हाल ही में एक स्वतंत्र आयोग ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में एबोला प्रकोप के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन के कर्मचारियों पर यौन उत्पीड़न और शोषण सम्बंधी मामलों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी की है। इनमें मुख्य रूप से नौकरियों और अन्य संसाधनों के बदले सेक्स की मांग और नौ बलात्कार के मामलों का उल्लेख है।
इन मामलों में संगठन द्वारा नियुक्त अल्पकालिक ठेकेदारों से लेकर उच्च प्रशिक्षित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के 21 पुरुष कर्मचारियों पर आरोप लगाए गए हैं। ये आरोप डबल्यूएचओ की इमानदारी, विश्वास और प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
इस तरह की घटनाओं से पता चलता है कि कम आय वाले देशों में आपातकाल के दौरान भी सत्ता और संसाधनों से लैस पुरुषों ने कमज़ोर वर्ग की महिलाओं और लड़कियों का जमकर शोषण किया है। संगठन जिन लोगों की हिफाज़त करना चाहता है उनके साथ ऐसा सलूक लचर प्रशासन का परिणाम है।
इस रिपोर्ट में संगठन की संरचनात्मक विफलताओं का भी वर्णन किया गया है। गौरतलब है कि डबल्यूएचओ में नियम है कि किसी भी शिकायत को लिखित में दर्ज करना अनिवार्य है। यह कम पढ़े-लिखे लोगों के साथ स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, कई मामलों में जांच को इसलिए आगे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि आरोप लगाने वाले व्यक्ति और डबल्यूएचओ कर्मचारी के बीच “सुलह” हो गई थी। अत्यधिक दबाव के बावजूद जो महिलाएं और लड़कियां आगे आती हैं उनकी शिकायतों पर विश्वास करके पूरी पारदर्शिता के साथ उचित प्रक्रिया लागू करने की आवश्यकता है। ऐसे मामलों को उठाने वालों को भी संगठन द्वारा पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाना चाहिए।
देखा जाए तो मानवीय कार्यों के दौरान इस तरह के मामले अन्यत्र भी हुए हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इन्हें स्वाभाविक मान लिया जाए। हैटी में ऑक्सफेम और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राज्य के मानवीय मिशन में ऐसी समस्याएं देखी गई हैं। दरअसल, इन संगठनों को अपने कार्यस्थलों में विषैले और महिला-द्वैषी पहलुओं का सामना करने और संरचनात्मक स्तर पर बदलाव करने की आवश्यकता है।
डीआरसी में दसवीं एबोला महामारी से एक महत्वपूर्ण सबक यह मिला है कि चाहे कितने भी तकनीकी संसाधन उपलब्ध क्यों न हों, समुदाय के विश्वास के बिना कोई भी परियोजना सफल नहीं हो सकती। इस घटना के बाद से लोगों ने टीकाकरण से इन्कार कर दिया, और उपचार केंद्रों पर हमला भी हुए। स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा या धमकियों के 450 मामले सामने आए। इसके अलावा 25 स्वास्थ्य कर्मियों की हत्या और 27 अन्य का अपहरण कर लिया गया। रिपोर्ट में दर्ज की गई शोषण की घटनाएं समुदाय के विश्वास को नष्ट कर देती हैं। ऐसे देशों में सदियों के औपनिवेशक शोषण के बाद पहले से ही अविश्वास व्याप्त है, और इन घटनाओं से डबल्यूएचओ अपने कर्मचारियों को और अपने मिशन को खतरे में डाल रहा है।
इन आरोपों पर डबल्यूएचओ की प्रतिक्रिया काफी देर से आई। वीमन इन ग्लोबल हेल्थ की कार्यकारी निर्देशक डॉ. रूपा धत्त बताती हैं कि डबल्यूएचओ के एबोला कार्यक्रम के 2800 कर्मचारियों में से 73 प्रतिशत पुरुष थे और उनमें से 77 प्रतिशत पुरुष प्रमुख पदों पर थे। यदि पुरुषों की तुलना में महिला कर्मचारियों की संख्या अधिक होती और वे प्रमुख पदों पर होतीं परिणाम अलग हो सकते थे। इसके लिए डबल्यूएचओ के सभी कार्यक्रमों में जेंडर-संतुलन बहुत आवश्यक है। शक्तिशाली पुरुषों के रहमोकरम पर कमज़ोर महिलाओं और लड़कियों का शोषण मानवीय मिशन को क्षति पहुंचा सकता है। हालांकि, इस घटना के बाद से डबल्यूएचओ के नेतृत्व ने यौन शोषण और दुर्व्यवहार को बरदाश्त न करने और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने पर ज़ोर दिया है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। लेकिन इसका सही आकलन तो तभी हो पाएगा जब इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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