हाल ही में दो लाख लोगों पर किए गए एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि सार्स-कोव-2 से संक्रमित लोगों में मधुमेह का जोखिम काफी बढ़ जाता है। दी लैंसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्रायनोलॉजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार मधुमेह का जोखिम कोविड-19 से संक्रमित होने के कई महीनों बाद विकसित हो सकता है।
मिसौरी स्थित सेंट लुइस हेल्थकेयर सिस्टम के वेटरन्स अफेयर्स (वीए) के शोधकर्ता ज़ियाद अल-अली और उनके सहयोगी यान ज़ी ने 1,80,000 से अधिक ऐसे लोगों के मेडिकल रिकॉर्ड का अध्ययन किया जो कोविड-19 से पीड़ित होने के बाद कम से कम एक महीने से अधिक समय तक जीवित रहे थे। इसके बाद उन्होंने इन रिकॉर्ड्स की तुलना दो समूहों (तुलना समूहों) से की जिनमें प्रत्येक समूह में सार्स-कोव-2 से असंक्रमित लगभग 40-40 लाख लोग शामिल थे। ये वे लोग थे जिन्होंने या तो महामारी के पहले या फिर महामारी के दौरान बुज़ुर्ग स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का उपयोग किया था। इस नए विश्लेषण के अनुसार तुलना समूह के वृद्ध लोगों की तुलना में संक्रमित लोगों में एक वर्ष बाद तक मधुमेह विकसित होने की संभावना लगभग 40 प्रतिशत अधिक थी। लगभग सभी मामलों में टाइप-2 मधुमेह पाया गया जिसमें शरीर या तो इंसुलिन के प्रति संवेदी नहीं रहता या पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता।
जिन लोगों में संक्रमण हल्का था और पूर्व में मधुमेह का कोई जोखिम नहीं था उनमें भी मधुमेह विकसित होने की संभावना बढ़ गई थी लेकिन रोग की बढ़ती गंभीरता के साथ मधुमेह विकसित होने की संभावना भी अधिक होती है। अस्पताल या आईसीयू में भर्ती लोगों में तो मधुमेह का जोखिम तीन गुना अधिक पाया गया। मोटापे और टाइप-2 मधुमेह के जोखिम वाले लोगों में संक्रमण के बाद मधुमेह विकसित होने का जोखिम दुगने से अधिक हो गया।
देखा जाए तो कोविड-19 से पीड़ित लोगों की बड़ी संख्या (विश्व में 48 करोड़) के चलते मधुमेह के जोखिम में मामूली-सी वृद्धि से भी मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हो सकती है।
वैसे ज़रूरी नहीं कि ये निष्कर्ष अन्य समूहों पर भी लागू हों। जैसे, युनिवर्सिटी ऑफ वोलोन्गोंग (ऑस्ट्रेलिया) के महामारी विज्ञानी गीडियोन मेयेरोविट्ज़-काट्ज़ के अनुसार इस अध्ययन में शामिल किए गए अमरीकियों में अधिकांश वृद्ध, श्वेत पुरुष थे जिनका रक्तचाप अधिक था और वज़न भी अधिक था जिसके कारण उनमें मधुमेह का खतरा भी अधिक था।
फिलहाल यह पक्का नहीं कहा जा सकता कि मधुमेह के बढ़े हुए जोखिम का कारण सार्स-कोव-2 संक्रमण ही है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कोविड-19 से उबरने वाले लोगों में मधुमेह में वृद्धि के अन्य कारक भी हो सकते हैं। जैसे, संभव है कि जब तक लोगों ने कोविड-19 के लिए स्वास्थ्य सेवा की मांग न की हो तब तक उनमें मधुमेह की उपस्थिति का पता ही न चला हो।
गौरतलब है कि महामारी की शुरुआत में ही शोधकर्ताओं ने युवाओं और बच्चों की रिपोर्टों के आधार पर बताया था कि अन्य वायरसों की तरह सार्स-कोव-2 भी पैंक्रियाज़ की इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं को क्षति पहुंचा सकता है। जो टाइप-1 मधुमेह का कारण बनता है। अध्ययनों में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जो यह साबित कर सके कि सार्स-कोव-2 युवाओं और बच्चों में टाइप-1 मधुमेह में वृद्धि का कारण बन रहा है। वैसे एक प्रयोगशाला अध्ययन ने सार्स-कोव-2 द्वारा इंसुलिन उत्पादन करने वाली पैंक्रियाज़ कोशिकाओं को नष्ट करने के विचार को भी चुनौती दी है।
एक सवाल यह है कि क्या कोविड-19 से ग्रसित लोगों में एक वर्ष के बाद भी चयापचय सम्बंधी परिवर्तन बने रहेंगे। विशेषज्ञों का मत है कि मधुमेह के शुरू होने के रुझानों का और अधिक अध्ययन ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि ऐसा किन कारणों से हो रहा है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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