चार्ल्स डार्विन ने 1875 में मांसाहारी पौधों पर एक किताब लिखी थी। तब से अब तक तकरीबन 10 कुलों में लगभग 20 मांसाहारी वंश (जीनस) पहचाने जा चुके हैं।
तो, कुछ पौधे मांसाहारी क्यों होते हैं? इस संदर्भ में लाभ और लागत की गणना के आधार पर एक मॉडल विकसित किया गया है। इसके अनुसार मांसाहारिता भली-भांति प्रकाशित, पोषक तत्वों की कमी और साल के कम से कुछ समय नम आवासों में ही पाई जाएगी। यहां नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और अन्य पोषक तत्व अकशेरुकी जंतुओं के शिकार और पाचन से प्राप्त किए जाएंगे।
इस मॉडल में तेज़ प्रकाश की उपस्थिति और नमी की परिस्थितियों को इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि मांसाहार अपनाने पर प्रकाश संश्लेषण गंवाने की जो लागत होगी उसकी भरपाई सूखे और छायादार स्थानों में होने की संभावना कम है। हाल ही में इस मॉडल को प्रकाश, नमी और सड़ते-गलते कार्बनिक पदार्थ (लिटर) के द्वारा पोषक तत्वों की उपलब्धता के बीच संतुलन के रूप में भी आगे बढ़ाया गया है। यह मॉडल प्रकाश और नमी के काफी अलग-अलग आवासों में मांसाहारिता पाए जाने की व्याख्या करता है। अब आते हैं नए खोजे गए मांसाहारी पौधे फिलकॉक्सिया प्रजातियों पर।
फिलकॉक्सिया वंश में 3 प्रजातियां हैं और तीनों मात्र केंद्रीय ब्रााज़ील के सराडो बायोम के कैंपोस रूपेस्टरिस में ही मिलती हैं। यह परिसर जैव विविधता से सम्पन्न है और भली-भांति प्रकाशित है और यहां चट्टानी मुंडेरें हैं। यहां पर हल्की सफेद रेत भी पाई जाती है और वर्षा मौसमी होती है।
लागत लाभ मॉडल के अनुसार ये परिस्थितियां मांसाहारिता के विकास के लिए अनुकूल हैं। एक अन्य मांसाहारी वंश जेनलीसिया भी यहां आम तौर पर पाया जाता है, जहां रेत पर पानी रिसता रहता है। हमारे देश में पचमढ़ी में भी ड्रॉसेरा और स्थलीय यूट्रीकुलेरिया जैसी कीट भक्षी प्रजातियां ऐसे ही आवासों में सफेद रेत और रिसते पानी में उगते देखी जाती हैं।
फिलकॉक्सिया का मांसाहार
फिलकॉक्सिया में कई असामान्य लक्षण हैं। मसलन एक मायकोराइज़ा विहीन अल्पविकसित जड़ तंत्र, चम्मच के आकार की पत्तियां जो वृद्धि काल में मध्य शिरा पर अंदर की ओर मुड़ी होती हैं। गौरतलब है कि मायकोराइज़ा पेड़-पौधों की जड़ों और फफूंद का मेलजोल है और यह पौधों की वृद्धि में काफी सहायक होता है। फिलकॉक्सिया की पत्तियों की ऊपरी सतह पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ने वाली ग्रंथियां होती हैं और पत्ती रहित पुष्पक्रम (स्केपोस) पाया जाता है। इसमें एक अनोखा लक्षण और पाया जाता है – वह है इसकी कई छोटी-छोटी पत्तियां जो 0.5 से 1.5 मिलीमीटर चौड़ी होती हैं और सफेद रेत के नीचे घुसी हुई पाई जाती हैं। इन पत्तियों पर उपस्थित ग्रंथियां एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ती हैं जो रेत के कणों को इन पत्तियों की ऊपरी सतह पर कसकर बांधे रखता है।
क्या वाकई मांसाहारी है?
इस पौधे की खोज के बाद यह सवाल उठा कि क्या इसे मांसाहारी पौधा माना जाए। किसी भी पौधे को मांसाहारी मानने के लिए यह ज़रूरी है कि वह अपनी सतह पर लगे मृत जंतुओं से पोषक पदार्थ अवशोषित करने में समर्थ हो। उसमें कुछ अन्य प्राथमिक लक्षण भी होना चाहिए – जैसे शिकार को आकर्षित करने का सक्रिय तरीका, शिकार को पकड़ने की युक्ति और उसका पाचन करने की क्षमता। इस संदर्भ में फिलकॉक्सिया जहां उगता है उस जगह का पोषण-अभाव से ग्रस्त होने के अलावा हरबेरियम और वास्तविक परिस्थितियों से प्राप्त पौधों की पत्तियों पर निमेटोड कृमि पाए जाने ने इस परिकल्पना को जन्म दिया कि यह एक मांसाहारी पौधा है। कहा गया कि यह पौधा निमेटोड और अन्य कृमियों को अपनी पत्तियों पर उपस्थित ग्रंथियों से पकड़ता है और शिकार किए गए कृमियों का पाचन करके पोषक पदार्थों को अवशोषित करता है।
इस परिकल्पना का परीक्षण करने हेतु साओ पॉलो के कैगो जी. परेरा और उनके साथियों ने फिलकॉक्सिया की एक प्रजाति फिलकॉक्सिया निमेन्सिस को चुना और कीट को पचाने और उससे प्राप्त पोषक पदार्थों का अवशोषण करने की क्षमता का परीक्षण किया।
यह पता करने के लिए उन्होंने पत्तियों को ऐसे कृमि दिए जिनमें नाइट्रोजन के एक समस्थानिक (ग़्15) का समावेश किया गया था। परीक्षण से पता चला कि मात्र 24 घंटों के अंदर पत्तियों में 5 प्रतिशत नाइट्रोजन कृमि से आई थी। 48 घंटे बाद तो 15 प्रतिशत नाइट्रोजन कृमि से प्राप्त थी। इससे स्पष्ट होता है कि कृमियों के प्राकृतिक विघटन से मुक्त नाइट्रोजन का अवशोषण नहीं किया गया था बल्कि पत्तियों द्वारा कृमियों को पचाकर उनके पोषक पदार्थों का अवशोषण किया गया था। और वह भी अन्य मांसाहारी पौधों की तुलना में अधिक तेज़ी से।
ऐतिहासिक रूप से प्रामाणिक अधिकांश मांसाहारी पौधों की पत्तियों पर उपस्थित रुाावी ग्रंथियों पर फॉस्फेटेज़ एंज़ाइम की सक्रियता अधिक पाई जाती है। शोध दल ने पाया कि फिलकॉक्सिया की पत्तियों पर फॉस्फेटेज़ सक्रियता अधिक थी जिससे पता चलता है कि कृमियों का पाचन किया गया है ना कि सूक्ष्म जीवों द्वारा उनका विघटन होने से पोषक पदार्थ पत्तियों में पहुंचे हैं। साथ ही पत्तियों पर पाए गए सभी कृमि मृत थे जो इस बात का प्रमाण है कि वे न तो यहां से भोजन पा रहे थे, और ना ही प्रजनन कर रहे थे।
आम तौर पर माना जाता है कि पौधों द्वारा शिकार कर पोषक पदार्थ हासिल करना सबसे किफायती तरीका नहीं है। यह इस बात से भी साबित होता है कि फूलधारी पौधों में मात्र 0.2 प्रतिशत मांसाहारी हैं। अलबत्ता, ऐसा लगता है कि यह वास्तविक संख्या से बहुत कम आंका गया है क्योंकि कुछ संभावित प्रजातियों (जैसे जीरेनियम, डिप्सेकस, पेटुनिया और पोटेंटिला) पर कुछ प्रारंभिक परीक्षण ही हुए हैं। कुछ अन्य मामलों में मांसाहारिता छुपी हुई हो सकती है क्योंकि वे शायद सूक्ष्म जीवों का शिकार करते हों, उन तक पहुंचना मुश्किल होता है, या कोई ऐसी विधि हो सकती है जो हमें नज़र नहीं आती। फिलकॉक्सिया में मांसाहार की खोज इतनी देरी से होने के ऐसे ही कारण हो सकते हैं। लिहाज़ा हो सकता है कि हमारे आसपास और भी कई हत्यारे पौधे हों। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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