यह तो सब जानते हैं कि सख्तजान टार्डिग्रेड्स बहुत अधिक ठंड और गर्मी दोनों बर्दाश्त कर सकते हैं। वे निर्वात में जीवित रह सकते हैं और हानिकारक विकिरण भी झेल जाते हैं। और अब, शोधकर्ताओं ने पाया है कि टार्डिग्रेड्स ज़ोरदार टक्कर भी झेल लेते हैं, लेकिन एक सीमा तक। यह अध्ययन टार्डिग्रेड द्वारा अंतरिक्ष की टक्करों को झेल कर जीवित बच निकलने की उनकी क्षमता और अन्य ग्रहों पर जीवन के स्थानांतरण में उनकी भूमिका की सीमाएं दर्शाता है।
2019 में इस्राइली चंद्र मिशन, बेरेशीट, दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस इस्राइली यान के साथ गुपचुप तरीके से चांद पर सूक्ष्मजीव टार्डिग्रेड्स (जलीय भालू, साइज़ करीब 1.5 मि.मी.) भेजे गए थे। लेकिन चांद पर उतरते वक्त लैंडर और साथ में उसकी सारी सवारियां दुर्घटनाग्रस्त हो गर्इं। टार्डिग्रेड्स चांद पर यहां-वहां बिखरे और यह चिंता पैदा हो गई कि वे वहां के वातावरण में फैल गए होंगे। इसलिए क्वीन मेरी युनिवर्सिटी की अलेजांड्रा ट्रेस्पस जानना चाहती थीं कि क्या टार्डिग्रेड्स इतनी ज़ोरदार टक्कर झेल कर जीवित बचे होंगे?
यह जानने के लिए उनकी टीम ने लगभग 20 टार्डिग्रेड्स को अच्छे से खिला-पिलाकर फ्रीज़ करके शीतनिद्रा की अवस्था में पहुंचा दिया, जिसमें उनकी चयापचय गतिविधि की दर महज़ 0.1 प्रतिशत रह गई।
फिर, उन्होंने नायलॉन की एक खोखली बुलेट में एक बार में दो से चार टार्डिग्रेड भरे और गैस गन से उन्हें कुछ मीटर दूरी पर स्थित एक रेतीले लक्ष्य पर दागा। यह गन पारंपरिक बंदूकों की तुलना में कहीं अधिक वेग से गोली दाग सकती है। एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित नतीजों के अनुसार टार्डिग्रेड लगभग 900 मीटर प्रति सेकंड (लगभग 3000 किलोमीटर प्रति घंटे) तक की टक्कर के बाद जीवित रह सके, और 1.14 गीगापास्कल तक की ज़ोरदार टक्कर सहन कर गए। इससे तेज़ टक्कर होने पर उनका कचूमर निकल गया था।
तो बेरेशीट के दुर्घटनाग्रस्त होने पर टार्डिग्रेड्स जीवित नहीं बचे होंगे। हालांकि लैंडर कुछ सैकड़ा मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार पर टकराया था, लेकिन टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि इससे 1.14 गीगापास्कल से कहीं अधिक तेज़ झटका पैदा हुआ होगा, जो कि टार्डिग्रेड की सहनशक्ति से अधिक रहा होगा।
ये नतीजे पैनस्पर्मिया सिद्धांत को भी सीमित करते हैं, जो कहता है कि किसी उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह की टक्कर के साथ जीवन किसी अन्य ग्रह पर पहुंच सकता है। ऐसी टक्कर से उल्का पिंड में उपस्थित जीवन भी प्रभावित या नष्ट होगा। यानी किसी उल्कापिंड के साथ पृथ्वी पर जीवन आने (पैनस्पर्मिया) की संभावना कम है। कम से कम जटिल बहु-कोशिकीय जीवों का इस तरह स्थानांतरण आसानी से संभव नहीं है।
वैसे ट्रैस्पस का कहना है कि स्थानांतरण भले ‘मुश्किल’ हो, लेकिन असंभव भी नहीं है। पृथ्वी से उल्कापिंड आम तौर पर 11 किलोमीटर प्रति सेकंड से अधिक की रफ्तार से टकराते हैं; मंगल पर 8 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से। ये टार्डिग्रेड्स की सहनशक्ति से कहीं अधिक हैं। लेकिन पृथ्वी या मंगल पर कहीं-कहीं उल्कापिंड की टक्कर कम वेग से भी होती है, जिसे टार्डिग्रेड बर्दाश्त कर सकते हैं।
इसके अलावा, पृथ्वी से टक्कर के बाद चट्टानों के जो छोटे टुकड़े चंद्रमा की तरफ उछलते हैं, उनमें से लगभग 40 प्रतिशत की रफ्तार इतनी धीमी होती है कि टार्डिग्रेड जीवित रह सकें। यानी सैद्धांतिक रूप से यह संभव है कि पृथ्वी से चंद्रमा पर जीवन सुरक्षित पहुंच सकता है। कुछ सूक्ष्मजीव 5000 मीटर प्रति सेकंड का वेग झेल सकते हैं। उनके जीवित रहने की संभावना और भी अधिक है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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