पांच हज़ार से अधिक वर्ष पहले आज यमनाया के रूप में पहचाने जाने वाले खानाबदोश वर्तमान रूस और यूक्रेन के घास के मैदानों से भारी बैल गाड़ियों में बाहर निकल पड़े थे। कुछ ही शताब्दियों में वे पूरे युरेशिया में फैल गए, और मंगोलिया से लेकर हंगरी तक की आबादी में अपने आनुवंशिक हस्ताक्षर छोड़ दिए। अब, 50 से अधिक कांस्य युगीन कंकालों के दांतों पर अश्मीभूत प्लाक बताता है कि संभवत: उनका विस्तार दूध के दम पर संभव हुआ था।
शोधकर्ताओं का काफी समय से यह अंदाज़ा था कि बग्घियों, डेयरी और घुड़सवारी के मेल ने यमनाया लोगों के लिए अधिक घुमक्कड़ जीवन संभव बनाया था। लेकिन शोधकर्ताओं के इस विचार का समर्थन करने वाले कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं थे, सिवाय कुछ दफन बग्घियों और मिट्टी के बर्तनों के।
यमनाया के फैलाव की सफलता का कारण जानने के लिए यूएसए, युरोप और रूस के शोधकर्ताओं ने दांतों के प्लाक में फंसकर सुरक्षित रह गए दूध प्रोटीन की जांच की। प्लाक के ये नमूने वर्तमान रूस के घास के मैदानों में 4600 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व तक रहे लोगों के थे। शोधकर्ताओं ने कैस्पियन सागर के उत्तरी क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक खुदाई स्थलों से प्राप्त 56 कंकालों की जांच की। संरक्षित प्रोटीन को प्लाक से अलग किया और फिर मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक तकनीक से हरेक प्रोटीन की पहचान की।
3300 ईसा पूर्व से पहले, वोल्गा और डॉन नदियों के किनारे रहने वाले लोगों के दांतों के प्लाक में दूध के कोई प्रोटीन नहीं थे। पूर्व अध्ययनों में देखा गया है कि इसकी बजाय ये यमनाया-पूर्व समूह मीठे पानी की मछली, जंगली शिकार, और कभी-कभार पालतू गाय, भेड़, या बकरी का मांस खाते थे।
फिर, लगभग 3300 ईसा पूर्व के बाद के प्लाक नमूनों में गाय, भेड़ और बकरी के दूध के प्रोटीन प्रचुर मात्रा में मिले। यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इस समय के ये लोग डेयरी उत्पादों का सेवन करते थे। कुछेक नमूनों में घोड़े के दूध की भी बहुत थोड़ी मात्रा मिली। ज्यूरिख इंस्टीट्यूट ऑफ इवॉल्यूशनरी मेडिसिन के जैव-आणविक पुरातत्वविद शेवन विल्किन कहते हैं कि कभी-कभी इन जानवरों को खाने की बजाय इन जानवरों को सदैव दोहना, यह एक सांस्कृतिक बदलाव है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार ये प्रोटीन संकेत देते हैं कि शिकारी-संग्रहकर्ताओं के तेज़ी से खानाबदोश चरवाहों में बदलने और महज़ 300 सालों में पूरे युरेशिया में फैल जाने में मुख्य भूमिका डेयरी और पशुपालन अपनाने की है। देखा जाए तो घोड़ों, मवेशियों और बकरियों ने घास को रोटी, कपड़ा और मकान में बदल दिया।
लेकिन यह सिर्फ डेयरी के कारण संभव नहीं हुआ; लगभग इसी समय बग्घियों की शुरुआत ने पानी लाना और जानवरों को दूर के चारागहों में चराने के लिए ले जाना संभव बनाया। पालतू घोड़ों ने नए यमनाया खानाबदोशों को जानवरों के बड़े-बड़े झुंडों का प्रबंधन करने में सक्षम बनाया होगा।
बहरहाल, एक रहस्य अब भी बना हुआ है। प्राचीन डीएनए के विश्लेषण बताते हैं कि यमनाया लोग लैक्टोज़ पचा नहीं पाते थे। यह संभव है कि आधुनिक मंगोलियाई लोगों की तरह यमनाया लोग भी किण्वित डेयरी उत्पाद जैसे दही या चीज़ का सेवन करते हों, जिनमें कोई लैक्टोज़ नहीं होता है। चाहे वे किसी भी रूप में वे डेयरी उत्पादों के सेवन करते हों लेकिन इतना साफ है कि इसके बगैर वे इतनी तेज़ी से, इतनी दूर तक नहीं फैल सकते थे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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