आजकल श्रवण यंत्रों में उपयोग होने वाली छोटी और डिस्पोज़ेबल जिंक बैटरियों को रीचार्ज करके पॉवर ग्रिड से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। इनका उपयोग सौर ऊर्जा और पवन उर्जा के भंडारण के लिए किया जा सकता है।
वर्तमान में नवीकरणीय उर्जा के भंडारण के लिए मुख्य रूप से लीथियम आयन बैटरियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन ये काफी महंगी हैं। ज़िंक बैटरियां सस्ती होती हैं और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक भी हैं। लेकिन इन्हें लंबे समय तक बार-बार रीचार्ज नहीं किया जा सकता। इस कमी को दूर करने के प्रयास चल रहे हैं।
सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के साथ बैटरी भंडारण की आवश्यकता भी बढ़ गई है। ऊर्जा भंडारण की दृष्टि से लीथियम-आयन बैटरियों की क्षमता काफी अधिक होती है। लेकिन लीथियम एक दुर्लभ व महंगी धातु है। इसके अलावा लीथियम-आयन बैटरियों में एक तरल ज्वलनशील इलेक्ट्रोलाइट का भी उपयोग किया जाता है। मेगावॉट-क्षमता की बैटरियों में शीतलन और अग्नि-शमन की महंगी तकनीकों का भी उपयोग करना होता है।
ज़िंक के साथ इस तरह की कोई समस्या नहीं है। यह एक गैर-विषैली, सस्ती और प्रचुरता से उपलब्ध धातु है। हाल ही में ज़िंक आधारित रीचार्जेबल बैटरियां बाज़ार में आई हैं लेकिन उनकी भंडारण क्षमता सीमित है। वैसे एक अन्य तकनीक ज़िंक फ्लो सेल बैटरियों में भी प्रगति हुई है लेकिन उनमें अधिक जटिल वाल्व, पंप और टैंकों की आवश्यकता होगी। इसलिए शोधकर्ता ज़िंक-एयर सेल पर कार्य कर रहे हैं।
इन बैटरियों में एक ज़िंक एनोड और किसी सुचालक पदार्थ (जैसे रंध्रमय कार्बन) का कैथोड होता है और एक इलेक्ट्रोलाइट घोल इनके बीच भरा होता है। इलेक्ट्रोलाइट में पोटेशियम हायड्रॉक्साइड या कोई अन्य क्षार भी मिला होता है। डिस्चार्ज के दौरान, हवा में उपस्थित ऑक्सीजन कैथोड पर पानी के साथ अभिक्रिया करके हायड्रॉक्साइड आयन का उत्पादन करती हैं। ये आयन एनोड की ओर जाते हैं जहां ज़िंक से अभिक्रिया करके ज़िंक ऑक्साइड का निर्माण करते हैं। इस अभिक्रिया में उत्पन्न इलेक्ट्रॉन एक बाहरी सर्किट के माध्यम से एनोड से कैथोड की ओर प्रवाहित होते हैं। रीचार्जिंग का मतलब होता है करंट के प्रवाह को उलट देना ताकि एनोड पर ज़िंक धातु पुन: बन सके।
एक समस्या यह है कि ज़िंक बैटरियां इस विपरीत दिशा में ठीक से काम नहीं करती हैं। एनोड की सतह पर अनियमितताओं के कारण कुछ स्थानों पर विद्युत क्षेत्र अधिक हो जाता है जिसके चलते उन स्थानों पर ज़िंक अधिक मात्रा में जमा होने लगता है। बार-बार ऐसा हो तो वहां उभार बन जाते हैं जो बैटरी को शॉर्ट कर देते हैं। दूसरी समस्या यह है कि इलेक्ट्रोलाइट में उपस्थित पानी एनोड से अभिक्रिया करके ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है जिससे सेल के फटने की आशंका रहती है।
शोधकर्ता इन समस्याओं पर काफी गंभीरता से काम कर रहे हैं। वर्ष 2017 में कुछ शोधकर्ताओं ने ज़िंक एनोड इस तरह तैयार किया कि उस पर छोटे-छोटे खाली स्थान थे। सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाने से स्थानीय विद्युत क्षेत्र कम हो गए जिससे उभार बनने की संभावना कम हो गई और पानी के अणुओं के विघटन की आशंका भी।
इसी प्रकार से, मैरीलैंड वि·ाविद्यालय के चुनशेंग वांग की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट में फ्लोरीन युक्त लवण मिलाया है। यह ज़िंक से अभिक्रिया करके एनोड के चारों ओर ठोस ज़िंक फ्लोराइड का आवरण बना देता है। चार्जिंग-डिस्चार्जिंग के दौरान आयन तो इसमें से गुज़र जाते हैं लेकिन उभारों में वृद्धि रुक जाती है और पानी के अणु एनोड तक पहुंच नहीं पाते। वांग के अनुसार ऐसा करने से यह उपकरण काफी धीरे-धीरे डिस्चार्ज होता है। अभिक्रिया को तेज़ करने के लिए टीम कैथोड पर उत्प्रेरक जोड़ने का प्रयास कर रही है।
इसी तरह की एक रणनीति हैनयैंग युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी अपनाई है। उन्होंने कॉपर, फॉस्फोरस और सल्फर के मिश्रण से एक तंतुमय कैथोड बनाया है जो उत्प्रेरक का भी काम करता है और पानी के साथ ऑक्सीजन की अभिक्रिया को भी तेज़ करता है। इन प्रयासों से ऐसी बैटरियों का निर्माण किया जा सकता है जिनको काफी तेज़ी से चार्ज-डिस्चार्ज किया जा सकता है और उनकी क्षमता 460 वॉट-घंटे प्रति किलोग्राम तक हो सकती है। ये बैटरियां चार्ज और डिस्चार्ज के हज़ारों चक्रों के बाद भी स्थिर रहेंगी।
इन प्रयासों से ऐसी उम्मीद है कि जल्द ही ज़िंक-एयर बैटरियां लीथियम की जगह लेने वाली हैं। कच्चा माल सस्ता होने की वजह से ग्रिड-पैमाने की ज़िंक-एयर बैटरियों की लागत लगभग 7000 रुपए प्रति किलोवॉट घंटा होगी जो आज के समय की सबसे सस्ती लीथियम-आयन बैटरियों के आधे से भी कम है। हालांकि, इस क्षेत्र में काफी काम करने की आवश्यकता है और शोधकर्ताओं को छोटे आकार की बैटरियों के उत्पादन से आगे बढ़ते हुए बड़े आकार की प्रणालियां विकसित करना होगा। ज़ाहिर है, इसमें कई वर्षों का समय लगेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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