विश्व के अधिकांश भागों में पीने का पानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी नदियों से मिलता है। एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, कावेरी, नर्मदा, सिंघु, यांगत्सी नदियां, अफ्रीका में नील, नाइजर, कांगो, जम्बेजी नदियां, उत्तरी अमेरिका में हडसन, मिसिसिपी, डेलावेयर, मैकेंज़ी नदियां, दक्षिणी अमेरिका में अमेज़न नदी, युरोप में वोल्गा, टेम्स एवं ऑस्ट्रेलिया में मरे व डार्लिंग विश्व की प्रमुख नदियां हैं।
नदियां न केवल लोगों की प्यास बुझाती हैं, बल्कि आजीविका का उत्तम साधन भी होती हैं। उद्योगों और सिंचाई हेतु जल प्रमुख रूप से नदियों से लिया जाता है। नदियां न सिर्फ जल की पूर्ति करती हैं बल्कि घरेलू एवं औद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को भी अपने साथ बहाकर ले जाती हैं। नदियों पर बांध बनाकर बिजली प्राप्त की जाती है। नदियों से मत्स्य पालन जैसे कई लाभ हो रहे हैं। नदियों से पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिलता है। नदियां धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक के अलावा स्वास्थ्य, कृषि, व्यापार, पर्यटन, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण जैसे कई क्षेत्रों से सम्बंध रखती है। पारिस्थितिक तंत्र और भूजल स्तर को बनाए रखने में भी नदियां अहम योगदान देती हैं।
हमारे देश में आज शायद ही ऐसी कोई नदी हो जो प्रदूषण से मुक्त हो। नदियों में प्रदूषण के कारण जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। नदियों पर न केवल प्रदूषण का बल्कि इसके मार्ग में बदलाव, बालू खनन, खत्म होती जैव विविधता और जलग्रहण क्षेत्र के खत्म होने का भी असर हो रहा है। नदियों के अलावा अन्य खुले जलाशय जैसे झील, तालाब आदि में अतिक्रमण हुआ है। कई नदियां और सतही जल स्रोत सीवेज और कूड़े का डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं।
हाल ही में नदियों में विभिन्न प्रकार की दवाइयों का प्रदूषण पाया गया है। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दवा उद्योग विश्व की लगभग हर नदी के पानी को प्रदूषित कर रहा है। भारत में यमुना व कृष्णा सहित देश की विभिन्न नदियों में इस तरह का प्रदूषण पाया गया है। विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के बाद भी गंगा व अन्य नदियों में प्रदूषण को लेकर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्यों की प्रदूषण निगरानी एजेंसियों के एक विश्लेषण से पता चला है कि हमारे प्रमुख सतही जल स्रोतों का 90 प्रतिशत हिस्सा अब उपयोग के लायक नहीं बचा है। सीपीसीबी की एक रिपोर्ट के अनुसार “देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित हैं।” 17 प्रतिशत जल राशियां गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। उत्तराखंड से गंगा सागर तक करीब 2500 किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली गंगा 50 स्थानों पर प्रदूषित है।
सीपीसीबी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से 31 में नदियों का प्रवाह प्रदूषित है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 53 प्रदूषित प्रवाह हैं। इसके बाद असम, मध्यप्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, मिज़ोरम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, मेघालय, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, नगालैंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, पंजाब, राजस्थान, पुडुचेरी, हरियाणा और दिल्ली हैं।
सीपीसीबी की एक रिपोर्ट में प्रदूषण के लिए घरेलू सीवरेज, साफ-सफाई की अपर्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन और गंदा पानी तथा साफ-सफाई के लिए नीतियों की गैर-मौजूदगी को ज़िम्मेदार माना गया है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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