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मच्छर वाहित रोगों से लड़ाई – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी

च्छर वाहित बीमारियां हज़ारों वर्षों से अभिशाप रही हैं, इनकी वजह से कई सेनाएं परास्त हुईं और अर्थव्यवस्थाएं डगमगाई हैं। ऐसे में मलेरिया के लिए एक प्रभावी टीका आने की रिपोर्ट हमें राहत देती है। इस टीके के क्लीनिकल परीक्षण ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और अन्य ने बुर्किना फासो में किए हैं।

पश्चिम अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में मानसून के बाद लंबे समय तक गर्मी पड़ती है, और तब ही मच्छर बड़े झुंडों में निकलते हैं। R21 नामक टीके ने 77 प्रतिशत प्रभाविता दर्शाई है। यह टीका मलेरिया परजीवी, प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम, के सर्कमस्पोरोज़ाइट प्रोटीन (CSP) को लक्षित करता है। इस परजीवी की स्पोरोज़ाइट अवस्था CSP स्रावित करती है। मच्छर के काटने से CSP और स्पोरोज़ाइट्स मानव रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं। CSP परजीवी को यकृत (लीवर) में ले जाता है जहां यह यकृत कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है, परिपक्व होता है और संख्या वृद्धि करता है। फिर, परिपक्व मेरोज़ाइट्स मुक्त होते हैं और मलेरिया के लक्षण दिखाई देने शुरू हो जाते हैं।

मलेरिया के टीके

हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने एक टीके, मॉस्क्यूरिक्स, को मंज़ूरी दी है। यह टीका यूके के ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन (जीएसके) ने लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के सहयोग से तैयार किया है। इस टीके का परीक्षण केन्या, मलावी और घाना के 8 लाख से अधिक बच्चों पर किया गया है। टीका लेने के पहले साल में इसकी प्रभाविता 50 प्रतिशत से अधिक देखी गई है, लेकिन वक्त बीतने के साथ प्रभाविता कम होती गई। ग्लोबल वैक्सीन एलायंस (जीएवीआई) उन देशों के लिए टीके खरीदने की योजना बना रहा है जिन्होंने इसकी मांग की है।

हैदराबाद की भारत बायोटेक ने भारत में इस टीके को विकसित करने के लिए जीएसके के साथ अनुबंध किया है, जिसके लिए भुवनेश्वर में विशेष व्यवस्था होगी।

डेंगू से जंग

एक और तेज़ी से फैलने वाली बीमारी है डेंगू। यह एडीज़ एजिप्टी मच्छरों से फैलती है, जो ठहरे हुए पानी में पनपते हैं, जैसे टायर वगैरह में भरा पानी। डेंगू वायरस के चार सीरोटाइप पाए जाते हैं। सीरोटाइप टीका निर्माण को मुश्किल बनाते हैं, क्योंकि प्रत्येक सीरोटाइप के लिए अलग टीके की आवश्यकता होती है। सेनोफी पाश्चर द्वारा डेंगू के खिलाफ तैयार किया गया टीका, डेंगवैक्सिया, कई देशों में स्वीकृत है और वायरस के चारों सीरोटाइप के खिलाफ 42 प्रतिशत से 78 प्रतिशत तक कारगर है।

भारत में ज़ायडस कैडिला डेंगू के खिलाफ डीएनए आधारित एक टीका विकसित कर रही है। तिरुवनंतपुरम स्थित राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलॉजी के डॉ. ईश्वरन श्रीकुमार ने चारों सीरोटाइप का एक साझा संस्करण तैयार किया है जो ज़ायडस कैडिला के डीएनए आधारित टीके की बुनियाद है। इस कार्य में कोविड-19 टीका विकसित करने के अनुभव का लाभ मिल रहा है।

डेंगू से लड़ने के अन्य नए तरीकों पर भी काम चल रहा है। इनमें से एक दिलचस्प तरीके में एक बैक्टीरिया, वॉल्बेचिया पाइपिएंटिस, का उपयोग किया जाता है। वॉल्बेचिया पाइपिएंटिस एक-कोशिकीय परजीवी है। यह परजीवी सामान्यत: कई कीटों में पाया जाता है, लेकिन यह डेंगू फैलाने वाले मच्छरों में नहीं होता। जब इस परजीवी को डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की कोशिकाओं में प्रवेश कराया जाता है तो यह डेंगू, चिकनगुनिया, पीत ज्वर और ज़ीका का कारण बनने वाले अन्य परजीवियों से सफल प्रतिस्पर्धा करता है।

प्रयोगशाला में वॉल्बेचिया से ग्रस्त किए गए एडीज़ मच्छर उन इलाकों में छोड़े जाते हैं जहां यह बीमारी अधिक होती है। ये मच्छर फौरन ही स्थानीय एडीज़ मच्छरों में इस बैक्टीरिया को फैला देते हैं, और डेंगू के नए मामले कम होने लगते हैं। गादजाह मादा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जकार्ता में किए गए एक नियंत्रित अध्ययन में दिसंबर 2017 में शहर के 12 इलाकों में वॉल्बेचिया से संक्रमित एडीज़ मच्छर के अंडे रखे (9 अन्य इलाकों में नियंत्रण के तौर पर वॉल्बेचिया-रहित अंडे रखे गए)। मार्च 2020 में कोविड महामारी के कारण अध्ययन थम जाने तक नियंत्रण वाले 9 इलाकों की तुलना में 12 प्रायोगिक इलाकों में डेंगू के 77 प्रतिशत कम मामले दर्ज हुए थे। डेंगू के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में 86 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी और बुखार की तीव्रता भी कम हुई थी।

रोकथाम

मच्छर वाहित बीमारियों का इलाज करने की बजाय उनसे बचाव का एक और तरीका यह है इनके अगले प्रकोप की सटीक भविष्यवाणी कर ली जाए। और उसके मुताबिक अपने स्वास्थ्य तंत्र और मच्छर नियंत्रण प्रणालियों का उपयोग किया जाए।

मच्छर और प्लास्मोडियम परजीवी दोनों को पनपने के लिए गर्म और नम मौसम की आवश्यकता होती है। NOAA-19 जैसे पर्यावरण उपग्रहों द्वारा लगातार एकत्रित किए गए डैटा का उपयोग करते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिकों ने ऐसे मॉडल तैयार किए हैं जो मासिक वर्षा डैटा और डेंगू और मलेरिया के वार्षिक राज्य-वार प्रकोप के डैटा को अल-नीनो-सदर्न ऑसीलेशन के साथ जोड़ता है। अल-नीनो-सदर्न ऑसीलेशन वैश्विक वायुमंडलीय प्रवाह को प्रभावित करता है। इस तरह, यह एक पूर्व-चेतावनी उपकरण है जो प्रकोप के शुरू होने, उसके फैलने और संभावित मामलों की संख्या का पूर्वानुमान लगाता है। इस तरह स्वास्थ्य अधिकारी प्रकोप के प्रभाव को कम करने के लिए कई हफ्तों पहले से ही एहतियाती उपाय शुरू कर सकते हैं। भारत में वर्तमान में यह जानकारी राज्य स्तर के लिए उपलब्ध है। अगला कदम ज़िला स्तर पर जानकारी उपलब्ध कराना होना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thehindu.com/sci-tech/science/9he5xs/article37475340.ece/ALTERNATES/LANDSCAPE_1200/14TH-SCIAEDESjpg

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