जुगनू अपनी टिमटिमाती रोशनी के लिए जाने जाते हैं। लेकिन लगता है कि हमारी भावी पीढ़ियां जुगनू देखने से वंचित रह जाएंगी। हाल में किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि भारत में कृत्रिम रोशनी जुगनुओं के प्रजनन पर असर डाल रही है। इस वजह से ये कीट प्रजनन नहीं कर पा रहे हैं। इससे इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
यह अध्ययन दुनिया भर में प्रकाश प्रदूषण के कारण बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के प्रति सचेत करता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 30 वर्षों में जुगनुओं की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है। नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च के शोधकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश में एब्सकॉन्डिटा चाइनेंसिस प्रजाति के जुगनुओं की आबादी को रिकॉर्ड करने का प्रयास किया है। उनके शोध के मुताबिक, 2019 में बरनकुला गांव में 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या औसतन 10 से 20 पाई गई जबकि 1996 में यह संख्या 500 से ज़्यादा थी।
ऐसे में कृत्रिम रोशनी के चलते लगातार जुगनुओं की घटती आबादी चिंता का विषय है। गौरतलब है कि देश में जुगनुओं पर अब तक बेहद कम अध्ययन किए गए हैं। ऐसे में इनकी लगातार घटती आबादी पर अंकुश लगाने को लेकर विशेष ध्यान नहीं दिया जा सका।
दरअसल, रात के समय में पड़ने वाली कृत्रिम रोशनी ने जीव-जंतुओं के जीवन को खासा प्रभावित किया है। पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में छोटे-छोटे कीटों का अहम योगदान रहता है। इनका विनाश पारिस्थितिकी असंतुलन को बढ़ाने वाला है। आधुनिक ब्रॉड-स्पेक्ट्रम प्रकाश व्यवस्था इंसानों को रात में अधिक आसानी से रंगों को देखने में सक्षम बनाती है। लेकिन ये आधुनिक प्रकाश स्रोत अन्य जीव-जंतुओं की दृष्टि पर बहुत ज़्यादा नकारात्मक प्रभाव डालते है। इसके पीछे की वजह यह है कि मानव दृष्टि के लिए डिज़ाइन की गई कृत्रिम रोशनी में नीली और पराबैंगनी श्रेणियों का अभाव होता है, जो इन कीटों की रंगों को देखने की दृष्टि क्षमता के निर्धारण में अहम है। यह स्थिति कई परिस्थितियों में किसी भी रंग को देखने की कीटों की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है।
बता दें कि जुगनू प्रकाश संकेतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। उनकी प्रजनन गतिविधियां एक विशेष समय के लिए सीमित होती है। कृत्रिम प्रकाश की वजह से वे भटक जाते हैं। इससे उनके अंधे होने का भी डर बना रहता है। दुनिया भर में कृत्रिम प्रकाश बढ़ा है, जिस वजह से इनकी संख्या घट रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जुगनू आबादी को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक कीटनाशकों का उपयोग और बढ़ता प्रकाश प्रदूषण है। यदि इन कारकों को नियंत्रित नहीं किया गया, तो अंततः जुगनू विलुप्त हो जाएंगे।
2018 के एक अध्ययन के मुताबिक, चीन और ताइवान के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाली एक्वाटिका फिक्टा प्रजाति के जुगनुओं में रोशनी के पैटर्न अलग-अलग देखे गए हैं। इसकी वजह कृत्रिम प्रकाश है। इस वजह से साथी को खोजने की उनकी संभावना कम हुई है। प्रजनन के मौसम में जुगनू अपने प्रकाश के विशेष पैटर्न से एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। लेकिन कृत्रिम प्रकाश की वजह से जुगनुओं को अपने साथी को आकर्षित करने के लिए ज़्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है।
चिंताजनक बात यह भी है कि तेज़ी से शहरीकरण के कारण दलदली भूमि के सिकुड़ने से जुगनुओं का आवास समाप्त हो गया है। जुगनू का जीवनकाल कुछ ही हफ्तों का होता है। वे गर्म, आर्द्र क्षेत्रों से प्यार करते हैं और नदियों और तालाबों के पास दलदलों, जंगलों और खेतों में पनपते हैं। स्वच्छ वातावरण की तलाश में और मच्छरों द्वारा फैलने वाली बीमारियों से निपटने के लिए, लोगों ने दलदलों को नष्ट कर दिया है और फलस्वरूप जुगनू के लिए अनुकूल माहौल नष्ट हो गया है।
पिछले कुछ वर्षों में कृत्रिम रोशनी के हस्तक्षेप के चलते न केवल जुगनुओं बल्कि सभी प्रकार के जीव-जंतुओं पर प्रभाव पड़ा है। यह देखा गया है कि पूरी दुनिया में रात के समय में प्रकाश व्यवस्था का स्वरूप पिछले करीब 20 वर्षों में नाटकीय रूप से बदला है। एलईडी जैसे विविध प्रकार के आधुनिक रोशनी उपकरणों का चलन बढ़ा है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि कृत्रिम प्रकाश से होने वाला प्रदूषण समस्त वातावरण को प्रदूषित करता है। प्रकाश प्रदूषण अमूमन पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है। कृत्रिम प्रकाश की तीव्रता बेचैनी को बढ़ा देती है और मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को दुरुस्त करके न केवल हम कीटों पर पड़ने वाले विनाशी प्रभाव को कम कर सकते हैं, बल्कि हमारे अपने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों से भी बच सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://scroll.in/article/1026776/artificial-lights-are-shrinking-firefly-habitats-in-india-and-beyond