हाल ही जिनेटिक रूप से परिवर्तित (जिरूप) मच्छरों को खुले में छोड़ने के परिणाम प्रकाशित हुए हैं। उद्देश्य इन मच्छरों की मदद से वायरस-वाहक जंगली मच्छरों की आबादी को कम करना है। प्रारंभिक परिणाम तो सकारात्मक हैं लेकिन व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है।
प्रयोग फ्लोरिडा के दक्षिणी हिस्से के उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर किया गया। इन मच्छरों को तैयार करने वाली कंपनी ऑक्सीटेक द्वारा सात महीनों के दौरान लगभग 50 लाख जिरूप एडीज़ एजिप्टी मच्छर इन स्थलों पर छोड़े गए और लगातार निगरानी की गई। ऑक्सीटेक ने 6 अप्रैल को आयोजित एक वेबिनार में ये परिणाम साझा किए हैं लेकिन अभी तक कोई डैटा प्रकाशित नहीं किया है।
गौरतलब है कि जंगली एडीज़ एजिप्टी मच्छर चिकनगुनिया, डेंगू, ज़ीका और पीतज्वर जैसे वायरसों का वाहक है। इसलिए वैज्ञानिक उनकी आबादी को कम करने के तरीकों की तलाश में हैं। ऑक्सीटेक द्वारा तैयार किए गए नर मच्छरों में एक ऐसा जीन डाला गया है जो उनकी मादा संतानों के लिए घातक होता है। इन्हें खुले में छोड़ने पर ये आम मादा मच्छरों के साथ संभोग करेंगे और नतीजे में पैदा होने वाली मादा संतानें प्रजनन करने से पहले ही मर जाएंगी। नर संतानों में यह जीन रहेगा और वे आने वाली लगभग आधी पीढ़ी में इसे पहुंचा देंगे। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह जीन मादा मच्छरों की जान लेता रहेगा। यह तो हुई सिद्धांत की बात।
इस सैद्धांतिक योजना की जांच के लिए शोधकर्ताओं ने जिरूप मच्छरों के अंडों को कुछ बक्सों में रखा और उनके आसपास कुछ ट्रैप्स तैयार किए जो 400 मीटर से अधिक दायरे को कवर करते थे। कुछ ट्रैप्स मुख्य रूप से अंडे देने की जगह के रूप में काम करते थे और अन्य वयस्क मच्छरों को पकड़ने में मदद करते थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि बक्सों में पैदा होकर निकलने वाले नर मच्छर, जो काटते नहीं हैं, चारों ओर एक हैक्टर के क्षेत्र में फैल गए जो जंगली एडीज़ एजिप्टी की सामान्य सीमा है।
इसके बाद इन नर मच्छरों ने उस क्षेत्र की जंगली आबादी के साथ संभोग किया और मादा मच्छरों ने इन ट्रैप्स के अलावा गमलों, कूड़ेदानों और सॉफ्ट-ड्रिंक के कैन में भी अंडे दिए।
शोधकर्ताओं द्वारा इन ट्रैप्स से 22,000 से अधिक अंडे एकत्रित किए गए और उनसे निकलने वाली संतानों का अध्ययन किया गया। वे सभी मादा मच्छर वयस्क होने से पहले ही मर गई जिनमें घातक जीन था। इसके अलावा, यह घातक जीन जंगली आबादी में दो से तीन महीने यानी मच्छरों की लगभग तीन पीढ़ियों तक बने रहने के बाद स्वत: गायब हो गया। टीम ने यह भी पाया कि मच्छरों को छोड़ने के स्थान से 400 मीटर से अधिक दूर घातक जीन युक्त कोई मच्छर नहीं मिला।
फिलहाल ऑक्सीटेक कंपनी इस अध्ययन को और अधिक विस्तृत करने की योजना बना रही है। इसके लिए राज्य नियामकों से अनुमोदन की आवश्यकता होगी। कैलिफोर्निया के विसालिया क्षेत्र में भी इस तरह का अध्ययन करने की योजना बनाई जा रही है।
ये अध्ययन इस बात का आकलन नहीं कर पाएंगे कि यह विधि एडीज़ एजिप्टी द्वारा संचारित वायरस को किस हद तक कम करती है। जन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का भी आकलन नहीं हो सकेगा क्योंकि जिस क्षेत्र में अध्ययन किया गया है वहां एडीज़-संचारित वायरल संक्रमण काफी कम है। इसके लिए कंपनी को किसी दूसरे क्षेत्र में नियंत्रित परीक्षण करना होगा। वैसे ज़रूरी नहीं कि एडीज़ एजिप्टी की आबादी को कम करके बीमारी के प्रकोप को रोका जा सकेगा। फ्लोरिडा के इस क्षेत्र में एडीज़ एजिप्टी की आबादी मच्छरों की आबादी का मात्र 4 प्रतिशत है जबकि 80 प्रतिशत ऐसी प्रजातियां हैं जो रोग वाहक तो नहीं हैं लेकिन अधिक परेशान करती हैं।
गौरतलब है कि 2017 में भी एडीज़ एजिप्टी मच्छरों की आबादी को कम करने के लिए नर मच्छरों को एक बैक्टीरिया से संक्रमित किया गया था। प्रयोगशाला में तैयार किए गए इन नर मच्छरों से संभोग करने पर मादा मच्छरों के अंडों से लार्वा नहीं निकलते। ऑक्सीटेक ने इसी काम के लिए जिनेटिक परिवर्तन का सहारा लिया है। प्रयोग के वास्तविक असर तो काफी अध्ययनों के बाद ही स्पष्ट होंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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