पावडरी माइल्ड्यू नामक फफूंद गेहूं की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। यह फसलों को संक्रमित करती है, पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और वृद्धि धीमी पड़ जाती है। यह फसल को 40 प्रतिशत तक नष्ट कर सकती है।
हाल ही में शोधकर्ताओं ने एक ऐसा जीन-संपादित गेहूं विकसित किया है जो दाने के विकास को बाधित किए बिना फफूंद से सुरक्षा प्रदान करता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह तकनीक स्ट्रॉबेरी और खीरे जैसी अन्य फसलों में भी अपनाई जा सकती है।
फसलों में रसायनों का उपयोग कम करना पर्यावरण के लिए अच्छा होगा और साथ ही रोग प्रतिरोधी पौधे ऐसे देशों के लिए बेहतर साबित होंगे जिनकी कीटनाशकों तक पहुंच नहीं है।
गौरतलब है कि कुछ पौधे प्राकृतिक रूप से पावडरी माइल्ड्यू से अपना बचाव कर सकते हैं। 1940 के दशक में इथोपिया की यात्राओं के दौरान वैज्ञानिकों ने जौं की ऐसी किस्में देखी थी जिन पर फफूंद का बहुत कम प्रभाव था। लेकिन ये पौधे और इनके आधार पर पौध संवर्धकों द्वारा बनाए गए पौधे ठीक से विकसित नहीं हो पाते थे और अनाज की उपज भी कम थी। फिर भी संवर्धकों के प्रयासों से जौं के ऐसे संस्करण तैयार हो सके जो कवकों से सुरक्षित रहते थे और पर्याप्त रूप से विकसित होने में सक्षम थे। इस तरह से विकसित जौं काफी सफल रही।
कई रोगजनक जीव पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने के तरीके विकसित कर लेते हैं लेकिन इन नई किस्मों में पाउडरी माइल्ड्यू से दशकों तक सुरक्षा मिलती रही। इसका कारण MLO नामक जीन है जो उत्परिवर्तित होने पर फफूंद का संक्रमण रोकता है। यह जीन फफूंद हमले के दौरान कोशिका भित्ति को मोटा करके पौधे को सुरक्षा प्रदान करता है।
गेहूं में यह तकनीक सफल नहीं रही। गेहूं में MLO में उत्परिवर्तन से पौधों का विकास रुक गया और पैदावार में 5 प्रतिशत की कमी आई। किसानों को फफूंदनाशी का इस्तेमाल करना ही बेहतर लगा। समस्या के समाधान के लिए कुछ वर्ष पूर्व चीन के इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड डेवलपमेंटल बायोलॉजी के पादप विज्ञानी गाओ कैक्सिया और उनके सहयोगियों ने क्रिस्पर सहित विभिन्न जीन-संपादन तकनीकों का उपयोग करते हुए गेहूं में MLO जीन की छह प्रतियों में सुरक्षा देने वाले उत्परिवर्तन तैयार किए।
वैसे ऐसे परिवर्तन पारंपरिक तरीकों से हासिल किए जा सकते हैं लेकिन उसमें कई वर्षों का समय लग जाता है। वैसे भी अब कई देशों की सरकारों ने हाल ही में जीन संपादन तकनीक से बनाए गए पौधों के अध्ययन और व्यवसायीकरण को आसान बना दिया है।
नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार टीम ने कुछ सीमित मैदानी परीक्षणों में जीन-संपादित गेहूं और अन्य गेहूं की वृद्धि में कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं पाया। लेकिन सिर्फ एक-एक पौधे को माप कर उपज का विश्वसनीय अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए बड़े प्लॉट में परीक्षण की आवश्यकता होगी।
जीन-संशोधित पौधों की वृद्धि सामान्य रहना अचरज की बात थी। गाओ और उनके सहयोगियों ने पाया कि जीन संपादन से MLO जीन का एक भाग ही नहीं हटा बल्कि गुणसूत्र का एक बड़ा हिस्सा भी हट गया था। नतीजतन TMT3 नामक एक नज़दीकी जीन अधिक सक्रिय हो गया जिसने पौधे की वृद्धि को सामान्य रखा। TMT3 जीन एक ऐसे प्रोटीन का निर्माण करता है जो शर्करा के अणुओं के परिवहन में मदद करता है लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि MLO उत्परिवर्तन के कारण उपज में होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कैसे हुई है।
गाओ और उनके सहयोगी स्ट्रॉबेरी, मिर्च और खीरे में भी जीन संपादन का प्रयास कर रहे हैं जो पाउडरी माइल्ड्यू के प्रति अति संवेदनशील हैं। इसी दौरान उन्होंने गेहूं की चार किस्मों का जीन-संपादन किया है जिनको चीन के किसानों ने काफी पसंद किया और बड़े मैदानी परीक्षणों में अच्छे परिणाम दिए हैं। बहरहाल, चीन में जीन-संपादित गेहूं को किसानों को बेचने से पहले कृषि मंत्रालय की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.ada1504/listitem/_20220219_on_bacteriophage.jpg