ग्लासगो में आयोजित जलवायु सम्मेलन में कई देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती की घोषणा की है। यदि यह सभी देश इन घोषणाओं पर अमल करते हैं तो 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के प्रमुख लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। एक नए विश्लेषण से पता चला है कि भारत, चीन और अन्य देशों की संशोधित प्रतिबद्धताएं इस सदी में तापमान की वृद्धि को 1.9 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकती हैं। लेकिन मेलबोर्न युनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक माल्टे मायनसुआज़ेन को लगता है कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए काफी काम करना होगा।
ब्रेकथ्रू इंस्टीट्यूट के जलवायु वैज्ञानिक ज़ेके हौसफादर के अनुसार जलवायु के नए अनुमान हालिया अनुमानों से नीचे नहीं हैं। अक्टूबर में जारी यू.एन. की रिपोर्ट में हालिया और पिछली प्रतिज्ञाओं को शामिल किया गया है जिसमें लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की अनुमानित वार्मिंग को ध्यान में रखते हुए कार्बन स्थिरीकरण के साथ उत्सर्जन को संतुलित करते हुए नेट-ज़ीरो प्राप्त करने की दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं को भी शामिल किया गया है। इसी तरह, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्तमान प्रतिबद्धताएं वार्मिंग को 1.8 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर देंगी। भारत और चीन की प्रतिबद्धताएं कुछ बड़े बदलाव कर सकती हैं।
मायनसुआज़ेन और उनके सहयोगियों ने सम्मेलन के शुरू होते ही राष्ट्रों द्वारा प्रस्तुत प्रतिज्ञाओं का संकलन किया। इनमें 2050 से 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन की दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं को भी शामिल किया गया है। इनमें से कुछ लक्ष्य वित्तीय सहायता पर निर्भर हैं जबकि अन्य बिना किसी शर्त के निर्धारित किए गए हैं। इन उत्सर्जन अनुमानों को जलवायु मॉडल में डालने पर वार्मिंग के संभावित परिणाम पता चले हैं।
सम्मेलन के पहले की प्रतिज्ञाओं के आधार पर इस सदी की वार्मिंग 1.5-3.2 डिग्री सेल्सियस के बीच अनुमानित थी। लेकिन नई प्रतिज्ञाओं के आधार पर काफी संभावना 1.9 डिग्री सेल्सियस से कम वृद्धि की है। इन में भारत का 2070 तक नेट-ज़ीरो का लक्ष्य प्राप्त करने, चीन की नई जलवायु प्रतिज्ञाएं और 2030 तक उत्सर्जन को कम करने के लिए 11 अन्य राष्ट्रीय प्रतिज्ञाएं भी शामिल हैं।
इम्पीरियल कॉलेज लंदन के एक जलवायु वैज्ञानिक जोएरी रोगेली के अनुसार यदि देश अपने वादों का पूरी तरह से पालन करते हैं तब भी तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने की काफी संभावना होगी क्योंकि कई मामलों में स्पष्टता की कमी है। उदाहरण के लिए भारत ने यह स्पष्ट नहीं किया कि नेट-ज़ीरो की प्रतिबद्धता केवल कार्बन डाईऑक्साइड के लिए है या सभी ग्रीनहाउस गैसों पर लागू होती है।
इसके अलावा, कई घोषणाएं महज दिखावा भी हो सकती हैं। जैसे, ऑस्ट्रेलिया में जलवायु लक्ष्यों का दिखावा करने के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन के उपयोग में विस्तार किया जा रहा है। इसके अलावा, विकासशील देशों को कई योजनाओं हेतु वित्तीय सहायता की आवश्यकता होगी। फिर भी प्रतिज्ञाएं एक महत्वपूर्ण सुधार की द्योतक हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://ukcop26.org/wp-content/uploads/2021/11/WLS_960x640.jpg