इन दिनों सोशल मीडिया और समाचार में कोविड-19 टीके से टीकाकृत लोगों में ‘ब्रेकथ्रू संक्रमण’ की खबर सुर्खियों में है। ऐसे में टीके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा को लेकर आम जनता के बीच एक गलत धारणा विकसित हो रही है और लोग टीका लगवाने में संकोच कर रहे हैं। ब्रेकथ्रू संक्रमण का मतलब होता है कि एक बार संक्रमित हो जाने या टीकाकरण के बाद फिर से संक्रमित हो जाना। इन्फ्लुएंज़ा, खसरा और कई अन्य बीमारियों में भी ब्रेकथ्रू संक्रमण देखे गए हैं।
देखा जाए तो कोई भी टीका शत प्रतिशत प्रभावी नहीं होता है। हां, कुछ टीके अन्य की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकते हैं लेकिन अधिकांश टीकों में ब्रेकथ्रू संक्रमण होते हैं। वास्तव में ‘ब्रेकथ्रू संक्रमण’ का मतलब है कि किसी टीकाकृत व्यक्ति में रोगकारक उपस्थित है, यह नहीं कि वह बीमार पड़ेगा या संक्रमण फैलाएगा। टीकाकृत लोग संक्रमित होते हैं तो अधिकांश में बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते हैं, और यदि होते भी हैं तो वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते। यहां तक कि डेल्टा संस्करण के विरुद्ध भी टीका गंभीर बीमारी या मौत के जोखिम के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में लगभग आधी आबादी का टीकाकरण हो चुका है। फिर भी, कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले 97 प्रतिशत मामले उन लोगों के हैं जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है। यानी टीका न लगवाने वाले अधिक संख्या में बीमार हुए हैं।
ब्रेकथ्रू संक्रमण के मामले में एक चिंता यह व्यक्त हुई है कि ऐसे लोग दूसरों को वायरस फैलाएंगे। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकृत लोगों द्वारा वायरस फैलाने की संभावना कम होती है, यहां तक कि लक्षण विहीन लोगों द्वारा भी। यानी यदि आप टीकाकृत हैं तो आपके संक्रमित होने की संभावना तो काफी कम है ही, और यदि आप संक्रमित हो भी जाते हैं तो आपके द्वारा वायरस प्रसार का जोखिम काफी कम होगा। एक कारण यह है कि ऐसे संक्रमणों में वायरस की मात्रा ही कम होती है।
गौरतलब है कि ब्रेकथ्रू के मामले टीके के अप्रभावी होने से नहीं होते हैं। समय के साथ प्रतिरक्षा कम होना, या किसी विशेष रोगजनक के प्रति टीके का अप्रभावी होना इसके कारण हो सकते हैं। जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल हेल्थ की एसोसिएट प्रोफेसर कौसर तलात बताती हैं कि एमएमआर (मीज़ल्स-मम्स-रूबेला) का टीका एक ऐसा ही उदाहरण है। इसमें खसरा के विरुद्ध तो मज़बूत सुरक्षा प्राप्त होती है लेकिन मम्स के विरुद्ध प्रतिरक्षा क्षमता कम मिलती है। लेकिन खसरा के भी ब्रेकथ्रू संक्रमण देखे गए हैं। इसी वजह से 1980 के दशक में खसरा के व्यापक प्रकोप के बाद से नीति में परिवर्तन किया गया और एक के बजाय एमएमआर की दो खुराकें दी जाने लगीं।
इन्फ्लुएंज़ा टीके से तो सबसे अधिक ब्रेकथ्रू संक्रमण जुड़े हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि इन मामलों को बारीकी से ट्रैक किया जाने लगे तो सार्स-कोव-2 से भी अधिक ब्रेकथ्रू मामले देखने को मिल जाएंगे। बल्कि वास्तविकता तो यह है कि कोविड टीके इन्फ्लुएंज़ा टीकों से बेहतर प्रदर्शन करते प्रतीत हो रहे हैं। अभी तक तो कोविड टीके नए संस्करणों के विरुद्ध काफी प्रभावी रहे हैं। यहां तक कि कोविड प्रतिरक्षा पर उतना हावी नहीं हो पाता जितना इन्फ्लुएंज़ा होता है। कई बार कम प्रभावी टीके के चलते कुछ मौसमों में बड़ी संख्या में ब्रेकथ्रू मामले होते हैं।
ब्रेकथ्रू दर का सम्बंध टीकाकृत जनसंख्या पर निर्भर करता है। यदि टीकाकृत लोगों की संख्या कम है तो समुदाय में ब्रेकथ्रू की दर अधिक होगी। दूसरी ओर, उच्च टीकाकरण का मतलब होगा कि अधिकांश मामले टीकाकृत लोगों के होंगे।
ब्रेकथ्रू संक्रमण में टीकाकृत लोगों की बड़ी संख्या का एक अन्य कारक उनकी आयु, स्वास्थ्य स्थिति भी है, जिनका सम्बंध कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र से देखा गया है। ऐसे लोगों में टीकों के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया थोड़ी कमज़ोर होती है और वे अधिक जोखिम में होते हैं। ऐसे लोगों को कोविड के बूस्टर शॉट की आवश्यकता हो सकती है। अंग प्रत्यारोपण किए गए रोगियों में टीके की तीसरी खुराक से अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। फ्रांस और इस्राइल ने कमज़ोर प्रतिरक्षा वाले लोगों में पहले से ही तीसरी खुराक देने का निर्णय लिया है और यूके भी इस पर विचार कर रहा है। सीडीसी ने भी बूस्टर शॉट से सम्बंधित डैटा की समीक्षा के बाद विशेष आबादी के लिए सहमति दी है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जब तक हमारे पास बूस्टर शॉट से सम्बंधित स्पष्ट और ठोस परिणाम नहीं है तब तक सबका टीकाकरण ही सबसे बेहतर उपाय है क्योंकि ऐसा करके आम लोगों के अलावा कमज़ोर प्रतिरक्षा वाले लोगों को भी सुरक्षा प्रदान की जा सकेगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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