16 जनवरी 2020 को इरेस्मस युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के पशु रोग विशेषज्ञ थीस कुइकेन को दी लैंसेट से समीक्षा के लिए एक शोधपत्र मिला था, जिसने उन्हें दुविधा में डाल दिया।
हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के इस शोधपत्र में बताया गया था कि चीन के शेन्ज़ेन शहर के एक परिवार के छह सदस्य वुहान गए थे, और उनमें से पांच सदस्य कोविड-19 से संक्रमित पाए गए। इनमें से कोई वुहान के सार्स-कोव-2 के शुरुआत मामलों से जुड़े हुआनन सीफूड बाज़ार नहीं गया था। इस परिवार के शेन्ज़ेन वापस लौटने के बाद परिवार का सातवां सदस्य भी इससे संक्रमित हो गया, जो वुहान गया ही नहीं था।
शोधकर्ताओं का निष्कर्ष स्पष्ट था: सार्स-कोव-2 मनुष्य से मनुष्य में फैल सकता था। उनके दो निष्कर्षों और थे। एक, परिवार के संक्रमित लोगों में से दो सदस्यों में कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, यानी यह बीमारी दबे पांव आ सकती है। दूसरा, एक सदस्य में इस नई बीमारी का सबसे आम लक्षण (श्वसन सम्बंधी) नहीं था लेकिन उसे पेचिश हो रही थी। मतलब था कि यह बीमारी चिकित्सकों को चकमा दे सकती है।
इन निष्कर्षों ने कुइकेन को दुविधा में डाल दिया। कुछ लोगों को पहले ही संदेह था कि सार्स-कोव-2 मनुष्य से मनुष्य में फैल सकता है; और दो दिन पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आशंका भी ज़ाहिर की थी। अब कुइकेन के सामने इस बात के प्रमाण मौजूद थे। उन्हें लग रहा था कि लोगों को इस बारे में जल्द से जल्द बताना चाहिए, क्योंकि वर्ष 2003 में फैले सार्स के अनुभव से कुइकेन जानते थे कि किसी घातक और तेज़ी से प्रसारित होने वाले वायरस के प्रसार को थामने के लिए शुरुआत के दिन कितने महत्वपूर्ण होते हैं। और सार्स-कोव-2 सम्बंधी इस जानकारी में देरी होने से लोगों को खतरा था।
लेकिन यदि वे इसका खुलासा करते तो उनकी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती। दरअसल, जर्नल के समीक्षकों को किसी भी परिस्थिति में अप्रकाशित पांडुलिपियों को साझा करने या उनके निष्कर्षों का खुलासा करने की अनुमति नहीं होती है।
कुइकेन की यह दुविधा जुलाई में प्रकाशित हुई वेलकम ट्रस्ट की जेरेमी फरार और अंजना आहूजा द्वारा लिखित पुस्तक स्पाइक: दी वायरस वर्सेस दी पीपल – दी इनसाइड स्टोरी में उजागर की गई है। साइंस पत्रिका ने इस मामले पर अतिरिक्त प्रकाश डाला है।
साइंस पत्रिका से बात करते हुए फरार कहती हैं कि इस मामले ने वेलकम ट्रस्ट की इस पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि कोविड-19 के निष्कर्षों को शीघ्रातिशीघ्र साझा किया जाए। इसी के तहत दी लैंसेट और चाइनीज़ सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सहित कई पत्रिकाओं और शोध संगठनों ने जनवरी 2020 में यह करार किया कि प्रकाशन के लिए भेजे गए कोविड-19 से सम्बंधी शोध पत्रों को वे डब्ल्यूएचओ को तुरंत उपलब्ध कराएंगे।
इसी बीच कुइकेन को दी लैंसेट के संपादक ने फोन पर बताया कि शोधकर्ता स्वयं अपने परिणामों का खुलासा करने के लिए स्वतंत्र हैं। (दी लैंसेट के अनुसार, दी लैसेंट को भेजी गई पांडुलिपियों के लेखकों को अपने अप्रकाशित शोध पत्रों को सम्बंधित चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य निकायों, वित्तदाताओं के साथ और प्रीप्रिंट सर्वर पर साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है)। तो 17 जनवरी 2020 की सुबह पत्रिका को भेजी अपनी समीक्षा में कुइकेन ने शोधकर्ताओं से एक असामान्य अनुरोध किया कि वे अपने डैटा को ‘तुरंत’ सार्वजनिक कर दें। दी लैंसेट के संपादकों ने उनके अनुरोध का समर्थन किया।
एक संपादक के मुताबिक शोधकर्ता तो अपने निष्कर्षों का खुलासा करना चाहते थे लेकिन वे चीन सरकार की अनुमति के बिना ऐसा नहीं कर सकते। दरअसल संचारी रोगों के नियंत्रण और रोकथाम पर चीन का कानून कहता है कि केवल राज्य परिषद, या अधिकृत नगरीय/प्रांतीय स्वास्थ्य अधिकारी ही संचारी रोगों के प्रकोप के बारे में जानकारी प्रकाशित कर सकते हैं। कुइकेन को बताया गया कि प्रमुख शोधकर्ता युएन क्वोक-युंग को चीन के अधिकारियों के साथ निष्कर्षों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
शनिवार दोपहर कुइकेन ने फरार से इस मामले पर सलाह मांगी। फरार ने तीन विकल्प सुझाए। पहला, सोमवार तक इंतजार किया जाए। दूसरा, स्वयं जानकारी का खुलासा कर दें। और तीसरा, सीधे ही डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दे दी जाए।
कुइकेन ने तीसरा विकल्प चुना। शनिवार शाम कुइकेन ने डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम की तकनीकी प्रमुख मारिया वैन केरखोव से कहा कि यदि रविवार सुबह तक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं होती तो वे उन्हें पांडुलिपि भेज देंगे। दी लैंसेट के संपादक से पता चला कि चीन सरकार के साथ शोधकर्ताओं की चर्चा अभी जारी है।
लेकिन रविवार सुबह कुइकेन फिर दुविधा में थे। उन्होंने सोचा कि यदि शोधकर्ताओं की अनुमति के बिना इन निष्कर्षों को दर्शाने वाले आंकड़े भर ऑनलाइन कर दिए गए तो यह बहुत अपमानजनक होगा। इसलिए उन्होंने पांडुलिपि का एक विस्तृत सारांश लिखा, और उसे रविवार सुबह वैन केरखोव को भेज दिया।
बहरहाल, सोमवार को चीन ने दी लैसेंट की पांडुलिपि का हवाला देते हुए आधिकारिक स्तर पर यह घोषणा कर दी कि यह बीमारी मनुष्य से मनुष्य में फैल सकती है। इस घोषणा ने कुइकेन को बड़ी राहत दी।
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि डब्ल्यूएचओ से संपर्क करने के उनके फैसले ने चीन की घोषणा को गति दी या नहीं। केरखोव ने यह नहीं बताया कि उन्होंने या डब्ल्यूएचओ के अन्य किसी सदस्य ने चीन के सरकारी अधिकारियों या शोधकर्ताओं को इस बारे में बताया था या नहीं।
वहीं शोधकर्ता युएन के अनुसार, 18 से 20 जनवरी 2020 तक वुहान और बीजिंग में वे सरकार की विशेषज्ञ टीम से मिले, जहां इन निष्कर्षों पर चर्चा हुई। युएन का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि कुइकेन का निर्णय बहुत प्रासंगिक था क्योंकि मैंने देखा कि चीन के स्वास्थ्य अधिकारी हमारी रिपोर्ट के प्रति सकारात्मक थे, और उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य नियंत्रण उपायों को बढ़ाने के लिए तत्काल कार्रवाई की। जिसमें 20 जनवरी, 2020 को मनुष्य से मनुष्य में संचरण की बात का खुलासा और 23 जनवरी, 2020 को वुहान को बंद करना शामिल था।
वेलकम ट्रस्ट के आह्वान के एक हफ्ते बाद यह शोधपत्र दी लैंसेट ने 24 जनवरी 2020 को ऑनलाइन प्रकाशित किया। 2016 में ज़ीका वायरस के प्रकोप के समय भी इसी तरह के कदम उठाए गए थे, लेकिन तब पत्रिकाओं द्वारा अप्रकाशित शोधपत्र साझा करने की बात नहीं हुई थी, जो कोविड-19 के समय हुई जो कि महत्वपूर्ण थी।
कुइकेन को अपने उठाए गए कदम का कोई खामियाजा नहीं भुगतना पड़ा। कुइकेन उम्मीद करते हैं कि वैज्ञानिक समुदाय में उनकी दुविधा पर चर्चा की जाएगी। कुइकेन का कहना है कि वेलकम ट्रस्ट का बयान बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि आपात स्थितियों में पांडुलिपियों के समीक्षकों को ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी का क्या करना चाहिए। मैंने नियमों के बाहर जाकर कदम उठाए। दरअसल, यह नियमानुसार संभव होना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.acx9033/full/_20210830_on_dutchscientist.jpg