कोविड-19 महामारी ने यह तथ्य पुख्ता किया है कि जब तक सभी लोग सुरक्षित नहीं होंगे तब तक इस महामारी से कोई भी सुरक्षित नहीं होगा। मार्च 2021 के दूसरे पखवाड़े में दुनिया भर के समाचार पत्रों में एक संयुक्त पत्र प्रकाशित हुआ था, जिसमें दुनिया भर के नेताओं ने भविष्य में होने वाले प्रकोपों के समय आपसी सहयोग और पारदर्शिता में सुधार के लिए एक महामारी संधि का आह्वान किया है। उनका कहना है कि कोविड-19 महामारी ने वैश्विक समुदाय के सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
इस संधि पर हस्ताक्षर करने वालों में यूके के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल जैसी हस्तियों समेत युरोप, अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया के 20 से अधिक देशों के नेता व अधिकारी शामिल हैं।
भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए इस संधि की शुरुआत करने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेडरोस एडेनॉम गेब्रोयेसस और युरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल ने भी इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा अल्बेनिया, चिली, कोस्टा रिका, युरोपीय परिषद, फीजी, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, इंडोनेशिया, इटली, नार्वे, पुर्तगाल, कोरिया गणराज्य, रोमानिया, रवांडा, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, थाईलैंड, त्रिनिदाद व टोबैगो, ट्यूनीशिया, युनाइटेड किंगडम और युक्रेन के नेताओं ने भी इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।
खास बात यह है कि इस महामारी के दौरान जिन दो देशों – चीन और अमेरिका – के बीच पारदर्शिता में कमी, (कु)प्रचार करने और गलत सूचनाओं के प्रसार को लेकर तनातनी रही, वे ही देश इस सूची से गायब हैं। जब इस संधि के प्रस्तावक और हस्ताक्षरकर्ता, गेब्रोयेसस से अमेरिका और चीन की इस संधि से अनुपस्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह आश्वासन दिया कि इस संधि पर अमेरिका और चीन की प्रतिक्रिया ‘सकारात्मक’ है, लेकिन उन्होंने इस बात की पुष्टि नहीं की कि अमेरिका और चीन (साथ ही रूस और अन्य उल्लेखनीय अनुपस्थित देश) इसमें शामिल होंगे या नहीं।
संधि व पत्र क्या कहते हैं?
वैश्विक नेताओं ने इस पत्र से उम्मीद जगाई है। पत्र में लिखा है कि ‘एक अधिक मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य ढांचा बनाया जा सकता है जो भावी पीढ़ी को अधिक सुरक्षित कर सकता है।’
‘भविष्य में दुनिया में और भी अन्य महामारियां और गंभीर स्वास्थ्य संकट आएंगे। और कोई भी राष्ट्रीय सरकार या संघ अकेले इन मुश्किलों का सामना नहीं कर सकता। और यह तो वक्त बताएगा कि यह ज़रूरत कब पड़ेगी।’
इस संधि का उद्देश्य राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक क्षमताओं को मज़बूत करना है और भविष्य की महामारियों के प्रति लचीलापन बनाना है। यह उद्देश्य डब्ल्यूएचओ के उद्देश्य से मेल खाता है जो मानता है कि विश्व के हरेक व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो।
पारदर्शिता इस अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि के मुख्य बिंदुओं में से एक है। देखा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान पारदर्शिता में कमी लगातार एक डर पैदा करती रही।
यूके पहले ही कह चुका है कि वह एक नई स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी शुरू करेगा जो यह सुनिश्चित करेगी कि देश किसी भी भावी महामारी से निपटने के लिए तैयार रहे। चूंकि हाल ही में टीकों की आपूर्ति और वितरण देशों के बीच कटुता का नवीन स्रोत बनकर उभरा है, इसलिए यह संधि महामारी के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर भी केंद्रित होगी। अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि का आह्वान करने वाले अंतर्राष्ट्रीय नेताओं का कहना है कि संधि का मुख्य उद्देश्य ‘राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक क्षमताओं को मज़बूत करने वाले और भावी महामारियों के प्रति लचीलापन बनाने वाले राष्ट्रव्यापी व सामाजिक तरीकों को बढ़ावा देना है।’
अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि का आगाज़ करने वाले नेताओं को लगता है कि यह संधि चेतावनी प्रणाली को बेहतर करने में सहयोग बढ़ाएगी। संधि इसमें शामिल राष्ट्रों के साथ डैटा साझा करने और अनुसंधान करने की बात भी कहती है। इसमें स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर टीके व सार्वजनिक स्वास्थ्य विकास, और जन स्वास्थ्य सामग्री (जैसे टीके, दवाइयां, नैदानिक उपकरण और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) की वितरण युक्तियों का भी उल्लेख किया गया है।
संधि में उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यह संधि हस्ताक्षरकर्ता देशों के बीच ‘पारदर्शिता, सहयोग और ज़िम्मेदारी’ बढ़ाएगी। यही बात नेताओं ने भी अपने पत्र में कही है: ‘यह संधि अपने नियमों और मानदंडों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परस्पर दायित्व और साझा ज़िम्मेदारी, पारदर्शिता और सहयोग को बढ़ावा देगी।’
संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि ‘इन उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम दुनिया भर के नेताओं और सभी हितधारकों समेत समुदाय और निजी क्षेत्रों के साथ भी काम करेंगे। देश, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के प्रमुख होने के नाते यह सुनिश्चित करना हमारी ज़िम्मेदारी है कि दुनिया कोविड-19 महामारी से सबक सीखे।’
अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि अपना स्वरूप ले रही है, और अधिक से अधिक देशों के प्रतिनिधि महामारी के खिलाफ दुनिया को एकजुट करने के लिए इसमें शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सात औद्योगिक देशों के समूह (जी-7) से उम्मीद है कि जून में यूके में होने वाले शिखर सम्मेलन में वे महामारी संधि के विचार को समझें।
संधि के संभावित परिणाम
यह तंत्र इसलिए बनाया जा रहा है ताकि भावी महामारियों से बेहतर ढंग से निपटने में हस्ताक्षरकर्ता देश एक-दूसरे को तैयार करें। यदि यह संधि अस्तित्व में आती है तो इसके परिणाम कुछ इस प्रकार हो सकते हैं –
- डैटा साझा करने और साझा अनुसंधान करने से महामारियों के खिलाफ सुरक्षा उपाय जल्द पता किए जा सकेंगे, क्योंकि ऐसा करने से एक ही समस्या पर न सिर्फ अधिक लोग काम कर रहे होंगे बल्कि वे एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे होंगे।
- कुछ देशों के पास टीके बनाने के लिए ज़रूरी कच्चा माल बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि कुछ देशों को अपने टीके बनाने के लिए इसे आयात करना पड़ता है। इसलिए देशों के बीच संसाधनों की साझेदारी से टीकों और दवाइयों का तेज़ी से निर्माण किया जा सकेगा।
- भविष्य में महामारी का सामना करके देश समन्वित तरह से श्रम विभाजन कर सकेंगे, जिससे वे अपनी विशेषज्ञता के अनुसार स्वास्थ्य सेवा सामग्रियों का निर्माण कर सकेंगे और इन सामग्रियों और सुविधाओं की एक विस्तृत आपूर्ति शृंखला स्थापित कर सकेंगे। जो एक अकेले राष्ट्र या संगठन द्वारा हासिल करना संभव नहीं है।
- चूंकि इस संधि के तहत देश एक-दूसरे की मदद करेंगे और ऐसे कार्यों से राष्ट्रों के बीच सद्भावना बनेगी, नतीजतन यह संधि देशों के बीच बेहतर सम्बंध बना सकेगी।
- चूंकि संधि के सदस्य इसमें शामिल अन्य सदस्यों से चिकित्सा उपकरणों की सहायता मांग सकते हैं, इसलिए इससे किसी भी राष्ट्र के लिए चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ जाएगी। यह किसी देश को सिर्फ अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ महामारी से अकेले जूझने की तुलना में अधिक मददगार साबित होगा।
- महामारी से यदि कुछ देशों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ाती है, तो इस संधि के तहत हस्ताक्षरकर्ता देशों के बीच होने वाले लेन-देन के कारण कुछ हद तक उन देशों का आर्थिक विकास भी हो सकेगा। इस तरह के लेन-देन सुरक्षात्मक उपकरण, चिकित्सा संसाधन, कच्चे माल आदि की आपूर्ति करने वाले देशों को राजस्व देंगे।
निष्कर्ष
दुनिया भर के नेताओं द्वारा ज़रूरत के वक्त एक दूसरे की मदद करने का आह्वान, अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि, काफी अच्छा विचार है। महामारी को हराने और जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए एकजुट होकर काम करना एक अच्छा विचार है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि संधि कैसी होगी। अमेरिका, चीन और रूस ने संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। जी-7 शिखर सम्मेलन होने ही वाला है। इसलिए जब तक इन सवालों के जवाब स्पष्ट नहीं हो जाते और संधि एक ठोस रूप और ढांचा अख्तियार नहीं करने लगती, तब तक यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि वास्तव में इस संधि से लोगों को कोविड-19 और भविष्य में आने वाली महामारियों के दौरान लाभ मिलेगा या नहीं। आशावादी होना और बेहतर की कामना करना अच्छा है, लेकिन सभी की समस्याओं को हल करने के लिए एक ही संधि से आस बांधना भी व्यावहारिक नहीं है। इस तरह की संधि यकीनन सही दिशा में एक कदम है और मौजूदा हालात में यह आशाजनक ही लग रही है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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