दो प्राचीन मिस्रवासियों को दफनाने के 3400 से अधिक वर्षों के बाद, उनके साथ दफनाए गए भोजन भरे मर्तबानों से अब तक मीठी गंध आ रही थी। हाल ही में रसायनज्ञों और पुरातत्ववेत्ताओं के दल ने इन गंधों का विश्लेषण करके पता लगाने की कोशिश की है कि इनमें क्या रखा गया था। यह अध्ययन गंध के पुरातत्व के लिहाज़ से महत्वपूर्ण है।
1906 में लक्सर के निकट दायर अल-मदीना कब्रिस्तान से खा और मेरिट के साबुत मकबरे खोदे गए थे। ‘मुकद्दम’ या वास्तुकार रहे खा और उनकी पत्नी मेरिट का मकबरा मिस्र का अब तक का सबसे पूर्ण गैर-शाही प्राचीन मकबरा है, जो बताता है कि मृत्यु के बाद उच्च वर्ग के लोगों के साथ क्या किया जाता था। इस मकबरे में अद्भुत चीज़ों का संग्रह है। यहां तक कि मकबरे में खा के लिनेन के अंत:वस्त्र भी हैं, जिन पर उसके नाम की कढ़ाई की गई है।
लेकिन खुदाई के समय मकबरे की खोज करने वाले पुरातत्वविदों ने ममियों को खोलने या उनके साथ दफन सीलबंद सुराही, मर्तबान और जग को खोलने से खुद को रोके रखा, यहां तक कि इन्हें इटली के मिस्री संग्रहालय में रखे जाने के बाद भी इनका अध्ययन नहीं किया। इनमें से कई पात्रों में क्या रखा था/है यह अब भी रहस्य है। हालांकि इनमें क्या होगा इसके कुछ संकेत मिलते हैं। एक मत है कि इनमें से कुछ पात्रों में फलों की महक थी।
महक के विश्लेषण के लिए युनिवर्सिटी ऑफ पीसा की रसायनज्ञ इलारिया डिगानो और उनके साथियों ने सीलबंद मर्तबान और प्राचीन भोजन के अवशेष लगी कड़छी सहित विभिन्न वस्तुओं को प्लास्टिक की थैलियों में बंद करके रखा ताकि इनमें से निकलने वाले वाष्पशील अणुओं को इकट्ठा किया जा सके। प्राप्त नमूनों का मास स्पेक्ट्रोमेट्री अध्ययन करने पर एल्डिहाइड और लंबी शृंखला वाले हाइड्रोकार्बन मिले, जो इनमें मधुमक्खी के छत्ते का मोम होने का संकेत देते हैं; ट्राइमेथिलअमीन मिला जो सूखी मछली की उपस्थिति दर्शाता है; और फलों में आम तौर पर मौजूद अन्य एल्डिहाइड मिले। इन नतीजों को मकबरे से मिली सामग्रियों के पुन:विश्लेषण करने की एक बड़ी परियोजना में शामिल किया जाएगा, जिससे खा और मेरिट के काल में (तुतनखामुन के तख्तनशीं होने से लगभग 70 साल पहले) गैर-शाही लोगों को दफनाने के रीति-रिवाजों की एक अधिक व्यापक तस्वीर मिलेगी।
वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सुगंधित यौगिकों ने प्राचीन मिस्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। वर्ष 2014 में, शोधकर्ताओं ने 6300 और 5000 साल पुरानी लिनेन की पट्टियों से वाष्पशील अणु प्राप्त किए थे। इन पट्टियों का उपयोग मिस्र के कुछ सबसे प्राचीन ज्ञात कब्रिस्तानों के शवों को लपेटने के लिए किया गया था। इन अणुओं से जीवाणुरोधी गुणों वाले लेप की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी, अर्थात मिस्र के लोग अनुमान से लगभग 1500 साल पहले से ममीकरण का प्रयोग कर रहे थे।
लेकिन अब भी पुरातत्व में गंध विश्लेषण पर इतना काम नहीं हो रहा है। पुरावेत्ताओं द्वारा वाष्पशील अणुओं/यौगिकों को यह मानकर नज़रअंदाज़ किया जाता है कि ये तो उड़ गए होंगे। लेकिन प्राचीन मिस्रवासियों को अच्छे से समझने के लिए गंध की दुनिया में उतरना होगा। उदाहरण के लिए, यही देखें कि सुगंधित रेज़िन (राल) से प्राप्त सुगंधित धूप/अगरबत्ती प्राचीन मिस्रवासियों के लिए अहम थी। उनके धार्मिक अनुष्ठानों और अंतिम संस्कार की कुछ रस्मों में धूप/अगरबत्ती अवश्य होती थी। चूंकि मिस्र में राल पैदा करने वाले पेड़ नहीं उगते थे, इसलिए सुंगधित राल प्राप्त करने के लिए वे लंबी दूरी तय करते होंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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