिछले 15 वर्षों का अनुभव बताता है कि एक बार मुफ्त बिजली देने के बाद इसे देने के निर्णय को रद्द करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, और सामान्यत: अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को शामिल करने के लिए इस सुविधा को जारी ही रखा जाता है। स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ने (ऑप्ट-आउट विकल्प) की योजनाओं द्वारा सब्सिडी खत्म करने के काफी प्रयास किए गए हैं लेकिन कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिले हैं। मुफ्त बिजली के प्रावधान और मीटरिंग के मुद्दे मिलकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के कार्यान्वयन को मुश्किल बना देते हैं। इन सभी चुनौतियों के मद्देनज़र कृषि क्षेत्र में बिजली आपूर्ति एक जटिल समस्या बन गई है। इसमें शामिल सभी लोग, वे चाहे किसान हों या वितरण कंपनियां या फिर सरकारें, सभी काफी निराश हैं और उनका एक-दूसरे पर से भरोसा उठ गया है।
घरेलू उपयोग के लिए मुफ्त बिजली की समस्या
बिजली आपूर्ति की बढ़ती लागत को देखते हुए छोटे उपभोक्ताओं को रियायती दरों पर बिजली प्रदान करना आवश्यक है। वर्तमान लागत लगभग 7-8 रुपए प्रति युनिट है (सालाना 6 प्रतिशत बढ़ रही है), जो कम आय वाले परिवारों के लिए वहन कर पाना संभव नहीं है। आर्थिक मंदी और महामारी ने तो स्थिति को बदतर बना दिया है। लेकिन देखा जाए तो कम आय वाले घरों में प्रकाश उपकरण, पंखे, मोबाइल चार्जिंग और टीवी जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए 50 युनिट प्रति माह की आवश्यकता होती है जो रेफ्रिजरेटर होने पर बढ़कर 100 युनिट प्रति माह तक हो जाती है। ऐसे उपभोक्ताओं के लिए कम शुल्क योजना (जैसे आपूर्ति की लागत का आधा) को उचित ठहराया जा सकता है। यदि एयर-कंडीशनर जैसे उच्च खपत वाले उपकरण हों तो मासिक खपत 200 से 300 युनिट होती है। दिल्ली और पंजाब में तो प्रति माह 200 युनिट बिजली मुफ्त में प्रदान की ही जा रही है।
गौरतलब है कि दिल्ली में मुफ्त बिजली प्रदान करने के कारण राज्य की कुल सब्सिडी बढ़कर लगभग 2820 करोड़ रुपए प्रति वर्ष हो गई है। यह राज्य सरकार के कुल खर्च का 11 प्रतिशत है। इसी तरह, पंजाब में कुछ परिवारों को मुफ्त बिजली दी जाती है व यहां कुल सब्सिडी का 18 प्रतिशत हिस्सा मुफ्त बिजली के लिए निर्धारित किया गया है। तमिलनाडु की कुल सब्सिडी में से लगभग आधी आवासीय बिजली आपूर्ति के लिए निर्धारित की गई है जबकि उत्तर प्रदेश में यह लगभग 90 प्रतिशत है।
यदि मुफ्त बिजली प्राप्त करने वाले आवासीय उपभोक्ताओं की संख्या और खपत सीमा में वृद्धि होती है तो यकीनन राज्य सरकारों पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा। घरों में मीटरिंग और बिलिंग के मुद्दे तो पहले से ही हैं। मुफ्त बिजली के साथ ये समस्याएं और बढ़ सकती हैं क्योंकि संभावना है कि वितरण कंपनियां कम राजस्व वाले उपभोक्ताओं की समस्याओं पर कम ध्यान देंगी। छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना और ऊर्जा दक्षता बढ़ाना अच्छे पर्यावरण अनुकूल विकल्प हो सकते हैं लेकिन उच्च आय वाले परिवारों को मुफ्त बिजली मिली तो वे इन विकल्पों का उपयोग शायद न करें। लगता है कि कृषि क्षेत्र में बिजली आपूर्ति की जानी-पहचानी त्रासदी अब यहां भी देखने को मिलेगी जिसमें अंतत: सबसे अधिक नुकसान गरीब उपभोक्ताओं और आम लोगों का ही होगा।
मुफ्त बिजली: एक अल्पकालिक राहत
जीवन स्तर में सुधार और उत्पादक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए अच्छी बिजली आपूर्ति और सेवा आवश्यक है। इसके लिए ज़रूरी है कि वितरण कंपनियां वित्तीय रूप से सुदृढ़ हों तथा सभी उपभोक्ताओं (विशेष रूप से छोटे और ग्रामीण) के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवा सम्बंधी जवाबदेही के उपाय मौजूद हों। मुफ्त या कम शुल्क वाली बिजली अधिक से अधिक एक अल्पकालिक राहत है जो उन लोगों को प्रदान की जानी चाहिए जिनको इसकी सख्त ज़रूरत है। जिस सरकार को लोगों के दीर्घकालिक हितों की चिंता है उसे मुफ्त बिजली लाभार्थियों की संख्या को सीमित करने के प्रयास करने चाहिए। कुछ विचार इसमें सहायक हो सकते हैं।
आवासीय उपभोक्ताओं को बिल में प्रति माह 200 रुपए की फिक्स्ड छूट प्रदान की जानी चाहिए। बड़े उपभोक्ताओं की तुलना में छोटे उपभोक्ताओं पर इसका प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होगा। चूंकि छूट को खपत से अलग कर दिया जाएगा, इसलिए वितरण कंपनियों को खपत को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का कोई लालच नहीं रहेगा। इस तरह की छूट घरेलू उद्योगों को भी दी जा सकती है जो अधिकांश राज्यों में बड़े व्यावसायिक उपभोक्ताओं के बराबर उच्च शुल्क चुका रहे हैं। इसके साथ ही ऊर्जा कुशल पंखे या रेफ्रिजरेटर अपनाने के लिए अतिरिक्त छूट दी जा सकती है और इनकी लागत को कम करने के लिए राज्य स्तरीय थोक खरीद कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं।
छोटे उपभोक्ताओं और वितरण कंपनियों के बीच आपसी अविश्वास के माहौल को बदलना होगा। इसके लिए मामलों का तुरंत समाधान और एकमुश्त निपटान होना चाहिए। यदि कोई बिल पिछले बिलों की तुलना में तीन गुना से अधिक है तो वितरण कंपनियों को शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना समाधान करना चाहिए।
दुर्भाग्य से घरों में मुफ्त बिजली जैसे वादे चुनावों पर हावी हो जाते हैं। लेकिन क्या यह सचमुच गरीबों के हित में है क्योंकि इन वादों को पूरा करने से बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता बिगड़ती है और बिजली क्षेत्र की वित्तीय हालत और डांवाडोल हो जाती है। इसकी कीमत अंतत: हितग्राहियों को ही चुकानी पड़ेगी। हम उम्मीद करते हैं कि आम जनता ऐसे वादों पर सवाल उठाएगी जिनको निभाना संभव नहीं है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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