शरीर पर टैटू बनवाने का चलन काफी पुराना है। प्रागैतिहासिक काल में शरीर पर विभिन्न आकृतियां गुदवाना एक आम बात थी। शुरुआत में गोदना यानी टैटू बनाने के लिए धातु के औज़ारों और वनस्पति रंजकों का उपयोग किया जाता था जो काफी कष्टदायी होता था। आधुनिक तकनीक से गोदना बनाना भी आसान हो गया और गुदवाने वाले को उतना कष्ट भी नहीं होता।
टैटू बनाने में एक कुशल कलाकार टैटू की सुई को त्वचा में प्रति सेकंड 200 बार चुभोता है। लेकिन रोचक बात यह है कि इस तकनीक में इंजेक्शन के समान स्याही को दबाव डालकर मांस में नहीं भेजा जाता बल्कि जब सुई बाहर निकाली जाती है तब वहां बने खाली स्थान में स्याही खींची जाती है। टेक्सास टेक युनिवर्सिटी के रसायन इंजीनियर इडेरा लावल की रुचि इस तकनीक को टीकाकरण में आज़माने में है।
आम तौर पर टीकाकरण के लिए उपयोग की जाने वाली खोखली सुई ऊपर से पिस्टन को दबाकर डाले गए दबाव पर निर्भर करती है। इसमें सुई मांसपेशियों तक पहुंचती है और फिर सिरिंज के पिस्टन पर दबाव बनाया जाता है जिससे तरल दवा शरीर में प्रवेश कर जाती है।
लावल का ख्याल है कि यह तकनीक हर प्रकार के टीके के लिए उपयुक्त नहीं है। जैसे, आजकल विकसित हो रहे डीएनए आधारित टीके आम तौर पर काफी गाढ़े होते हैं जिनको इंजेक्शन की सुई से दे पाना संभव नहीं होता। यह काम टैटू तकनीक से किया जा सकता है क्योंकि टैटू की सुई का विज्ञान काफी अलग है।
टैटू की स्याही-लेपित सुई त्वचा में प्रवेश करने पर वहां 2 मिलीमीटर गहरा छेद बना देती है। जब सुई त्वचा से बाहर निकलती है, तब इस छोटे छेद में निर्मित निर्वात स्याही को अंदर खींच लेता है। लावल ने इसे एक मांस-नुमा जेल में प्रयोग करके भी दर्शाया है।
कई अन्य विशेषज्ञ लावल के इस प्रयोग को काफी प्रभावी मानते हैं। डैटा पर गौर करें तो आधी स्याही 50 में से 10 टोंचनों से ही पहुंच गई थी। इष्टतम संख्या पर अध्ययन जारी है। (स्रोत फीचर्स)
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