दक्षिण-पूर्वी प्रशांत महासागर में पाई जाने वाली पेरूवियन एंकोवी नामक मछली आकार में छोटी लेकिन काफी महत्वपूर्ण जीव है। एक उंगली के बराबर इस मछली का सबसे अधिक शिकार किया जाता है जो वैश्विक मत्स्याखेट का लगभग 15 प्रतिशत तक होता है। इन अत्यधिक पौष्टिक मछलियों का अधिकांश उपयोग सैल्मन और अन्य व्यावसायिक मत्स्य प्रजातियों के भोजन के रूप में किया जाता है जिनकी कीमत अरबों डॉलर है। प्राचीन तलछट और जीवाश्मों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि किसी समय महासागरों की सतह के पानी के गर्म होने से इस मूल्यवान संसाधन का सफाया हो गया था। आशंका है कि वर्तमान जलवायु परिवर्तन के कारण एक बार फिर यह आपदा दोहराई जा सकती है। और यदि समुद्र ऐसे ही गर्म होते रहे तो समुद्री पक्षियों से लेकर समुद्री स्तनधारी शिकारियों के लिए एंकोवियों के बिना काफी कठिन समय होगा। इस स्थिति में कई प्रजातियों की विलुप्ति का जोखिम बढ़ जाएगा।
शोधकर्ता लंबे समय से जंगली मछलियों की आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे काफी चिंतित रहे हैं। गौरतलब है कि कुछ प्रजातियों को प्रजनन के लिए तापमान के एक निश्चित परास की आवश्यकता होती है। ज़्यादा सामान्य मुद्दा यह है कि जब पानी के तापमान में वृद्धि होती है तो उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इस स्थिति में छोटी मछलियों की तुलना में बड़ी मछलियों को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। यदि ये प्रजातियां आसानी से ठंडे पानी की ओर नहीं जा पाएंगी तो उनकी आबादियों में छोटी मछलियों की संख्या बढ़ेगी जो मत्स्योद्योग के लिए एक बड़ी समस्या बन जाएगा।
अभी भी यह कहना मुश्किल है कि इस बदलाव के पीछे जलवायु परिवर्तन ही एकमात्र कारण है। इसका एक कारण अत्यधिक मत्स्याखेट भी हो सकता है जो जाल से बच निकलने वाली छोटी मछलियों की संख्या वृद्धि को प्रेरित कर सकता है।
इस समस्या को गहराई से समझने के लिए कीएल स्थित क्रिश्चियन-अल्ब्रेक्ट युनिवर्सिटी के मत्स्य जीवविज्ञानी रेनाटो साल्वाटेची ने अत्यधिक मत्स्याखेट के शुरू होने से पहले की गर्म अवधि का अध्ययन करने का निर्णय लिया। मछली की आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए उन्हें पेरू आदर्श स्थान लगा क्योंकि यहां समुद्र में तलछटीकरण की उच्च दर और प्रचुर मात्रा में मछलियों के कारण समुद्र तल में जीवाश्मों का अच्छा रिकॉर्ड मिलने की संभावना थी।
साल्वाटेची ने 14 मीटर लंबे एक तलछट स्तंभ का अध्ययन किया। इसे 2008 में एक शोध पोत द्वारा निकाला गया था। इसमें 1,16,000 से 1,30,000 वर्ष पहले जमा तलछट थी। यह नमूना उस समय का था जब पृथ्वी आज की तुलना में गर्म जलवायु का अनुभव कर रही थी। उस तलछट बनने के समय समुद्री जल का तापमान और ऑक्सीजन की सांद्रता का पता लगाने के लिए उन्होंने छोटे समुद्री जीवों के जीवाश्मों में नाइट्रोजन समस्थानिकों का मापन किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि पानी आज की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था और उसमें ऑक्सीजन की कमी थी। इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए साल्वाटेची ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि उस समय पानी में किस प्रकार की मछलियां रहती थीं। इसके लिए उन्होंने दो वर्ष तक मछलियों की 1,00,000 से अधिक रीढ़ की हड्डियों के जीवाश्मों और अन्य अवशेषों का अध्ययन किया।
साल्वाटेची ने पाया कि पिछली शताब्दी में जमा तलछट में अधिकांश हड्डियां एंकोवी मछलियों की थीं। साइंस पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पूर्व की गर्म अवधि के दौरान लगभग 60 प्रतिशत मछलियां अन्य छोटी प्रजातियों की थीं। इसमें गोबी मछली के आकार की मछलियां शामिल थीं जो एंकोवी से छोटी थीं और कम ऑक्सीजन में रहने के लिए बेहतर अनुकूलित थीं। इसके अलावा पनामा लाइटफिश जैसी गहरे पानी की प्रजातियां थीं जो कम ऑक्सीजन में पनप सकती थीं।
एंकोवीज़ की तुलना में ये प्रजातियां मत्स्योद्योग के लिए मुफीद नहीं हैं। छोटे आकार के कारण छोटे छिद्र वाले जालों की आवश्यकता होगी जिन्हें साफ करना मुश्किल होता है। ये मछलियां झुंड में भी नहीं रहती हैं इसलिए जहाज़ों को बड़ी संख्या में शिकार पकड़ने के लिए लंबी यात्रा की आवश्यकता होगी और अधिक ईंधन की खपत होगी। और तो और, ये मछलियां एंकोवी की तुलना में कम पौष्टिक होती हैं। एंकोवी की घटती आबादी का मतलब सैल्मन जैसी मछलियों का आहार महंगा और कम पौष्टिक हो जाएगा जिससे कीमतों में वृद्धि होगी। एंकोवी मैकेरल और अन्य जंगली प्रजातियों को भी सहारा देती हैं। एंकोवी की घटती आबादी से ये प्रजातियां दुर्लभ हो जाएंगी और इनको पकड़ना भी एक बड़ी चुनौती होगा।
पूर्व में, पानी के गर्म होने की स्थिति में कुछ एंकोवी दक्षिण में ठंडे पानी की ओर जा सकती थीं जहां वे आसानी से प्रजनन कर सकती थीं। लेकिन ये दक्षिणी क्षेत्र बड़ी आबादी का निर्वाह नहीं कर सकते। पेरू का तटीय क्षेत्र स्थानीय धाराओं से पोषित होता है जहां अधिक गहराई से भोजन प्राप्त होता है।
साल्वाटेची के अनुसार एंकोवी को अन्य मछलियों का आहार बनाने की बजाय सीधे एंकोवी का सेवन करने से स्थिति में सुधार हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.acz9961/full/_20220105_on_smallerfish.jpg