न्यूज़ीलैंड में नया नियम यह बनने जा रहा है कि 2008 के बाद जन्मा कोई भी व्यक्ति आजीवन सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पाद नहीं खरीद सकेगा। मकसद यह है अगली पीढ़ी को तंबाकू उत्पाद न बेचे जा सकें। न्यूज़ीलैंड की स्वास्थ्य मंत्री आयशा वेराल का कहना है कि “हम चाहते हैं कि युवा लोग धूम्रपान शुरू ही न करें।” डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। बहरहाल, आलोचकों की भी कमी नहीं है।
आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में न्यूज़ीलैंड की लगभग 13 प्रतिशत वयस्क आबादी धूम्रपान करती है और अधिकारियों का लक्ष्य इसे घटाकर 5 प्रतिशत करना है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि हर चार में से एक कैंसर धूम्रपान की वजह से होता है और यह मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
तुलना के लिए देख सकते हैं कि भारत में लगभग 30 प्रतिशत वयस्क लोग (47 प्रतिशत पुरुष और 14 प्रतिशत महिलाएं) धूम्रपान करते हैं या तंबाकू चबाते हैं।
न्यूज़ीलैंड की आबादी 50 लाख से कुछ अधिक है और यहां सिगरेट बेचने के लिए अधिकृत दुकानें हैं। फिलहाल ऐसी अधिकृत दुकानों की संख्या 8000 है जिसे घटाकर 500 से कम करने का भी लक्ष्य रखा गया है।
सरकार ने इतना सख्त कदम उठाने का निर्णय पूर्व में किए गए उपायों (जैसे सिगरेट की कीमतें बढ़ाना) की सीमाओं के मद्देनज़र लिया है। इसके साथ ही यह व्यवस्था भी की जाएगी कि देश में मात्र कम निकोटिन वाली सिगरेटें ही बेची जा सकें।
जहां कई देश न्यूज़ीलैंड के इस कदम को सतर्कतापूर्वक देख रहे हैं, वहीं आलोचकों का कहना है कि इस निर्णय का परिणाम मात्र यही होगा कि सिगरेट का काला बाज़ार अस्तित्व में आ जाएगा और भ्रष्टाचार का एक नया अड्डा बन जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि इससे बेरोज़गारी भी बढ़ेगी।
दुनिया भर के स्वास्थ्य कार्यकर्ता न्यूज़ीलैंड के इस कदम के परिणामों की समीक्षा करके देखना चाहेंगे कि क्या यह शेष देशों के लिए एक मॉडल बन सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://i2.wp.com/media.globalnews.ca/videostatic/news/695idof94t-ysjlfxa32u/nosmokingweb.jpg?w=1040&quality=70&strip=all