देश-दुनिया में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के मद्देनज़र यह माना जाता रहा है कि इलेक्ट्रिक वाहन वायु प्रदूषण में न के बराबर योगदान देते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि एक अध्ययन में पता चला है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को दौड़ाकर भी हम अपने देश में सिर्फ 20 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कम कर पाएंगे, क्योंकि देश में 70 फीसदी बिजली कोयले से बनाई जा रही है। शोध बताता है कि इलेक्ट्रिक कारों को हम जितना ईको-फ्रेंडली समझते हैं, दरअसल ये उतनी हैं नहीं।
सोसायटी ऑफ रेयर अर्थ के मुताबिक एक इलेक्ट्रिक कार बैटरी बनाने में इस्तेमाल होने वाले 57 कि.ग्रा. कच्चे माल (8 कि.ग्रा. लीथियम, 35 कि.ग्रा. निकल, 14 कि.ग्रा. कोबाल्ट) को ज़मीन से निकालने में 4275 कि.ग्रा. एसिड कचरा व 57 कि.ग्रा. रेडियोसक्रिय अवशेष पैदा होता है। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया में हुआ शोध कहता है कि 3300 टन लीथियम कचरे में से 2 फीसदी ही रिसायकिल हो पाता है, 98 फीसदी प्रदूषण फैलाता है। शोध में यह भी पाया गया कि लीथियम को ज़मीन से निकालने से पर्यावरण तीन गुना ज़्यादा ज़हरीला हो जाता है।
लीथियम दुनिया की सबसे हल्की धातु है। यह बहुत आसानी से इलेक्ट्रॉन छोड़ती है। इसी कारण इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी में इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। हरित ईंधन कहकर लीथियम का महिमामंडन हो रहा है, पर इसे ज़मीन से निकालने से पर्यावरण तीन गुना ज़्यादा ज़हरीला होता है। लीथियम की 98.3 फीसदी बैटरियां इस्तेमाल के बाद गड्ढों में गाड़ दी जाती हैं। पानी के संपर्क में आने से इसका रिएक्शन होता है और आग लग जाती है। बता दें कि अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के एक गड्ढे में जून 2017 से दिसंबर 2020 तक इन बैटरियों से आग लगने की 124 घटनाएं हुईं, जो वाकई चिंताजनक है। ऐसे में यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को जितना इको-फ्रेंडली समझते आ रहे हैं, उतने हैं नहीं।
इसके अलावा, विद्युत वाहन बनाने में 9 टन कार्बन निकलता है, जबकि पेट्रोल में यह 5.6 टन है। विद्युत वाहन में 13,500 लीटर पानी लगता है, जबकि पेट्रोल कार में यह करीब 4 हज़ार लीटर है। यदि विद्युत वाहन को कोयले से बनी बिजली से चार्ज करें, तो डेढ़ लाख कि.मी. चलने पर पेट्रोल कार के मुकाबले 20 फीसदी ही कम कार्बन निकलेगा।
आज दुनिया का हर देश कोयले से बिजली उत्पादन कर इलेक्ट्रिक वाहन चलाकर कार्बन उत्सर्जन कम करने का ख्वाब देख रहा है तो स्वाभाविक तौर पर यह ख्वाब अधूरा रहने वाला है। इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग उसी देश में बेहतर है जहां बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोतों से ज़्यादा किया जाता हो।
भारत में 70 फीसदी बिजली कोयले से ही बन रही है। ऐसे में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग फायदेमंद नहीं है। उल्लेखनीय है कि पेट्रोल कार प्रति कि.मी. 125 ग्राम और कोयले से तैयार बिजली से चार्ज होने वाली इलेक्ट्रिक कार प्रति कि.मी. 91 ग्राम कार्बन पैदा करती है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के मुताबिक युरोप में विद्युत वाहन 69 फीसदी कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं क्योंकि यहां लगभग 60 फीसदी बिजली नवीकरणीय स्रोतों से बनती है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि दुनिया भर की सभी दो सौ करोड़ कारें विद्युत में बदल दें तो बेहिसाब एसिड कचरा निकलेगा, जिसे निपटाने के साधन ही नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या सभी पेट्रोल-डीज़ल कारों को विद्युत कारों में बदलने से प्रदूषण समस्या का हल हो जाएगा?
एमआईटी एनर्जी इनिशिएटिव के शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया में करीब दो सौ करोड़ वाहन हैं। इनमें से एक करोड़ ही इलेक्ट्रिक वाहन हैं। अगर सभी को विद्युत वाहनों में बदला जाए, तो उन्हें बनाने में जो एसिड कचरा निकलेगा, उसके निस्तारण के पर्याप्त साधन ही नहीं हैं। ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाकर और निजी कारें घटाकर ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है।
भारत में रजिस्टर्ड इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 10 लाख 76 हज़ार 420 है। और वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की यह इंडस्ट्री 150 अरब डॉलर यानी साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए की हो जाएगी। यानी आज की तुलना में यह इंडस्ट्री 90 गुना बड़ी हो जाएगी। आज इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल के पीछे कई सारे फायदे प्रत्यक्ष रूप से दिख रहे हैं। इसके साथ-साथ हमें अप्रत्यक्ष नुकसान के प्रति चेतने की आवश्यकता है। प्रदूषण से आज़ादी दिलाने में इन ई-वाहनों के योगदान को नकारा तो नहीं जा सकता लेकिन इनके निर्माण के दौरान निकलने वाला ज़हरीला कचरा बड़ी चुनौती है। इसके साथ-साथ बड़ी चुनौती हमारे देश के सामने नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने भी नवीकरणीय ऊर्जा और विद्युत वाहनों को लेकर लक्ष्य तय किए हैं। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 70 फीसदी व्यावसायिक कारें, 30 फीसदी निजी कारें, 40 फीसदी दो-पहिया और 80 फीसदी तिपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक में तबदील करना है। वहीं, 2030 तक 44.7 फीसदी बिजली नवीकरणीय स्रोतों से बनाएंगे, जो अभी 21.26 फीसदी है। फिलहाल देश में बिजली की आपूर्ति में कोयले का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में हमारे देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पर्याप्त बिजली बनाई जाएगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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