सदियों से रसायनज्ञ प्रकृति प्रदत्त चीज़ों से लाभदायक उत्पाद बनाते आए हैं। दूसरी ओर, कार्बन उत्सर्जन और प्लास्टिक प्रदूषण से उपजा पर्यावरण संकट भी रसायन विज्ञान की ही देन है। अब ज़रूरत है कि रसायनज्ञ इन समस्याओं से निपटने के लिए अपने काम करने के तरीकों में बदलाव करें। साथ ही रसायन विज्ञान के शिक्षण के तरीकों में भी बदलाव की ज़रूरत है ताकि पर्यावरण अनुकूल तरीकों से काम करने का माहौल बने। यह किया तो जा रहा है, लेकिन पर्याप्त तेज़ी से नहीं।
हाल ही में दक्षिण कोरिया के उल्सान इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के रसायनज्ञ बार्टोज़ ग्रिज़ीबोव्स्की और उनके साथियों ने नेचर पत्रिका में एक ऐसे ही प्रयास का वर्णन किया है। इसमें उन्होंने अपशिष्ट पदार्थों से उपयोगी उत्पाद बनाने के लिए कृत्रिम बुद्धि का उपयोग किया है। इस प्रयास के तहत कृत्रिम बुद्धि को औषधि निर्माण और कृषि में प्रयुक्त लगभग 300 ज्ञात रसायनों की अभिक्रिया का प्रशिक्षण दिया गया। यह काम हरित रसायन विज्ञान (ग्रीन केमिस्ट्री) अभियान का नवीनतम योगदान है।
1990 के दशक में शुरू हुए हरित रसायन विज्ञान अभियान में पर्यावरण अनुकूल तरीकों पर ज़ोर है। जैसे अभिक्रिया करवाने में पर्यावरण-स्नेही विलायकों का उपयोग, अभिक्रियाओं को कम ऊर्जा से करवाने के तरीके खोजना वगैरह। तब से काफी प्रगति हुई है। उदाहरण के तौर पर, प्लास्टिक पुर्नचक्रण (रीसायक्लिंग) के तरीकों में काफी सुधार हुआ है और ऐसे उत्प्रेरक विकसित किए गए हैं जो विघटित न होने वाले पदार्थों को भी छोटे उपयोगी अणुओं में तोड़ सकते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि पर वार्ता के चलते इन प्रयासों को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
लेकिन इस तरह के प्रयासों और अनुसंधानों में तेज़ी लाने के लिए स्कूलों और विश्वविद्यालयों के स्तर पर रसायन विज्ञान की शिक्षा में बदलाव करने की आवश्यकता है ताकि छात्र यह सीख सकें कि किस तरह दवाइयों और उर्वरक जैसे रसायन सुरक्षित और टिकाऊ ढंग से बनाए जाएं।
वैसे कुछ विश्वविद्यालयों ने अपने स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में पर्यावरण हितैषी, हरित या टिकाऊ रसायन विज्ञान शामिल किया है। और स्कूलों और स्नातक स्तर के रसायन विज्ञान पाठ्यक्रमों में जलवायु परिवर्तन का रसायन विज्ञान, और रसायन विज्ञान का स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज पर प्रभाव जैसे विषय शामिल किए जा रहे हैं। लेकिन विद्यार्थियों को ऐसे पर्यावरण हितैषी उत्पाद विकसित करने के लिए ज्ञान और कौशल से लैस करना एक बड़ी चुनौती है। कई देशों के स्कूलों में आज भी दशकों पुराने पाठ्यक्रम चल रहे हैं।
रसायन विज्ञान शिक्षा पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ता इस बात की वकालत करते हैं कि इसका पाठ्यक्रम समेकित दृष्टिकोण पर आधारित होना चाहिए जो विद्यार्थियों को रासायनिक यौगिकों या घटक तत्वों के परस्पर सम्बंध भी सिखाए और रसायन विज्ञान के व्यापक प्रभावों को मापना भी सिखाए। जैसे अर्थव्यवस्था और समाज पर, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर रसायन विज्ञान के विविध प्रभाव।
रसायन शास्त्र पाठ्यक्रम के कुछ केंद्रीय हिस्सों पर पुनर्विचार की भी ज़रूरत है। उदाहरण के लिए कार्बनिक रसायन विज्ञान। जर्नल ऑफ केमिकल एजुकेशन में प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया है कि वर्तमान कार्बनिक रसायन विज्ञान पाठ्यक्रम मुख्यत: जीवाश्म स्रोतों से कार्बन यौगिकों के रूपांतरण पर केंद्रित है। ऐसे कई यौगिकों को रीसायकल करना और उनका पुन: उपयोग करना मुश्किल होता है। इसके अलावा, इसमें उपयोग किए जाने वाले अभिकर्मक खतरनाक हो सकते हैं। शोध पत्र में सुझाव दिया गया है कि विद्यार्थियों को सजीवों द्वारा उत्पादित यौगिकों के रसायन विज्ञान (जैव रसायन) का अध्ययन करना चाहिए। साथ ही ऐसे यौगिकों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए जिन्हें रीसायकल करना आसान हो। ऐसा करने से विद्यार्थी ऐसे उत्पाद बनाने के लिए तैयार होंगे जो जैव-विघटनशील हों, या जिन्हें आसानी से छोटे, पुन:उपयोग करने लायक अणुओं में तोड़ा जा सके। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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