वर्ष 1918 में उस समय के नए इन्फ्लुएंज़ा स्ट्रेन से मारे गए दो जर्मन सैनिकों के फेफड़ों से बीसवीं सदी की सबसे विनाशकारी महामारी की आणविक झलक देखने को मिली है। इन दोनों सैनिकों के फेफड़े लगभग सौ वर्षों से बर्लिन म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में फॉर्मेलिन में संरक्षित रखे हुए हैं। हाल ही में शोधकर्ताओं ने इन फेफड़ों में से वायरस के जीनोम के बड़े हिस्से को सफलतापूर्वक अनुक्रमित किया है। इन आंशिक जीनोम्स में इस बात के सुराग मिले हैं कि शायद इस फ्लू महामारी की दो लहरों के बीच यह वायरस मनुष्यों के साथ अनुकूलित हुआ होगा। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने 1918 में कभी जान गंवाने वाली म्यूनिश की एक महिला से प्राप्त रोगजनक के पूरे जीनोम को भी अनुक्रमित किया है। यह रोगजनक वायरस का तीसरा ऐसा जीनोम है और उत्तरी अमेरिका के बाहर का पहला। संग्रहालय में संरक्षित सामग्री से आरएनए वायरस को पुनर्जीवित करने के ऐसे काम की पूर्व में सिर्फ कल्पना की जा सकती थी।
गौरतलब है कि वर्तमान में जीनोम अनुक्रमण एक नियमित कार्य हो गया है। कोरोनावायरस महामारी के दौरान शोधकर्ताओं द्वारा सार्स-कोव-2 के 10 लाख से अधिक जीनोम का डैटाबेस एकत्रित किया गया है जिससे नए संस्करणों निगरानी की जा सकी है। लेकिन 1918-19 में महामारी के लिए ज़िम्मेदार एच1एन1 इन्फ्लुएंज़ा वायरस के बहुत कम अनुक्रमण उपलब्ध हैं।
इससे पहले 2000 के दशक में अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने अलास्का की बर्फ में दफन एक महिला के शरीर से प्राप्त नमूनों से एक पूरा जीनोम तैयार किया था। इसी तरह 2013 में आर्म्ड
फोर्सेस इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी में संरक्षित नमूनों से अमेरिका के घातक फ्लू का दूसरा जीनोम पुनर्निर्मित किया गया। दोनों ही प्रयास काफी श्रमसाध्य और महंगे थे।
इसी तरह के एक प्रयास में रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट के जीव वैज्ञानिक सेबेस्टियन कैल्विनैक और उनके सहयोगियों ने 1900 से 1931 के बीच बर्लिन के चिकित्सा संग्रहालय में संरक्षित फेफड़ों के ऊतकों के 13 नमूनों की जांच की। उनमें से तीन नमूनों में फ्लू वायरस के आरएनए मिले जो डेटिंग करने पर 1918 के समय के पाए गए। गौरतलब है कि सार्स-कोव-2 की तरह इन्फ्लुएंज़ा वायरस का जीनोम भी आरएनए आधारित था। आरएनए कई टुकड़ों में था लेकिन यह वायरस के पूरे जीनोम को तैयार करने के लिए काफी था। यह एक 17 वर्ष की महिला का था और दोनों सैनिकों में पाए गए जीनोम को 90 प्रतिशत और 60 प्रतिशत तक तैयार किया जा सका।
दो सैनिकों से प्राप्त आंशिक जीनोम महामारी की पहली और हल्की लहर के समय के हैं जिसके बाद 1918 के अंत में इसने काफी गंभीर रूप ले लिया था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह वायरस पक्षियों से उत्पन्न हुआ था और पहली और दूसरी लहर के बीच मनुष्यों में बेहतर ढंग से अनुकूलित हो गया। इसका एक कारण वायरस की सतह पर उपस्थित एक महत्वपूर्ण प्रोटीन हीमग्लूटिनिन के लिए ज़िम्मेदार जीन हो सकता है। इसमें अमीनो अम्ल की अदला-बदली वाला उत्परिवर्तन हुआ जिसमें पक्षियों के फ्लू वायरस में पाए जाने वाले एक अमीनो अम्ल ग्लायसिन की जगह एस्पार्टिक अम्ल ने ले ली। यह एस्पार्टिक अम्ल मनुष्यों के वायरस की विशेषता होती है। हालांकि, दोनों जर्मन अनुक्रमों में एस्पार्टिक अम्ल ऐसी स्थिति में था जिससे यह बात संभव नहीं लगती।
फिर भी शोधकर्ताओं को वायरस के न्यूक्लियोप्रोटीन के जीन में विकास के संकेत मिले हैं। वास्तव में न्यूक्लियोप्रोटीन एक ऐसा प्रोटीन है जो यह निर्धारित करने में मदद करता है कि वायरस किस प्रजाति को संक्रमित कर सकता है। 1918 की महामारी के अंत में पाए गए दोनों फ्लू स्ट्रेन के जीन में दो ऐसे उत्परिवर्तन पाए गए जो इन्फ्लुएंज़ा को मानव शरीर की प्राकृतिक एंटीवायरल सुरक्षा से बचने में मदद करते हैं। जर्मन सैनिकों से प्राप्त अनुक्रम पक्षियों से मेल खाते हैं। कैल्विनैक के अनुसार महामारी के शुरुआती महीनों में मानव प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से खुद को बेहतर तरीके से बचाने के लिए वायरस विकसित हुआ। इसी तरह महिला के फ्लू स्ट्रेन में भी पक्षियों के समान न्यूक्लियोप्रोटीन पाए गए जबकि उसकी मृत्यु की अनिश्चित तारीख को देखते हुए स्ट्रेन के विकास के बारे में कोई अधिक निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते।
महिला के पूर्ण जीनोम से अन्य सुराग मिले हैं। शोधकर्ताओं ने इन जीन्स का उपयोग करते हुए वायरस के पॉलीमरेज़ कॉम्प्लेक्स को पुनर्जीवित किया है। कोशिका कल्चर प्रयोगों में उन्होंने पाया कि म्यूनिश स्ट्रेन का पॉलीमरेज़ कॉम्प्लेक्स अलास्का स्ट्रेन में पाए गए पॉलीमरेज़ कॉम्प्लेक्स से लगभग आधा सक्रिय है।
इस अध्ययन में पूरा वायरस नहीं बनाया गया था इसलिए इसमें कोई भी सुरक्षा सम्बंधी चिंताएं नहीं हैं। फिर भी ये अध्ययन पैथोलॉजी के इन खज़ानों की महत्ता को दर्शाते हैं जो आने वाले समय में 1918 की महामारी के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं। इसकी मदद से भविष्य की महामारियों को नियंत्रित करने में भी मदद मिल सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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