आजकल अखबारों में, नेट पर, सोशल मीडिया पर ऐसे पौधों की सूचियों की भरमार है जिनके बारे में यह दावा किया जा रहा है कि वे रात में भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं। जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया (https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/home-garden/5-plants-that-release-oxygen-at-night/photostory/59969056.cms) में छपी यह खबर ‘फाइव प्लांट्स रिलीज़ ऑक्सीजन एट नाइट’। ये पांच पौधे हैं एलो वेरा, स्नेक प्लांट, ऑर्किड, नीम और पीपल। इनमें पहले तीन पौधे तो ‘कैम’ प्रकार के हैं परंतु बाकी दो सामान्य प्रकार के हैं। अर्थात अन्य सभी पौधों जैसा प्रकाश संश्लेषण करने वाले हैं। कैम के बारे में आगे बात करते हैं। एक और साइट है फर्न एंड पेटल्स जिसमें आलेख है ‘9 प्लांट रिलीज़ ऑक्सीजन एट नाइट’। नाम हैं एलो वेरा, पीपल, स्नेक प्लांट, अरेका पाम, नीम, ऑर्किड, जरबेरा, क्रिसमस कैक्टस, तुलसी, मनी प्लांट।
इन सब में कहीं ना कहीं नासा का ज़िक्र है। परंतु नासा की मूल रिपोर्ट में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि ये पौधे रात में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस रिपोर्ट में यह ज़रूर कहा गया है कि ये तरह-तरह के वाष्पशील पदार्थों को सोखकर घर के अंदर की हवा को साफ करते हैं। ये हवा से रात में भी कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करते हैं क्योंकि इनमें से अधिकतर कैम पौधे हैं।
हद तो तब हो गई जब प्राणी विज्ञान के मेरे एक परिचित प्राध्यापक ने रोज़ मेरे मोबाइल पर चौबीसों घंटे ऑक्सीजन छोड़ने वाले पौधों की लिस्ट भेजना शुरू कर दिया। मैंने उन्हें बताया कि ऐसा नहीं हो सकता परंतु वे मानते ही नहीं, पौधों की सूची रोज़ डाल देते हैं।
1989 में प्रकाशित नासा की उक्त रिपोर्ट में 15 पौधों की सूची है। इनमें इंग्लिश आईवी, स्पाइडर प्लांट, पीस लिली, चाइनीस एवरग्रीन, बैम्बू पाम, हार्टलीफ फिलोडेंड्रॉन, एलीफैंट फिलोडेंड्रॉन, गोल्डन पोथास, ड्रेसीना की विभिन्न किस्में, फाइकस बेंजामिना आदि के नाम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ये हवा को साफ करते हैं, हमारे आसपास की हवा से प्रदूषक पदार्थों को हटाते हैं। ये मुख्य रूप से बेंज़ीन, फॉर्मेल्डिहाइड, ट्राइक्लोरोएथेन, ज़ायलीन, अमोनिया जैसे वाष्पशील पदार्थों को सोखते हैं। साथ ही कार्बन डाईऑक्साइड भी सोखते हैं। इनमें से कुछ पौधे कैम प्रकार के भी हैं। रात में स्टोमैटा खुले होने के कारण ये इन प्रदूषकों को सोखते रहते हैं। रिपोर्ट में रात में ऑक्सीजन छोड़ने का ज़िक्र कहीं नहीं है।
तो भ्रम का कारण क्या है?
मुझे लगता है कि यह भ्रम आधी-अधूरी जानकारी से उत्पन्न हुआ है। हमने यह तो पढ़ लिया कि कैम पौधे रात में प्रकाश संश्लेषण करते हैं पर यह ध्यान नहीं दिया कि इस क्रिया का कौन-सा चरण रात में और कौन-सा चरण दिन में चलता है। इस क्रिया के कितने चरण हैं? और कौन, कब और कैसे कार्य करता है?
पौधों में भोजन निर्माण अर्थात प्रकाश संश्लेषण एक बहुत ही जटिल जैव रासायनिक क्रिया है। इसमें चार चीज़ों की ज़रूरत होती है। पहला, प्रकाश; सामान्यत: इसका स्रोत सूर्य का प्रकाश ही है। वैसे कृत्रिम प्रकाश यानी फिलामेंट बल्ब, सीएफएल या एलईडी की तेज़ रोशनी में भी यह क्रिया हो सकती है। दूसरा, पानी (जो जड़ों से सोखा जाता है); तीसरा, कार्बन डाईऑक्साइड (गैस जो हवा से मिलती है)। और चौथा है क्लोरोफिल यानी पत्तियों में उपस्थित हरा पदार्थ। पौधों में भोजन निर्माण की क्रिया को एकदम सरल रूप में हम यू लिख सकते हैं
यह जटिल जैव रासायनिक क्रिया पौधों में 2 चरणों में संपन्न होती है। पहले चरण के लिए प्रकाश ज़रूरी होता है। अत: इसे प्रकाश-निर्भर क्रिया कहते हैं। इसमें पानी भाग लेता है, कुछ इस तरह – क्लोरोफिल की उपस्थिति में सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा पानी के अणु को तोड़ती है जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन बनती है और साथ में एटीपी और एनएडीपीएच जैसे अणुओं के रूप में रासायनिक ऊर्जा संचित कर ली जाती है। इसके लिए प्रकाश ज़रूरी है।
अर्थात भोजन निर्माण (प्रकाश संश्लेषण) के प्रथम चरण में हरे पौधे प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। इसे प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया कहते हैं और ऑक्सीजन इसी के दौरान निकलती है। यह ऑक्सीजन स्टोमैटा के रास्ते हवा में विसरित हो जाती है। अन्य सभी जीवों के लिए ऑक्सीजन का यही स्रोत है।
प्रकाश संश्लेषण के दूसरे चरण को डार्क रिएक्शन (प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया) कहते हैं। इसके लिए प्रकाश ज़रूरी नहीं होता परंतु यह प्रकाश की उपस्थिति में भी चलती रह सकती है और चलती है। अर्थात सामान्य पौधों में प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया और प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया दिन में साथ-साथ लगातार चलती रहती हैं। प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया के दौरान उस रासायनिक ऊर्जा का उपयोग होता है जो प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया के दौरान रासायनिक रूप संचित हुई थी। प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया को हम कुछ इस प्रकार लिख सकते हैं
कार्बन डाईऑक्साइड + एटीपी + एनडीपीएच = कार्बोहाइड्रेट + पानी + एडीपी + एनएडीपी
अधिकांश पौधों में यही चरण होते हैं। इन सामान्य पौधों के अलावा कुछ ऐसे भी पौधे हैं जो रेगिस्तानी परिस्थितियों में उगते हैं। यहां पानी की कमी होती है और गर्मी अधिक होती है। लिहाज़ा, पानी बचाने के लिए इन पौधों के स्टोमैटा दिन में बंद रहते हैं और रात में खुलते हैं। इन्हें क्रेसुलेसियन एसिड मेटाबोलिज़्म (कैम) पौधे कहा जाता है। इस प्रक्रिया को सबसे पहले क्रेसुलेसी कुल के पौधों में खोजा गया था।
स्टोमैटा बंद होने के कारण कैम पौधों में दिन के समय गैसों का आदान-प्रदान बहुत कम होता है। रात में स्टोमैटा खुले रहते हैं और हवा की आवाजाही रहती है। अत: रात के समय ये पौधे कार्बन डाईऑक्साइड का संग्रहण करते हैं। इस कार्बन डाईऑक्साइड को कार्बनिक अम्लों के रूप में परिवर्तित करके पत्तियों की कोशिकाओं में जमा कर लिया जाता है।
दिन में जब इन कोशिकाओं पर सूर्य की रोशनी गिरती है तब स्टोमैटा तो बंद रहते हैं परंतु रात में बने कार्बनिक अम्लों के टूटने से कार्बन डाईऑक्साइड बनने लगती है जो प्रकाश संश्लेषण की सामान्य क्रिया में भाग लेती है। यह पहले चरण (प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया) में बनी ऑक्सीजन एवं रासायनिक ऊर्जा अर्थात एटीपी और एनएडीपीएच द्वारा प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया के रास्ते कार्बोहायड्रेट में बदल जाती है।
कैम-प्रेमियों के लिए वैसे तो यह स्पष्ट ही है कि पौधा चाहे सामान्य प्रकाश संश्लेषण करने वाला हो या कैम चक्र की मदद लेता हो, ऑक्सीजन का उत्पादन तो प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया के चरण में ही होता है और ज़ाहिर है यह अभिक्रिया दिन में होती है। लेकिन फिर भी यदि किसी कैम प्रेमी को पीपल के नीचे रात बिताकर ऑक्सीजन प्राप्त करने की धुन सवार है, तो एक सूचना काफी लाभदायक हो सकती है। पता यह चला है कि पीपल का पेड़ या पौधा उसी स्थिति में कैम चक्र का उपयोग करता है जव वह किसी अन्य पेड़ के ऊपर उगा हो। मिट्टी में लगा पीपल का पेड़ सामान्य प्रकाश संश्लेषण ही करता है। ज़ाहिर है किसी अन्य पेड़ के ऊपर पीपल के नन्हे पौधे ही उगते हैं, पेड़ तो ज़मीन पर ही होते हैं। तो कैम-सुख के लिए (यदि रात में ऑक्सीजन देने में मददगार हो तो भी) आपको किसी पेड़ के ऊपर उगे पीपल के पेड़ ढूंढने होंगे। |
कैम पौधे इस मायने में विशिष्ट हैं उनमें रात में कैम चक्र चलता है। लेकिन दिन में उसी कोशिका में प्रकाश-निर्भर क्रिया और प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रिया (केल्विन चक्र) दोनों चलते रहते हैं। अत: स्पष्ट है कि रात में ये ऑक्सीजन नहीं छोड़ते क्योंकि रात में उनमें प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया नहीं होती। रात में तो केवल कार्बन डाईऑक्साइड का संग्रहण ही होता है। यानी सामान्य पौधों एवं कैम पौधों में अंतर सिर्फ इतना है कि कैम पौधों में कार्बन डाईऑक्साइड को कार्बनिक अम्लों के रूप में जमा करके रखा जाता है और बाद में मुक्त कर दिया जाता है। शेष प्रक्रिया तो वही है।
सवाल यह है कि क्या कुछ पौधे रात में प्रकाश संश्लेषण का प्रथम चरण यानी प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया सम्पन्न कर सकते हैं। इसका जवाब है कि यह संभव नहीं है क्योंकि प्रकाश-निर्भर अभिक्रिया में पानी को तोड़कर उससे ऑक्सीजन मुक्त करने की क्रिया के लिए प्रकाश की जितनी मात्रा चाहिए रात में नहीं मिलती। यहां तक कि चांदनी रात में भी नहीं, क्योंकि पूर्णिमा की रात को भी चंद्रमा से दिन के सूर्य के प्रकाश की तुलना में 32 हज़ार गुना कम प्रकाश मिलता है। अत: यह कहना गलत है कि कैम पौधे (जैसे एलो वेरा, स्नेक प्लांट आदि) रात में प्रकाश संश्लेषण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। हां, ये आसपास की हवा को साफ ज़रूर करते हैं। अत: कैम पौधे एयर प्यूरीफायर हो सकते हैं परंतु रात में ऑक्सीजन प्रदाता कदापि नहीं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://static.toiimg.com/photo/59969755.cms