कई बांध बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाए जाते हैं लेकिन हाल ही में हुए अध्ययन में पाया गया है कि कुछ तरह की नदियों पर बने बांध अधिक प्रलयंकारी बाढ़ ला सकते हैं। अध्ययन सुझाता है कि नदी प्रबंधकों को गाद वाली और रेतीली नदियों पर अपनी बाढ़ नियंत्रण रणनीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
बांधों के अपने कई फायदे हैं। ये अपेक्षाकृत स्वच्छ बिजली उत्पन्न कर सकते हैं, पानी का भंडारण करते हैं जिसका उपयोग खेती और अन्य कार्यों में किया जा सकता है और ये बाढ़ को रोक सकते हैं।
लेकिन बांधों के खामियाज़े भी हैं; जैसे लोगों का विस्थापन, मछलियों के प्रवास में बाधा और कई अन्य पारिस्थितिक नुकसान। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि बांध बाढ़ों को अधिक गंभीर बना सकते हैं।
बांध इंजीनियरों को उम्मीद थी कि पानी भंडारण के अलावा नदियों के बहाव को नियंत्रित करके बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सकता है। चूंकि बांध गाद को रोक लेंगे और अपेक्षाकृत साफ पानी छोड़ेंगे जिससे नदी के तल में कटाव होगा और नदी गहरी हो जाएगी। इस कटाव से नदी अधिक पानी वहन कर सकेगी और बाढ़ का पानी नदी के किनारों पर फैलने से रुकेगा।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के भू-आकृति विज्ञानी हांगबो मा जानना चाहते थे कि बांध नदी की तलछटों को कैसे बदलते हैं – अध्ययन में आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। बांध से छोड़ा गया पानी नदी के तल से महीन कणों को साथ बहा ले जाता है और बड़े कण नदी तल में छोड़ जाता है। इस तरह का क्षरण नदी तल में जलमग्न टीले बनाता है।
दरअसल मा और उनके साथी येलो नदी का अध्ययन कर रहे थे, जो तिब्बती पठार के पहाड़ों से शुरू होकर पूर्वी चीन सागर की ओर बहती है। जब वे नदी के एकदम निचले भाग के पेंदे का सोनार की मदद से स्कैन कर रहे थे तो वहां टीलों की अनुपस्थिति से काफी प्रभावित हुए। ऐसा नदी तल में गाद की उच्च मात्रा के कारण हुआ होगा। येलो नदी दुनिया की सबसे कीचड़ वाली नदी है जिसका नाम इसके प्रवाह में भारी मात्रा में गाद के कारण रखा गया है। महीन कण टीले नहीं बनने देते हैं।
लेकिन ज़ियाओलांगडी बांध के करीब नदी का पेंदा ऊबड़-खाबड़ मिला और वहां बड़े-बड़े टीले थे। इसने शोधकर्ताओं को आश्चर्य में डाल दिया कि एक ही नदी के पेंदे में इतना परिवर्तन कैसे हो सकता है।
सवाल था कि क्या उबड़-खाबड़ और टीले से भरा नदी का पेंदा बाढ़ के पानी के प्रवाह को बाधित करेगा, जिससे पानी ऊपर चढ़ेगा और नदी उफान पर आ जाएगी और बाढ़ का पानी मैदान में फैल जाएगा। इस विचार को जांचने के लिए उनके दल ने नदी चैनल के आकार और अन्य कारकों के आधार पर गणना की। नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित परिणाम बताते हैं कि नदी चैनल 3.4 मीटर गहरी होने के बावजूद, 1999 में बांध बनने से पहले की तुलना में अब बड़ी बाढ़ लगभग दुगनी भयंकर हो गई हैं।
वर्ष 1980 से 2015 तक बाढ़ के रिकॉर्ड जांचने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि मध्यम और बड़ी बाढ़ों की भयावहता वास्तव में बढ़ गई थी। दूसरी ओर, इसी अवधि में आई छोटी बाढ़ों की भयावहता में कमी आई थी; संभवत: नदी की गहराई थोड़ी बढ़ने के कारण ऐसा हुआ होगा।
सौभाग्य से, बांध बनने के बाद से शायद ही कभी निचली येलो नदी में बड़ी बाढ़ आई हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि जलवायु शुष्क हो गई है और जलाशय में अब भी अत्यधिक वर्षा से आने वाले प्रवाह को थामे रखने की पर्याप्त क्षमता है। लेकिन जलवायु मॉडल सुझाता है कि इस शताब्दी में येलो नदी बेसिन में वर्षा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। और नदी जलाशय में तलछट जमा होना जारी है – और यह पहले से ही 75 प्रतिशत भरा है – बाढ़ के पानी को जमा करके रखने की बांध की क्षमता कम हो जाएगी।
टीम का अनुमान है कि नए बांध 80 प्रतिशत से अधिक निचली नदियों में आने वाली बड़ी बाढ़ की भयावहता बढ़ा देंगे। इसलिए हमें सोचना चाहिए कि न केवल येलो नदी के लिए बल्कि अन्य नदियों के लिए भी बाढ़ के जोखिम का आकलन कैसे किया जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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