नियततापी (एंडोथर्म) जीव उन्हें कहते हैं जो अपने शरीर का तापमान आंतरिक प्रक्रियाओं के द्वारा नियंत्रित करते हैं। यह स्तनधारियों, पक्षियों के अलावा कुछ विलुप्त डायनासौर की खासियत है। इस तरह तापमान का नियमन करने के लिए उन्हें अधिक ऊर्जा लगती है, लेकिन यह विशेषता उन्हें जाड़ों और रात के समय भी सक्रिय रहने में मदद करती है। इसके विपरीत, एक्सोथर्मिक (बाह्यतापीय) जीव ऐसा नहीं कर सकते; इनके शरीर का तापमान वातावरण के तापमान के अनुसार बदलता रहता है। जीवाश्म विज्ञानी इस बात से तो सहमत हैं कि प्रारंभिक कशेरुकी जीव बाह्यतापीय थे। लेकिन संशय इस बात पर है कि जीवों में तापमान नियमन की क्षमता कब विकसित हुई।
आम तौर पर देखा गया है कि नियततापी जीवों में हड्डियां तेज़ी से बढ़ती हैं और उनके शरीर पर बाल या पिच्छ (फेदर) पाए जाते हैं। इसलिए नियततापिता का निर्धारण करने के लिए जीव वैज्ञानिक इन्हीं गुणधर्मों का अध्ययन करते आए हैं। लेकिन ये गुणधर्म नियततापिता के सटीक संकेतक नहीं हैं और संभवत: इनका प्रादुर्भाव अन्य कारणों से हुआ था।
अब शोधकर्ताओं के एक दल ने इसी काम के लिए एक सर्वथा नई विधि का उपयोग किया है। यह है आंतरिक कान में पाई जाने वाली अर्धवृत्ताकार नलिकाएं (सेमीसर्कुलर कैनाल्स)। ये तीन नलिकाएं होती हैं जो जीव को अपनी स्थिति भांपने तथा संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं। जीवाश्म वैज्ञानिक इनकी मदद से प्राचीन जीवों में विचरण के पैटर्न का अनुमान लगाते आए हैं।
नेशनल म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के जीवाश्म विज्ञानी रोमन डेविड के दल ने इनकी मदद से नियततापिता के निर्धारण का प्रयास किया है। जीवाश्म नमूनों के अध्ययन के दौरान डेविड का ध्यान अर्धवृत्ताकार नलिकाओं की साइज़ और संरचना में विविधता पर पड़ा। खास तौर से उनका ध्यान इस बात पर गया कि शरीर के आकार के हिसाब से अन्य कशेरुकियों की तुलना में स्तनधारियों की अर्धवृत्ताकार नलिकाएं छोटी होती हैं। जैसे, व्हेल (एक स्तनधारी) आकार में व्हेल-शार्क (एक मछली) से बड़ी होती है लेकिन अर्धवृत्ताकार नलिकाओं के मामले में व्हेल-शार्क बाज़ी मार लेती है। दरअसल जीव जगत में सबसे बड़ी अर्धवृत्ताकार नलिकाएं व्हेल-शार्क की होती हैं।
इसके अलावा उनका ध्यान नलिकाओं के अंदर भरे तरल (एंडोलिम्फ) पर भी गया। एंडोलिम्फ का गाढ़ापन तापमान के साथ बदलता है। जैसे तेल गरम होने पर पतला और ठंडा होने पर गाढ़ा हो जाता है। डेविड का अनुमान था कि एंडोलिम्फ के गाढ़ेपन और अर्धवृत्ताकार नलिका के आकार के बीच कोई सम्बंध है, और दोनों नियततापिता का संकेत दे सकते हैं।
इस परिकल्पना को जांचने के लिए डेविड और उनकी टीम ने अल्पाका, टर्की और छिपकली समेत 277 जीवित प्रजातियों की कान की अर्धवृत्ताकार नलिकाओं का अध्ययन किया। देखा गया कि नियततापी जीवों का एंडोलिम्फ पतला था और उनकी अर्धवृत्ताकार नलिकाएं छोटी और पतली थी। दूसरी ओर, बाह्यतापीय जीवों का एंडोलिम्फ गाढ़ा था और अर्धवृत्ताकार नलिकाएं बड़ी और मोटी थी।
नियततापिता कब विकसित हुई यह जानने के लिए उन्होंने इस जानकारी को जीवाश्मित नमूनों पर लागू किया। चूंकि ये नलिकाएं नरम ऊतकों से बनी होती हैं, इसलिए अक्सर ये जीवाश्मित नहीं हो पाती; लेकिन ये जिस खोखली हड्डी के अंदर होती हैं वे जीवाश्मित हो जाती हैं। और इन खोखली हड्डियों की मदद से नलिकाओं के आकार-आकृति का अनुमान लगाया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने 64 विलुप्त प्रजातियों की जांच की। इनमें स्तनधारी, 23 करोड़ वर्ष पूर्व के स्तनधारी-समान पूर्वज और उसके भी पूर्व के गैर-स्तनधारी पूर्वज शामिल थे।
नेचर में प्रकाशित नतीजों के अनुसार ट्राएसिक काल के अंत में, लगभग 23 करोड़ वर्ष पूर्व, छोटी और पतली अर्धवृत्ताकार नलिकाओं वाले जीव अस्तित्व में आए थे, इसी समय गैर-स्तनधारी पूर्वज से स्तनधारी-समान पूर्वज विकसित हुए थे। और यह परिवर्तन अपेक्षाकृत रूप से अचानक, 10 लाख से भी कम वर्षों में, हुआ था। अर्थात यदि छोटी व पतली अर्धवृत्ताकार नलिकाओं को नियततापिता का लक्षण माना जाए तो यह सबसे पहले स्तनधारी जीवों में लगभग 23 करोड़ वर्ष नज़र आई होगी। यह पूर्व में लगाए गए अनुमान से 2 करोड़ वर्ष बाद का समय है। वैसे एक बात पर ध्यान देना ज़रूरी है – यह नहीं कहा जा रहा है कि अर्धवृत्ताकार नलिकाएं नियततापिता या तापमान नियंत्रण में कोई भूमिका निभाती हैं। आशय सिर्फ यह है कि ये पतली-छोटी नलिकाएं और नियततापिता साथ-साथ प्रकट होते हैं और छोटी नलिकाओं को नियततापी जीवों का द्योतक माना जा सकता है।
अन्य शोधकर्ताओं के मुताबिक क्रमिक विकास की बजाय ऐसे अचानक परिवर्तन की बात को साबित करने के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। बहरहाल नियततापिता के भावी अध्ययनों में अर्धवृत्ताकर नलिका का अध्ययन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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