दो साल पहले वैज्ञानिकों ने ‘मिलेनियम फाल्कन’ को पृथ्वी के पहले समुद्री शिकारी की उपाधि से नवाज़ा था। उसके दो साल बाद उन्हीं शोधकर्ताओं को कनाडा के बर्जेस शेल के उसी स्थान पर एक बड़े अंतरिक्ष यान जैसे जीव का जीवाश्म मिला। युनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के जीवाश्म विज्ञानी जोसेफ मोयसियक के अनुसार आधा मीटर लंबा यह आर्थोपॉड (सन्धिपाद) मूलत: एक विशाल ‘तैरता सिर’ था, जो 50 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन समुद्र में रहता था।
टाइटेनोकोरिस गेनेसी का सिर उसके शरीर की लगभग आधी लंबाई के बराबर था, और वह एक गुंबदनुमा, नुकीले सिरे वाले कवच से ढंका हुआ था। इसी विशेषता के कारण इसे लैटिन नाम मिला जिसका अर्थ है ‘टाइटन का हेलमेट’। यह जीव समुद्र के पेंदे से सटकर तैरता था, और अपने कांटेनुमा उपांगों से कीचड़ से अपना शिकार खोदता था। संभवत: इसका नुकीला हेलमेट इस खुदाई में मदद करता था।
इसकी आंखें खोल के पीछे की तरफ ऊपर की ओर थीं जो शिकार खोजने के काम में मददगार तो नहीं रही होंगी बल्कि शिकारियों को भांपने के लिए होंगी।
टाइटेनोकोरिस आर्थोपोड्स के एक विविध समूह (रेडियोडोन्ट्स) से सम्बंधित है, जो लगभग 52 करोड़ वर्ष पहले हुए कैम्ब्रियन विस्फोट के तुरंत बाद मकड़ियों, कीड़ों और हॉर्सशू केकड़ों के पूर्वजों से अलग हो गए थे। इस समय जब कशेरुकी जीव छिंगली बराबर मछली से थोड़े ही बड़े थे, तब रेडियोडोन्ट्स का कैम्ब्रियन समुद्र पर दबदबा था।
सभी रेडियोडोन्ट्स की तीन विशेषताएं होती हैं: इनका मुंह गोलाकार होता है जो एक अनानास की खड़ी काट की तरह दिखता है और इनमें मांस को फाड़ने वाले पैने दांत होते हैं, मुंह के सामने एक जोड़ी कांटेदार उपांग होते हैं और बड़ी संयुक्त आंखें होती हैं। इस नई जीवाश्म प्रजाति में ये सभी लक्षण दिखते हैं।
शोधकर्ताओं को जब इसका जीवाश्म मिला तब पहले तो उन्होंने सोचा कि यह जीवाश्म केवल एक विशाल कैम्ब्रोरेस्टर है, क्योंकि कैम्ब्रोरेस्टर उस स्थान पर बहुतायत में पाए जाते थे। लेकिन जब उन्होंने 11 सम्बंधित नमूनों से इस जीवाश्म की तुलना की तो इसे बहुत अलग पाया। रॉयल सोसाइटी ओपन एक्सेस में शोधकर्ता बताते हैं कि यह कुछ नया था। और उनके अनुसार टाइटेनोकोरिस को नया जीनस मिलना चाहिए था।
कैम्ब्रोरेस्टर के स्थान पर टाइटेनोकोरिस का मिलना कैम्ब्रियन पारिस्थितिक तंत्र की विविधता को रेखांकित करता है – यहां शिकारी जीव बहुतायत में हैं। पृथ्वी पर शुरुआत में समुद्रों में प्रचुर मात्रा में शिकार उपलब्ध रहा होगा जिससे एक ही स्थान पर एक साथ कई शिकारी जीवों को पर्याप्त भोजन मिल जाता होगा।
बहरहाल, शोधकर्ता अगली गर्मियों में उस स्थान पर जाकर अधिक संपूर्ण टाइटेनोकोरिस जीवाश्म खोजने के लिए जाएंगे। हो सकता है कि उन्हें चट्टानों में छिपी कोई नई प्रजाति भी मिल जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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